शहडोल: नवंबर महीना चल रहा है और हल्की-हल्की ठंड की शुरुआत भी हो चुकी है, खरीफ सीजन की फसल भी अपने आखिरी चरण पर है. रवि सीजन की तैयारी किसान करना शुरू कर चुके हैं, ऐसे में अगर आपके पास ज्यादा पानी की व्यवस्था नहीं है और आप विंटर सीजन में खेती करना चाहते हैं, तो मसूर की खेती कर सकते हैं. मसूर की खेती आपको मालामाल भी बना सकती है, क्योंकि कम पानी में बंपर पैदावार देती है और हर समय डिमांड में रहने वाली फसल है.
मसूर की खेती कब और कैसे करें ?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के प्रजापति बताते हैं कि "मसूर की फसल विंटर सीजन की फसल है रवि सीजन में की जाने वाली खेती है, मसूर की बुवाई अक्टूबर नवंबर तक कर देनी चाहिए, इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और साथ ही यह भूमि में नाइट्रोजन को स्थिर रखती है, भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद भी करती है."
मसूर की ये किस्में शानदार, बीजदर कितना ?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के प्रजापति बताते हैं कि "मसूर की खेती अगर आप करना चाहते हैं, तो शहडोल जिले के लिए जिन बीजों की अनुशंसा की जाती है, उनमें कोटा मसूर-1, कोटा मसूर-2, RVL 11-6, IPL 406, IPL 316 और RVL-31 है. बीज दर की बात करें तो जो छोटे दाने के लिए हैं 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर होता है और बड़े दाने 45 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है." कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के प्रजापति बताते हैं कि बीज की बुवाई से पहले उसे उपचारित जरूर कर लें.
पोषक तत्वों की ऐसे करें पूर्ति
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी. के प्रजापति बताते हैं कि "मसूर की खेती करते समय पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए पहले मिट्टी की जांच कराएं और जो स्वास्थ्य कार्ड बनता है, उसके हिसाब से पोषक तत्व का उपयोग करना चाहिए. मुख्य रूप से प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर खाद लगेगा, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस और 30 से 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ेगी".
किस तरह की मिट्टी, कितना पानी ?
मसूर की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी की आवश्यकता होती है इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति बताते हैं कि "ये हर तरह की मिट्टी में हो जाती है वैसे दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे बेस्ट मानी जाती है. हालांकि, मिट्टी का उपजाऊ होना ही पर्याप्त होता है. कोशिश करें की जहां जल भराव की स्थिति न हो वहां इसकी खेती करें और अक्टूबर से नवंबर तक इसकी बुवाई पूरी कर लेनी चाहिए."