भोपाल: एम्स भोपाल जल्द ही प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल बनने जा रहा है, जहां 6 हजार साल पुरानी सिद्ध चिकित्सा प्रणाली से मरीजों का उपचार किया जाएगा. एम्स के आयुष विभाग में 27 अगस्त से इसकी शुरुआत होने वाली है. यहां आटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी और कैंसर समेत अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाएगा. सबसे खास बात यह है कि सिद्ध चिकित्सा प्रणाली पूणर्तः स्वदेशी है. इसमें एलोपैथी दवाओं का उपयोग नहीं किया जाता है. ऐसे में मरीज को साइड इफेक्ट होने का खतरा भी नहीं होता है.
इन रोगों के लिए रामबाण है सिद्ध चिकित्सा प्रणाली
एम्स अस्पताल की सिद्ध चिकित्सा पद्धति की एमडी डॉ. एश्वर्या के मुताबिक, ''सिद्ध प्रणाली आपातकालीन मामलों के अलावा रोग के अन्य सभी प्रकारों के उपचार में सक्षम है. सामान्य रूप से यह प्रणाली गठिया और एलर्जी विकार के अलावा त्वचा की समस्याओं के सभी प्रकार, विशेष रूप से सोरियासिस, यौन संचरित रोग, मूत्र पथ के संक्रमण, यकृत और गैस्ट्रो आंत्र पथ के रोगों, सामान्य दुर्बलता, प्रसवोत्तर अरक्तता, दस्त और सामान्य बुखार के इलाज में प्रभावी है. साथ ही डेंगू बुखार, आर्थराइटिस, साइनसाइटिस, स्वाइन फ्लू, ब्रोंकाई का अस्थमा, एन्सेफलाइटिस, डायबिटीज मेलिटस, पीलिया, डिमेंशिया, हाई ब्लड प्रेशर, लीवर के रोग, यूरोलिथियासिस समेत अन्य बीमारियों का भी सटीक उपचार होता है.''
सिद्ध चिकित्सा के नियमों का पालन करने से नहीं होती बीमारी
डॉ. एश्वर्या ने कहा कि, ''सिद्ध चिकित्सा पद्धति की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इसमें रोग के इलाज से ज्यादा उसकी रोकथाम पर अधिक ध्यान दिया जाता है. इसमें आमतौर से आहार संबंधी आदतें, मौसम में होने वाले बदलाव और व्यक्ति एक आसपास की वस्तुओं से संबंधी जानकारियां दी जाती हैं. इसके अलावा सिद्ध चिकित्सा पद्धति में रोगों की रोकथाम से संबंधित निवास स्थान के अनुसार अनुशासन, मौसम से जुड़े अनुशासन, रोजाना के आहार नियम और आहार संबंधी जानकारियां दी जाती हैं. जिससे रोग शरीर में प्रवेश ही न करे. जैसे पेट से संबंधित परेशानियों के लिए चार माह में एक बार दवा का सेवन, उल्टी के लिए 6 माह में एक बार दवा का सेवन और आंखो के लिए तीन दिन में एक बार दवा का उपयोग करने से इनसे संबंधित बीमारियां नहीं होती हैं.''