गणेश जन्मोत्सव का आगाज (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर) जयपुर. छोटी काशी के प्रसिद्ध मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में शनिवार से भगवान के जन्मोत्सव कार्यक्रमों का आगाज हुआ. प्रथम पूज्य गणेश जी महाराज का पंचामृत अभिषेक कर चोला चढ़ाकर नवीन पोशाक धारण कराई गई. खास बात ये है कि इस बार कलश यात्रा में लाया गया जल भी भगवान को अर्पित किया गया. वहीं बाद में भगवान को 1008 मोदकों का भोग लगाया गया. इसके साथ ही मंदिर में नई ध्वजा भी चढ़ाई गई.
पंचामृत अभिषेक : पुष्य नक्षत्र में मोती डूंगरी गणेश मंदिर में शनिवार को 251 किलो दूध, 25 किलो बूरा, 50 किलो दही, 11 किलो शहद, 11 किलो घी गुलाब जल, केवड़ा जल और इत्र से भगवान गणपति का अभिषेक किया गया. इस अवसर पर 501 महिलाएं कलश यात्रा लेकर पहुंची. उनके साथ कलश में लाया गया जल भी प्रथम पूज्य को अर्पित किया गया. इसके साथ ही भगवान गणेश के जन्मोत्सव का आगाज हुआ. महंत कैलाश शर्मा ने बताया कि भगवान गणेश जी महाराज का जन्मोत्सव का शुभारंभ हुआ यह परिपाटी है. पुष्य नक्षत्र में पंचामृत अभिषेक किया गया. उसके बाद चोला चढ़ाया गया और फिर प्रथम पूज्य पोशाक धारण कराई गई. आज भगवान को नया मुकुट धारण कराया गया और 1008 मोदकों का भोग लगाया गया. इसके बाद भक्तों ने भी अपने मोदक भगवान को अर्पित किए. वहीं 11:00 बजे पूजन कर नई ध्वजा चढ़ाई गई. मंदिर परिवार की ओर से मुख्य ध्वजा और इसके अलावा 11 अन्य ध्वजा श्रद्धालुओं की ओर से चढ़ाने की परंपरा है. मुख्य ध्वजा 27 दिन में बदलती है जबकि अन्य ध्वजा बदलती रहती है.
पुष्य नक्षत्र में गणेश जन्मोत्सव का आगाज (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) पढ़ें: गणेश चतुर्थी सात सितम्बर को , जयपुर के मोती डूंगरी में 9 दिन होंगे विशेष कार्यक्रम, चांदी के सिंहासन पर विराजेंगे गणपति
गणेश जन्मोत्सव का आगाज :वहीं महंत ने बताया कि इस बार महिलाओं की ओर से कलश यात्रा में लाया गया जल भी भगवान गणेश को अर्पित किया गया. ये कोई परिपाटी नहीं बल्कि एक भाव है. मंदिर के आसपास माली, गुर्जर और कुमावत समाज का बाहुल्य है. उन्होंने 10 वर्ष पहले भगवान को अर्पित करने के लिए कलश में गंगाजल लाने की अनुमति ली और उसके बाद धीरे-धीरे इस पहल ने कलश यात्रा का रूप ले लिया है. ये जल भगवान को अर्पित किया गया. उसके बाद शुद्ध स्नान और पंचामृत अभिषेक किया गया.
पुष्य नक्षत्र में पंचामृत अभिषेक (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) वहीं, अब शाम से भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर शुरू हो जाएगा। भगवान गणेश को ध्रुपद गायन बहुत पसंद है. इसलिए ध्रुपद गायन का आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा इस बार तांडव नृत्य भी रखा गया है. जिसे कत्थक का प्रारंभिक रूप कहा जाता है. राग-रागिनियों में भगवान शिव को पारंगत माना गया है और मंदिर परिवार भी शिवाक है. इस वजह से इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ये आयोजन होगा. इसके अलावा बुधवार को कत्थक का एक अलग प्रोग्राम भी होगा.
पुष्य नक्षत्र में मोती डूंगरी गणेश मंदिर के अलावा जयपुर के प्राचीन श्वेत सिद्धि विनायक मंदिर, नहर के गणेश मंदिर, ध्वजाधीश जी मंदिर, परकोटे वाले गणेश जी और अन्य गणेश मंदिरों में भी धार्मिक अनुष्ठान किए गए. साथ ही भगवान को मोदकों का भोग लगाकर नवीन पोशाक धारण कराई गई.