चंडीगढ़: पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी और फॉरेंसिक साइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने एक खास सॉफ्टवेयर तैयार किया है. इस सॉफ्टवेयर के जरिए असली और नकली हस्ताक्षरों की पहचान आसानी से की जा सकेगी. इस सॉफ्टवेयर को भारत सरकार के कॉपीराइट कार्यालय ने कॉपीराइट पंजीकरण प्रदान किया है. इस मॉडल का उपयोग महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर, जालसाजी जैसी धोखाधड़ी की पहचान करने में किया जा सकता है.
सिग्नेचर पहचानने में मिलेगी मदद:इस सॉफ्टवेयर के जरिए कम सिग्नेचर की गिनती के होते हुए भी यह पहचान कर सकता हैं कि किसी भी डॉक्यूमेंट पर हुए हस्ताक्षरों में कौन से हस्ताक्षर असली है और कौन सा नकली है. यह सॉफ्टवेयर सिर्फ कुछ मिनटों में ही अपना रिजल्ट दे देता है. जिन डाक्यूमेंट पर पांच से छह सिग्नेचर हुए हैं, उसी में पहचान हो जाएगी कि सिग्नेचर असली है या नकली जबकि इससे पहले सिग्नेचर असली है या नकली. इसे पहचानने के लिए बड़ी संख्या में हस्ताक्षरों की जरूरत होती थी. हस्ताक्षरों की यह संख्या 500 से एक हजार तक हो सकती है, जिससे इस नकली हस्ताक्षरों की पहचान की जा सके.
पिछले साल शुरू हुआ था काम:इस बारे में प्रोफेसर केवल कृष्ण ने बताया कि साल 2023 जून माह में ही सॉफ्टवेयर बनाने का काम शुरू किया गया था. यह सॉफ्टवेयर जून यानि कि एक ही वर्ष में 2024 बनकर तैयार हो गया था. बाकी समय इसका कॉपीराइट लेने में लगा. सॉफ्टवेयर के जरिए जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 फीसद की सटीकता प्राप्त हुई.