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लखनवी कबाब-बिरयानी के स्वाद पर खतरा! कोयले की भट्ठियों-तंदूर का सर्वे करा रहा नगर निगम, बैन की तैयारी - Ban on tandoor ovens in Lucknow

नवाबों का शहर लखनऊ अपनी नफासत और तहजीब के लिए तो मशहूर है ही, यहां का जायका भी लाजवाब है. जो भी लखनऊ आता है, यहां की बिरयानी और कबाब का कायल हो जाता है. लखनवी अंदाज और लजीज पकवान इसकी विरासत में शामिल हैं, लेकिन आने वाले कुछ ही दिनों में इसके जायके पर असर पड़ सकता है.

लखनऊ में तंदूर भट्टी पर लगने वाली है रोक.
लखनऊ में तंदूर भट्टी पर लगने वाली है रोक. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 11, 2024, 7:24 PM IST

Updated : Aug 13, 2024, 6:14 PM IST

लखनऊ: नवाबों का शहर लखनऊ अपनी नफासत और तहजीब के लिए तो मशहूर है ही, यहां का जायका भी लाजवाब है. जो भी लखनऊ आता है, यहां की बिरयानी और कबाब का कायल हो जाता है. लखनवी अंदाज और लजीज पकवान इसकी विरासत में शामिल हैं, लेकिन आने वाले कुछ ही दिनों में इसके जायके पर असर पड़ सकता है. इसके पीछे कारण है तंदूर भट्ठियों पर लगने वाली रोक, जिसके लिए सर्वे कराया जा है. आइए जानते हैं, क्यों उठाया जा रहा है यह कदम और इसका कितना पड़ेगा असर.

लखनऊ में तंदूर भट्टी पर लगने वाली है रोक. (Video Credit; ETV Bharat)

होटलों-ढाबों में दहक रहीं तंदूर भट्टियों का नगर निगम करा रहा सर्वे :लखनऊ के जायके को मशहूर करने वाले शहर के कई नामचीन और पुराने कारीगर वर्षों से बिरियानी, कबाब बनाते आ रहे हैं. लेकिन नगर निगम का एक फैसला इस जायके को बिगाड़ सकता है. दरअसल, वायु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व NGT की सख्ती के बाद होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों में दहकने वाली तंदूर की भट्ठियों पर रोक लगाने की तैयारी है. वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में ये भट्ठियों भी शामिल है. इसके बाद नगर निगम होटल व रेस्टोरेंट का सर्वे करा रहा है. अनुमान है कि राजधानी में करीब 3 हजार से अधिक कोयले की भट्ठियां हटा दी जाएंगी.

जायके पर पड़ेगा असर :बीते 15 वर्षों से मुगलई डिश बनाने मोनू शर्मा कहते हैं कि गैस या इलेक्ट्रिक भट्‌ठी से जायका बेकार हो जाएगा. जिस तरह से कोयले या फिर लकड़ी में खाना पकता है, उससे गैस पर न ही पकेगा और न ही वो स्वाद आएगा. यहां तक खाने वाला पेट का मरीज भी हो जाएगा. मोनू कहते हैं कि कोयले पर आंच धीमी होती है और उसमें बराबर सिकाई हुआ करती है. फिर चाहे कबाब, कुल्चा हो या फिर शीरमाल, सब बेहतरीन तरीके से तैयार होता है.

कोयले की भट्टी से आता है सौंधापन :अमीनाबाद के कमलेश कहते हैं कि नगर निगम का यह फैसला ठीक नहीं है. कोयले की भट्‌टी में जब खाना पकाया जाता है तो उसमें सौंधापन आता है, जो गैस भट्‌टी पर नहीं आएगा. जो लोग उनके यहां खाने आते हैं, वो इसी सौंधेपन की वजह से ही आते हैं. गैस तो उनके घरों में भी होती है. ऐसे जब लखनऊ का जायका ही नहीं रहेगा तो हम गैस या बिजली भट्टी लगाकर करेंगे ही क्या.

कोयले और लकड़ी पर पके पकवान का अलग टेस्ट :वाहिद बिरयानी के मालिक नौशाद ने कहते हैं कि नगर निगम के तंदूर को लेकर लिए गए फैसले से बहुत फर्क पड़ेगा. लेकिन मामला लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है तो पालन करना मजबूरी है. मगर यह सभी को मालूम है कि गैस भट्ठी लखनऊ के सैकड़ों साल पुराने जायके को एक झटके में खत्म कर देगी. कोयले और लकड़ी पर पके पकवान का टेस्ट बेहतर होता है.

लखनऊ में चल रहीं 3000 से ज्यादा तंदूर भट्ठियां :इस बारे में नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने बताया कि लखनऊ में करीब तीन हजार से अधिक कोल भट्ठियां व तंदूर चल रहे हैं. वायु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व NGT की सख्ती के बाद होटल, रेस्टोरेंट व ढाबों में चलने वाली तंदूर की भट्ठियों पर रोक लगाई जाएगी. जिसके लिए नगर निगम की ओर से तंदूर का इस्तेमाल करने वाले होटल व रेस्टोरेंट का सर्वे कराया जा रहा है. दरअसल, ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) की स्टडी में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों के अलावा होटल और रेस्टोरेंट से वातावरण में पीएम 10 और पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ रही है. ऐसे मे यदि पारंपरिक कोयले से चलने वाले तंदूर को गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर के रूप में परिवर्तित करते हैं तो पीएम 2.5 के उत्सर्जन में 95% की भारी कमी आने की उम्मीद है. इससे महत्वपूर्ण वायु गुणवत्ता में सुधार होगा.

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Last Updated : Aug 13, 2024, 6:14 PM IST

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