हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / state

भुंडा महायज्ञ में बेड़े की रस्म से पहले टूटी रस्सी, लाखों की संख्या लोग मौके पर मौजूद - BHUNDA MAHAYAGYA ROHRU

दलगांव में चल रहें भुंडा-महायज्ञ में आज बेड़े की ओर से भुंड की रस्म निभाई जानी थी, लेकिन इससे पहले ही ये रस्सी टूट गई.

भुंडा महयज्ञ में टूटी रस्सी
भुंडा महयज्ञ में टूटी रस्सी (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 4, 2025, 5:34 PM IST

रामपुर बुशहर:हिमाचल प्रदेश के रोहडू की स्पैल वैली के दलगांव में चल रहें भुंडा महायज्ञ में आज बेड़े की ओर से भुंड की रस्म निभाई जानी थी. इसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दलगांव पहुंचे हैं. जब विधि विधान के साथ एक रस्सी को बांधने का काम किया जा रहा था उसी समय अचानक बीच से ये दिव्य रस्सी टूट गई, जिसके चलते फिलहाल अभी रस्म को कमेटी ने रोक दिया है. मंदिर कमेटी आगे इसपर विचार विमर्श कर रही है.

आज लाखों की संख्या की संख्या में लोग भुंड़ा उत्सव में पहुंचे हैं. इस महायज्ञ में तीन देवता और तीन परशुराम पहुंचे हुए हैं. अब मोहतबीन और देवता इस बारे में अगला निर्णय लेंगे. इस रस्सी को पवित्र समझा जाता है और इसका टूटना अपशगुन समझा जाता है. देवता बकरालू महाराज जी तो तहसीलों रोहड़ू व रामपुर के देवता हैं. भुंडा महायज्ञ देवता महेश्वर, देवता बौंद्रा व देवता बकरालू व देवता मोहर्रिश के प्रेम का प्रतीक है. रोहड़ू उपमंडल के नौ गांव के लोग इस यज्ञ में सहयोग कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि भुंडा महायज्ञ के लिए एक लाख से अधिक निमंत्रण दिए गए हैं.

भुंडा उत्सव (ETV BHARAT)

नर्म घास की बनी होती है ये रस्सी

भुंडा महायज्ञ के दौरान बेड़ा रस्सी के जरिए मौत की घाटी को लांघते हैं. ये रस्सी दिव्य होती है और इसे मूंज कहा जाता है. ये विशेष प्रकार के नर्म घास की बनी होती है. इसे खाई के दो सिरों के बीच बांधा जाता है. भुंडा महायज्ञ की रस्सी को बेड़ा खुद तैयार करते हैं. बेड़ा उस पवित्र शख्स को कहा जाता है, जो रस्सी से खाई को लांघते हैं. बेड़ा जाति के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं.

रस्सी तैयार करने में लगे ढाई महीने

बेड़ा सूरतराम के अनुसार रस्सी तैयार करने में ढाई महीने का समय लगा. इस पवित्र कार्य में उनका साथ चार लोगों ने दिया. रस्सी तैयार करते समय पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. सुबह चार बजे भोजन करने के बाद फिर अगले दिन सुबह चार बजे भोजन किया जाता है. यानी 24 घंटे में केवल एक बार भोजन किया जाता है. इस दौरान अधिकतम मौन व्रत का पालन किया जाता है.

ये भी पढ़ें:हिमाचल के 100 करोड़ वाले महायज्ञ की कहानी, कैसे इस 'कुंभ' का नाम पड़ा भुंडा, कौन हैं पहाड़ के परशुराम

ये भी पढ़ें: एक समय भोजन और तपस्वी का जीवन, ढाई महीने में तैयार हुई भुंडा महायज्ञ की रस्सी से मौत की घाटी पार करेंगे बेड़ा सूरतराम

ABOUT THE AUTHOR

...view details