पटना:लोक गायिका शारदा सिन्हा को मरणोपरांत पद्म विभूषण के लिए नामित किया गया है. 'बिहार कोकिला' के नाम से मशहूर सिन्हा को भोजपुरी, मैथिली और बज्जिका भाषा में लोक गीतों को लोकप्रिय बनाने में उनके अग्रणी प्रयासों के लिए जाना जाता है. इससे पहले वह पद्म श्री के साथ-साथ पद्म भूषण भी प्राप्त कर चुकी हैं. सरकार की इस फैसले से स्वर्गीय शारदा सिन्हा के परिवार वाले खुश हैं.
पद्म विभूषण पुरस्कार की घोषणा से परिवार खुश:ईटीवी भारत से बातचीत में स्वर्गीय शारदा सिन्हा के पुत्र अंशुमान सिन्हा ने इसके लिए धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि यह उनके परिवार के लिए गौरव का क्षण है और यह बिहार के लिए भी गौरव की बात है यह शारदा सिन्हा को नहीं लोक संस्कृति को मिला हुआ सम्मान है. उनके द्वारा गाए हुए गीत लोक संस्कृति का आईना है. उनके द्वारा छठ पर्व की गीत एवं विवाह के गीत लोगों के दिल में अभी भी बसी हुई है. यह सम्मान उनके द्वारा गाए गए लोक संस्कृति को दिया गया सम्मान है.
संगीत विश्वविद्यालय शारदा सिन्हा के नाम की इच्छा: अंशुमान सिन्हा ने बताया शारदा सिन्हा की आखिरी इच्छा थी कि बिहार में संगीत को लेकर एक विश्वविद्यालय की स्थापना हो. बिहार में बहुत सारे विश्वविद्यालय हैं उसमें अन्य विषयों की तरह संगीत भी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. लेकिन संगीत का विश्वविद्यालय बने यह एक अलग सोच है. उनके परिवार की भी इच्छा है कि बिहार में संगीत का विश्वविद्यालय बने. बिहार सरकार के तरफ से यदि यह पहल की जाती है तो उनको खुशी होगी.
पद्मश्री से पद्म विभूषण तक का सफर: अंशुमान सिन्हा ने बताया कि पद्मश्री से लेकर पद्म विभूषण तक का स्वर्गीय शारदा सिन्हा का सफर लंबा रहा. उनकी मां को 1991 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया और 2018 में पद्म भूषण का सम्मान मिला, यह जो अवधि रहा यह लंबा रहा. अंशुमान सिन्हा ने बताया कि 2018 में यदि उनको पद्म भूषण नहीं मिलता तो यह उनके लिए अन्याय होता.
1991 से 2018 तक का लंबा सफर: उन्होंने कहा कि शारदा जी ने अपने संगीत के सफर में कभी विश्राम नहीं लिया. 55 वर्षों तक लगातार वह स्वर साधना में जुटी रही. रिकॉर्डिंग के माध्यम से हो या आकाशवाणी के माध्यम से या मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से हमेशा वह अपने संगीत के साथ जुड़ी रही. अंशुमान सिन्हा ने बताया कि 1991 से 2018 तक का जो सफल रहा वह बहुत लंबा सफर रहा है और 2018 में पद्म भूषण मिला और अभी जो पद्म विभूषण सम्मान की घोषणा की गई है यह इस गैप को बैलेंस कर रहा है.
2024 कठिन वर्ष:अंशुमान सिन्हा ने बताया बीता हुआ 2024 ई उनके परिवार के लिए बहुत ही मुश्किल भरा रहा. पिताजी और माताजी के निधन के बाद अभी तक अपने आप को संतुलित करने का प्रयास कर रहे हैं. हर दिन अपनी बहन के साथ बात होती है और एक दूसरे को समझने का प्रयास कर रहे हैं. 2024 विश्वास से परे था क्योंकि माताजी और पिताजी का साया सर से उठ गया. आज भी उन्हीं के दिए गए संस्कार के भरोसे आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.