बीकानेर.आजशनि प्रदोष है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि शनिवार को पड़ने वाली प्रदोष को शनि प्रदोष कहा जाता है. हर माह में दो प्रदोष व्रत आते हैं. प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. यह संतान-सुख प्राप्ति के लिए विशेष व्रत है. शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, इस बार साल का आखिरी प्रदोष व्रत शनिवार को है.
शिव की महिमा :भगवान शंकर सृष्टि सृजन, संहारक और इसके संरक्षक हैं. शिव संपूर्ण सृष्टि के पालनहार है. ब्रह्मा, विष्णु की उत्पत्ति भी उन्हीं से है. त्रिदेव सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करते हैं. भोलेनाथ ने ही सप्ताह के सात दिनों का निर्माण किया है और प्रत्येक दिवस का एक अधिपति भी नियुक्त किया है. महादेव अनंत हैं अर्थात जिसका न तो कोई प्रारंभ है न मध्य और न ही कोई अंत. सृष्टि को नवजीवन देने के लिए वे स्वंय विष धारण कर लेते हैं और दूसरों को अमृत बांट देते हैं.
पञ्चांगकर्ता पंडित राजेन्द्र किराडू कहते हैं कि यदि किसी को संतान प्राप्ति नहीं हो रही हो या संतान जन्म के बाद जीवित न रहे तो धर्म शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. शनि प्रदोष का व्रत करने पर भगवान शिव की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है. भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करें और मंत्रोच्चार, आरती और प्रदोष कथा पढ़कर उनकी पूजा करें. भगवान शिव को फल, मिठाई, प्रसाद आदि चढ़ाएं. उन्होंने बताया कि 6 अप्रैल 2024 शनिवार को सुबह 10.20 बजे चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि शुरू होगी.
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शनि प्रदोष व्रत की कथा : एक शहर में सेठ और सेठानी रहते थे. उनके पास जीवन में ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन इतना सब होते हुए भी उनको संतान सुख नहीं था. जिसके चलते वो हमेशा उदास रहते थे. सारे सुख हासिल करते हुए भी शांति नहीं थी, और सिर्फ इसकी वजह थी संतान प्राप्ति न होना. इसको देखते हुए दंपती ने ईश्वर की भक्ति करने का निर्णय लिया और अपना सारा कारोबार और घर छोड़कर तीर्थ यात्रा पर निकल गए. एक दिन एक संत गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे. सेठ संत के सानिध्य में बैठ गया. तपस्या के बाद जब संत ध्यान से निवृत हुए तो दंपती ने संत को अपनी व्यथा बताई. संत ने उन दोनों को शनि प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. इसके बाद दोनों संत का आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े. जब वो घर वापस लौटे तो श्रद्धा से शनि प्रदोष का व्रत किया और भगवान शिव की पूजा की, जिसके फलस्वरूप सेठ दंपती को एक पुत्र की प्राप्ति हुई.