शहडोल:मध्य प्रदेश का शहडोल संभाग आदिवासी बाहुल्य संभाग है. यहां पर बैगा, कोल, गोंड जैसी कई जनजातियां निवास करती हैं. इनकी कई ऐसी परंपराएं हैं जो बहुत अलग हैं. उन्हीं में से एक परंपरा है मौनी व्रत. इसका निर्वहन दीपावली के अगले दिन किया जाता है. इस दिन शाम तक कोई किसी से बात नहीं करता, सभी मौन रहते हैं.
मौनी व्रत में क्या होता है?
मुन्ना बैगा ने इस परंपरा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, अगर कोई मौनी व्रत रखना चाहता है तो उसको सुबह 5 बजे उठकर तालाब में स्नान करना होता है. इसके बाद वह अपना एक जोड़ीदार तय करता है. दोनों मौन व्रत रहने का प्रण करते हैं. मौनी व्रत की पूजा के लिए गांव में एक पंडाल तैयार किया जाता है. गांव की महिलाएं पूजा की थाली सजाकर उस पंडाल में जाती हैं. फिर जो जोड़ीदार मौनी व्रत का प्रण किए रहता है वह नारियल लेकर पंडाल में जाता है. इसके बाद एक बछिया की पूजा जाती है, जिसे गौ लक्ष्मी पूजन कहते हैं. मौनी व्रत जोड़ीदार को हाथ में नारियल लेकर बछिया के पैरों के बीच से 7 बार निकलना होता है. फिर जंगल की तरफ चले जाते हैं.
पूरे दिन जंगल में चराते हैं मवेशी
जो लोग मौनी व्रत करते हैं, वो पूरे गांव के मवेशियों को दिनभर जंगल में चराते हैं. इस दौरान वो किसी से बात नहीं करते, यहां तक की मवेशियों को कंट्रोल करने के लिए भी कोई आवाज नहीं निकालते. शाम को जानवरों को लेकर घर आते हैं. फिर इसके बाद सुबह वाली पूरी प्रक्रिया दोहराई जाती है. फिर से मौनी व्रत का प्रण लेने वाले बछिए के पैरों के बीच से निकलते हैं. इसके बाद मौनी व्रत वाले जोड़ीदारों को घर भेज दिया जाता है. वहीं, बाकी लोग पूजा संपन्न होने के बाद गौ लक्ष्मी की जयकारे लगाते हैं. इसके बाद सभी लोग अपने घर को चले जाते हैं. हालांकि मुन्ना बैगा ने बताया कि, धीरे-धीरे अब लोग ठीक से इसका पालन नहीं करते. मौनी व्रत का प्रण लिए कई लोग तो पूजा के बाद जंगल सीधे जंगल चले जाते हैं. वो मवेशियों को चराने नहीं ले जाते.
व्रत तोड़ने की भी अनोखी परंपरा