सागर: एक कानूनविद और शिक्षाविद के रूप में डॉ. हरिसिंह गौर की ख्याति दुनिया भर में है. एक राजनेता के तौर पर भी उनकी कई ऐसी उपलब्धियां है, जिनके जरिए अंग्रेजों को कई सख्त कानून बदलने पड़े और शर्मसार होना पड़ा. मामला सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सीमांत गांधी जैसे नेताओं की गिरफ्तारी से जुड़ा हुआ है. इस मामले में अंग्रेजों के दमनकारी अध्यादेशों के खिलाफ डॉ. हरिसिंह गौर ने सदन में प्रस्ताव पेश किया था.
नागपुर सेंट्रल के सांसद के तौर पर बहस करते हुए जब डॉ. हरिसिंह गौर ने केंद्रीय सभा में अंग्रेजों के दमनकारी कानूनों का काला चिट्ठा खोला, तो उनकी सांसे फूलने लगी और सदन शेम-शेम के नारों से गूंज उठा. हालांकि प्रस्ताव अंग्रेजों के खिलाफ था इसलिए उसका पास होना एक तरह से नामुमकिन था. लेकिन डाॅ. गौर के इस प्रस्ताव से जहां ब्रिटिश राज की वैश्विक बदनामी हुई वहीं आजादी के आंदोलन को और बल मिला.
सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर अंग्रेजों ने जारी किए थे दमनकारी अध्यादेश
डाॅ. हरिसिंह गौर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करने वाले डाॅ. संदीप रावत बताते हैं "1932 में ब्रिटिश सरकार ने आजादी के लिए शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर कुछ दमनकारी अध्यादेश जारी किए थे. उन अध्यादेशों के प्रवाधान बहुत कठोर थे, जिसके तहत आजादी की लड़ाई लड़ रहे दिग्गज नेताओं महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया था. जवाहर लाल नेहरू को भी नजरबंद कर दिया गया."
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देश भर में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आजादी की लड़ाई में एक खालीपन पैदा हो गया. अंग्रेजों की कोशिश थी कि इन अध्यादेशों के जरिए स्वतंत्रता सेनानियों पर बहुत सारे केस लादकर आंदोलन को कमजोर किया जाए. डाॅ. हरिसिंह गौर उस जमाने के नागपुर सेंट्रल के सांसद थे. इन बातों को लेकर वे काफी दुख और पीड़ा में थे. तब उन्होंने केंद्रीय सदन में बतौर सांसद एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया. दिल्ली के केंद्रीय सदन (उपनिवेशीय केंद्रीय सभा) में भारी हंगामे और शोरगुल के बीच प्रस्ताव पेश किया गया. इस सबके बीच केंद्रीय सभा ने डाॅ. गौर के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सदस्यों को समय आवंटित किया और कई दिनों तक बहस चली.