अपनी पुरातन संस्कृति को बचाए रखने की शिक्षा (ETV Bharat Jodhpur) जोधपुर.आमतौर पर गर्मियों की छुट्टियां छोटे बच्चे नाना नानी के घर में मौज-मस्ती में गुजारते हैं, क्योंकि उन्हें स्कूल नहीं जाना पड़ता, लेकिन जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज अपने बच्चों को अपनी पुरातन संस्कृति को बचाए रखने के लिए शिविर लगाकर तैयार करता है. यह क्रम 7 साल से चल रहा है. कोरोना में ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया था. समाज के शिविर में जोधपुर ही नहीं, बल्कि भीलवाड़ा और उदयपुर सहित अन्य शहरों के बच्चे भी यहां वैदिक संस्कृति सीखने आते हैं.
श्रीमाली ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष महेंद्र बोरानी बताया कि इस शिविर में छोटे बच्चों को पीतांबर (धोती) बांधना सिखाया जाता है, क्योंकि किसी भी तरह के कर्मकांड-पूजा में यह आवश्यक होता है. इसके अलावा साफा बांधना भी सिखाया जाता है. इसमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल होते हैं.
मंत्रोचार के हाव-भाव, श्लोक पढ़ने में विधा का ज्ञान : शिविर में विद्यार्थियों को वेद अध्ययन के साथ सूक्ष्म हवन प्रक्रिया भी सिखाई जाती है. नित्य हवन करने के महत्व बताए जाते हैं. हवन के दौरान होने वाले मंत्रोचार में श्लोक किस ऊंचाई पर पढ़ना है, कहां रुकना और कहां स्वर नीचे करने है, इसका अभ्यास करवाया जाता जाता है. इसके अलावा मंत्र पढ़ते हुए हाथों के हाव-भाव बताए जाते हैं, साथ ही महत्व भी समझाया जाता है. विवाह में चंवरी कैसे तैयार करते हैं, यह भी बताया जाता है.
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यह पाठ सिखाए जा रहे हैं : शिविर में रुद्राष्ट्राध्याय के तहत रुद्रीपाठ का वाचन के साथ पुरूसुक्त, रुद्रमुक्त, श्रीसूक्त, नवग्रह मंत्र, शांति पाठ, भद्रसूक्त, गणपति स्मरण के साथ गणपति ध्यान के मंत्र का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, साथ ही बच्चों को इसके फायदे भी समझाए जाते हैं. पाठ का वाचन करने के साथ ही हाथों के इशारे सिखाए जा रहे हैं.
तीन भागों में होता है शिविर : समाज के अध्यक्ष महेंद्र बोहरा ने बताया कि वैदिक संस्कार शिविर तीन भागों में चलता है. सुबह 6 बजे यज्ञोपवित धारण करने वाले बच्चों का प्रशिक्षण होता हैं. इसके बाद छोटे बच्चों को शामिल किया जाता है. शाम को 40 साल से उपर के लोगों को शामिल करने के उन्हें प्रशिक्षित किया जाता हैं. एक ही उदृेश्य है कि वैदिक संस्कृति को जाने और सीखें.
सुरेंद्र दवे ने बताया कि हमारें संस्कारों को जीवित रखने का यह हमारा प्रयास है, जिससे यह बच्चे सनातनी संस्कृति और वैदिक परंपराओं को जान सके. करीब 1500 बच्चे यहां अभी आ रहे हैं. बालिकाओं को प्रशिक्षण देने वाली राजलक्ष्मी ओझा ने बताया कि बालिकाओं को भी वैदिक शिक्षा देना आवश्यक है. मैंने खुद इसका पहले प्रशिक्षण प्राप्त किया था.