पटना: मन में यदि किसी बात का संकल्प हो और सच्ची निष्ठा से उसे पूरी करने की कोशिश करें तो सफलता जरूर हासिल होती है. कुछ ऐसी ही कहानी है मधुबनी के रहने वाले संत कुमार चौधरी की. मधुबनी के बेनीपट्टी अनुमंडल के बसैठ चैनपुरा गांव के रहने वाले संत कुमार चौधरी ने बचपन में ही सोच लिया था कि यदि जिंदगी में कभी कुछ करने लायक बन गए तो लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करेंगे.
स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से हैं संत चौधरी:मधुबनी जिले के बसैठ चैनपुरा गांव में संत कुमार चौधरी का जन्म एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में हुआ था. उनके दादा ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था. उनके परिवार ने शिक्षा को हमेशा प्राथमिकता दी, उनके दादा बसंत चौधरी ने अपने गांव में स्कूल खोलने की परिकल्पना की थी, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने में स्कूल में पढ़ने के लिए बच्चों को कई किलोमीटर चलकर जाना पड़ता था. इसलिए उन्होंने अपने गांव में एक छोटा सा स्कूल खोला था. यहीं से संत कुमार चौधरी के मन में शिक्षा के प्रति गहरा लगाव हुआ और उन्होंने प्रण लिया कि अगर कुछ बनेंगे तो लोगों के लिए शिक्षण संस्थान खोलेंगे.
विज्ञान में थी दिलचस्पी: संत कुमार चौधरी की प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव के सरकारी विद्यालय में हुआ था. उनके पिता दुख मोचन चौधरी स्कूल में प्राध्यापक थे. मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनका नामांकन दरभंगा के प्रतिष्ठित सीएम साइंस कॉलेज में हुआ. वहीं से उन्होंने इंटरमीडिएट और फिर बाद में साल 1979 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद संत कुमार चौधरी आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए. 1980 में उन्होंने दिल्ली में बी फार्मा में एडमिशन लिया और वहीं ही रहकर आगे की पढ़ाई करते रहे.
10 रुपये से हुई सफर की शुरुआत: संत कुमार चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपने पुरानी बातों को साझा किया. संत कुमार चौधरी ने कहा कि आगे की पढ़ाई के लिए जब दिल्ली जाने का निर्णय लिया तो जाते वक्त उनकी मां ने एक 10 का नोट उनको दिया. पिता 110 रुपये का मनी ऑर्डर हर महीने भेजते थे. दिल्ली में जब पढ़ाई कर रहे थे तब पैसा भेजने का एकमात्र साधन मनी ऑर्डर ही होता था. कई बार ऐसा होता था कि मनी ऑर्डर पहुंचने में देरी हो जाती थी. तो परेशानी बढ़ जाती थी, कई बार ऐसा हुआ कि सही समय पर पैसा नहीं पहुंचने के कारण दोस्त कहते थे कि उनके वहीं ही भोजन कर लें लेकिन वह किसी का उपकार नहीं लेना चाहते थे.
दिल्ली से पहुंचे महाराष्ट्र: घर से मनी ऑर्डर पहुंचने तक किसी तरीके से कम रासन में गुजारा करते थे ताकि भोजन के लिए दूसरे घर नहीं जाना पड़े. यही हाल नौकरी के समय में भी हुआ. महाराष्ट्र उनके लिए नया था, कोई जान-पहचान वाला भी नहीं था. नौकरी मिलने के कारण पिता को लगा कि अब पैसा भेजने की जरूरत नहीं है. नौकरी में शुरू का 3 महीने बहुत परेशानी झेलनी पड़ी. मकान का किराया, घर के सामान का खर्चा, इन सब में सामंजस्य बैठने में बहुत परेशानी हुई. नौकरी में 12 - 13 घंटे काम का अलग प्रेशर होता था.
महाराष्ट्र सरकार के सचिवालय में नौकरी: दिल्ली में पढ़ाई के साथ-साथ वह कंपटीशन की तैयारी भी कर रहे थे. महाराष्ट्र सचिवालय में संत कुमार चौधरी को नौकरी मिली. कई वर्षों तक महाराष्ट्र सरकार के सचिवालय में उन्होंने नौकरी की. यह उनके सफलता की पहली सीढ़ी थी. उनके काम करने की क्षमता को देखते हुए उन्हें प्रमोशन दिया गया और सरकार ने राजस्थान के गवर्नर का ओएसडी बना कर भेजा. हालांकि संत कुमार चौधरी का मन नौकरी में बहुत ज्यादा नहीं लग रहा था.
सरकारी नौकरी से इस्तीफा: संत कुमार चौधरी ने कहा कि उनके मन में बार-बार यह चीज आ रही थी की नौकरी में रहकर वह वह चीज नहीं कर पाएंगे जो उन्होंने बचपन से कल्पना की थी. उन्होंने कहा कि नौकरी से सिर्फ अपना और अपने परिवार का गुजारा हो सकता है समाज के लिए कुछ नहीं किया जा सकता. यही सोचते हुए उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला किया.
आध्यात्म से जुड़े संत चौधरी: इसी बीच वे कांची पीठ के शंकराचार्य के संपर्क में आए और उन्हें आध्यात्मिक रूप से बहुत ज्यादा बल मिला. वहीं से प्रेरणा लेकर शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की कल्पना लिए हुए संत कुमार चौधरी ने शंकरा ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन की स्थापना की. मन में एक डर था की कहीं मैं इस काम में सफल नहीं हुआ तो फिर मैं कहीं का नहीं रहूंगा लेकिन उनके मन में यह विश्वास था कि सच्ची निष्ठा और निस्वार्थ भाव से यदि काम करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी.
शंकराचार्य के नाम पर संस्थान का नाम:संत कुमार चौधरी ने अपने संस्थान का नाम शंकरा ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन रखा. सबसे पहले उन्होंने अपना सबसे पुराना सपना पूरा किया और अपने गांव में इंटर स्तर तक का पहला स्कूल खोला. यहीं से संत कुमार चौधरी के सफलता की शुरुआत हुई. इसके बाद उन्होंने शंकराचार्य के नाम पर ही सबसे पहले मधुबनी में आंख का अस्पताल खोला और एक बार सफलता हाथ मिलाने के बाद संत कुमार चौधरी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण की शुरुआत: संत कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार के समस्तीपुर में पूसा एग्रीकल्चर कॉलेज के अलावा कृषि क्षेत्र में किसान की सहायता के लिए कोई संस्थान नहीं था. उन्होंने मिथिला में एग्रीकल्चर कॉलेज एवं शोध संस्थान का सपना देखा. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार के समय में उन्होंने मधुबनी में एग्रीकल्चर कॉलेज खोलने का निर्णय लिया.