Shab E Barat Significance in Islam: इस्लामिक माह शाबान जो की इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार आठवां महीना है. इसकी 14 तारीख की रात, शब ए बारात कहलाती है. जिसका मतलब होता है, नर्क से आजाद करना यानी की इस रात में अल्लाह (ईश्वर) इंसानों को जहन्नुम से आजाद फरमाता है. जिनकी संख्या बनू कल्ब (एक कबीला, जिसमें बकरियों के बालों की संख्या सबसे अधिक) होती है, उस कबीले की बकरियों के बाल के बराबर लोगों को जहन्नम से निजात (नर्क से आजादी) देता है.
शब ए बारात का मतलब - आजाद करना
लेकिन इस रात में भी तीन लोग ऐसे हैं जिनकी मगफिरत (माफी) नहीं मिलती, जब तक वे अपने गुनाहों से दिल से और सच्ची तौबा (माफी) न मांगे. इसलिए इस रात में मुस्लिम धर्मवालंबी रात में जागकर अल्लाह (ईश्वर) की इबादत (प्राथना) करतें है और निजात (नर्क से आजादी) के लिए दुआ मांगते हैं. ईटीवी भारत से फोन पर बात करते हुए राजगढ़ के शफी मस्जिद के इमाम आलिम, मुहम्मद सुलेमान बताते हैं कि, ''शब ए बारात का मतलब है आजाद करना, अल्लाह रब्बुल अलामीन (ईश्वर) आज की रात में बनू कल्ब (एक कबीला) जहां की बकरियों के बाल के बराबर लोगों को जहन्नम (नर्क) से आजाद फरमाते हैं.
इस रात तय होता है जिंदगी का लेखाजोखा
साथ ही इस रात की फजीलत (अहमियत) बताते हुए मौलाना कहते हैं कि, ''पैगंबर साहब का इरशाद है कि ''शाबान उनका महीना है और रमजान अल्लाह रब्बुल इज्जत (ईश्वर) का महीना है. अल्लाह के नबी (पैगंबर साहब) शाबान के महीने के अंदर सबसे ज्यादा रोजे (उपवास) का एहतमाम (कोशिश) फरमाते थे, जिसकी वजह ये है कि, जब शाबान की 15 वीं रात होती है तो अल्लाह दुनिया के अंदर जितने भी इंसान पैदा होंगे, जिन्हें मौत आएगी, शादी ब्याह करेंगे, तिजारत (व्यापार) करेंगे यानी की जो भी दुनिया से मुतल्लिक (संबंधित) करेंगे और कौन दुनिया के अंदर आएगा और जायेगा, ये पूरी फहरिस्त बनकर तैयार हो जाती है. इसे फरिश्तों (ईश्वर के दूत) के हवाले कर दिया जाता है, तो अल्लाह के नबी (पैगंबर साहब) इसलिए इस माह में रोज रखते थे की,जब फहरिस्त (लिस्ट) तैयार हों और उनका नाम ईश्वर के दरबार में पहुंचे तो वे रोजे की हालत में रहें.
इबादत की रात शब ए बारात
मौलाना बताते हैं कि, ''इस रात के अंदर नफ्ली तौर पर इबादत की जाती है. जिसमें नमाज, कुरआन की तिलावत और अपने गुनाहों से तौबा करना शामिल होता है.'' इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि, ''इस रात को गुजारने के बाद जो दिन आता है उसमें रोजे रखने का हुक्म (आदेश) है. उसकी फजीलत ये है कि, किसी व्यक्ति का एक साल जो गुजर चुका है उसके गुनाहों (पाप) का कफ्फारा (शुद्धि) हो जाता है और इस एक रोजे की वजह से उसे माफी मिल जाती है.''
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