रामपुर: हिमाचल प्रदेश में रामपुर के समेज गांव में 31 जुलाई की रात को आई त्रासदी ने पूरे गांव का नामोनिशान मिटा दिया है. एक हफ्ते बाद भी राहत और बचाव कार्य चल रहा है. 36 लोगों में कुछ लाशें मिल चुकी हैं लेकिन अब हर बीतते पल के साथ अपनों को मिलने की उम्मीद धुंधली होती जा रही है. चंद दिन पहले तक जहां एक खुशहाल गांव था वहां अब हर तरफ मलबा ही मलबा है. जिन लोगों ने इस त्रासदी में अपनों को खो दिया वो रोजाना यहां पहुंचते हैं. उम्मीद भरी निगाहों के साथ राहत बचाव कार्य को देखते हैं लेकिन खाल हाथ लौटते हैं. परिवारवाले अब अपनों के मिलने की उम्मीद खो चुके हैं लेकिन आस सिर्फ इतनी है कि अगर शव भी मिल जाए तो विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार कर सकें.
"जिंदगी की उम्मीद नहीं"
प्रभात नेगी 1 अगस्त से रोज सुबह 6 बजे यहां पहुंचते हैं और ऑपरेशन चलने तक यहां रुककर खाली हाथ लौट जाते हैं. 31 जुलाई की रात को जो सैलाब आया वो उनकी मां को आशियाने के साथ ही बहा ले गया. हर रोज ढलते सूरज के साथ उनकी भी उम्मीद ढल रह है. प्रभात नेगी ने ईटीवी से बातचीत में कहा कि "इस आपदा में हमने सब कुछ खो दिया है. समेज में सब उजड़ गया है, कुछ नहीं बचा है. उस दिन मेरी मां घर में अकेली थी और हम शहर गए हुए थे. रात में बाढ़ आई और पूरा घर बह गया. तबसे रोज सुबह 6 बजे आता हूं और शाम को 6 बजे तक यहां रुकता हूं. अब तो उम्मीद टूट गई है लेकिन सिर्फ ये उम्मीद करता हूं कि मां कि पार्थिव देह ही मिल जाए ताकि विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार कर पाएं"
प्रभात नेगी जैसे कई लोग हैं जिन्होंने इस आपदा में अपनों को खोया है. कुछ के पूरे परिवार तो कुछ की पीढ़ियां इस सैलाब की भेंट चढ़ गई हैं. गोपाल की पत्नी और बेटी लापता हैं वो भी रोज सुबह की उम्मीद का दामन पकड़कर आते हैं और समेज की हर शाम उन्हें नाउम्मीदी दे रही है. गोपाल कहते हैं कि "मेरी पत्नी और बेटी इस सैलाब में बह गए, मैंने सबकुछ खो दिया है. इंतजार अब मुश्किल है लेकिन उम्मीद और इंतजार के अलावा कुछ नहीं कर सकता"
राहत और बचाव कार्य जारी