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इबादत और रहमतों की रात 'शब ए बारात' आज, गुनाहों से सच्ची तौबा करने वाला पाएगा निजात, ये तीन लोग रह जाएंगे महरूम

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 25, 2024, 5:58 PM IST

Shab E Barat 2024: 25 फरवरी को देश में शब-ए-बारात का त्योहार मनाया जा रहा है. शब ए बारात मुस्लिमों का एक बड़ा त्यौहार है. इस्लाम के मुताबिक, इस रात में इबादत करने का बहुत सवाब मिलता है. शब ए बारात को फैसलों की रात मानी जाती है. इस रात जिंदगी के आमालों का फैसला होता है.

Shab E Barat Significance in Islam
शब ए बारात आज

Shab E Barat Significance in Islam: इस्लामिक माह शाबान जो की इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार आठवां महीना है. इसकी 14 तारीख की रात, शब ए बारात कहलाती है. जिसका मतलब होता है, नर्क से आजाद करना यानी की इस रात में अल्लाह (ईश्वर) इंसानों को जहन्नुम से आजाद फरमाता है. जिनकी संख्या बनू कल्ब (एक कबीला, जिसमें बकरियों के बालों की संख्या सबसे अधिक) होती है, उस कबीले की बकरियों के बाल के बराबर लोगों को जहन्नम से निजात (नर्क से आजादी) देता है.

शब ए बारात का मतलब - आजाद करना

लेकिन इस रात में भी तीन लोग ऐसे हैं जिनकी मगफिरत (माफी) नहीं मिलती, जब तक वे अपने गुनाहों से दिल से और सच्ची तौबा (माफी) न मांगे. इसलिए इस रात में मुस्लिम धर्मवालंबी रात में जागकर अल्लाह (ईश्वर) की इबादत (प्राथना) करतें है और निजात (नर्क से आजादी) के लिए दुआ मांगते हैं. ईटीवी भारत से फोन पर बात करते हुए राजगढ़ के शफी मस्जिद के इमाम आलिम, मुहम्मद सुलेमान बताते हैं कि, ''शब ए बारात का मतलब है आजाद करना, अल्लाह रब्बुल अलामीन (ईश्वर) आज की रात में बनू कल्ब (एक कबीला) जहां की बकरियों के बाल के बराबर लोगों को जहन्नम (नर्क) से आजाद फरमाते हैं.

इस रात तय होता है जिंदगी का लेखाजोखा

साथ ही इस रात की फजीलत (अहमियत) बताते हुए मौलाना कहते हैं कि, ''पैगंबर साहब का इरशाद है कि ''शाबान उनका महीना है और रमजान अल्लाह रब्बुल इज्जत (ईश्वर) का महीना है. अल्लाह के नबी (पैगंबर साहब) शाबान के महीने के अंदर सबसे ज्यादा रोजे (उपवास) का एहतमाम (कोशिश) फरमाते थे, जिसकी वजह ये है कि, जब शाबान की 15 वीं रात होती है तो अल्लाह दुनिया के अंदर जितने भी इंसान पैदा होंगे, जिन्हें मौत आएगी, शादी ब्याह करेंगे, तिजारत (व्यापार) करेंगे यानी की जो भी दुनिया से मुतल्लिक (संबंधित) करेंगे और कौन दुनिया के अंदर आएगा और जायेगा, ये पूरी फहरिस्त बनकर तैयार हो जाती है. इसे फरिश्तों (ईश्वर के दूत) के हवाले कर दिया जाता है, तो अल्लाह के नबी (पैगंबर साहब) इसलिए इस माह में रोज रखते थे की,जब फहरिस्त (लिस्ट) तैयार हों और उनका नाम ईश्वर के दरबार में पहुंचे तो वे रोजे की हालत में रहें.

इबादत की रात शब ए बारात

मौलाना बताते हैं कि, ''इस रात के अंदर नफ्ली तौर पर इबादत की जाती है. जिसमें नमाज, कुरआन की तिलावत और अपने गुनाहों से तौबा करना शामिल होता है.'' इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि, ''इस रात को गुजारने के बाद जो दिन आता है उसमें रोजे रखने का हुक्म (आदेश) है. उसकी फजीलत ये है कि, किसी व्यक्ति का एक साल जो गुजर चुका है उसके गुनाहों (पाप) का कफ्फारा (शुद्धि) हो जाता है और इस एक रोजे की वजह से उसे माफी मिल जाती है.''

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शब ए बारात पर मगफिरत की दुआ

वहीं ईटीवी भारत से फोन पर बात करते हुए शहर काजी सैय्यद नाजिम अली बताते हैं कि, ''इस रात के अंदर इंसान अपने गुनाहों से ज्यादा से ज्यादा तौबा करे और मगफिरत (गुनाहों से छुटकारे) के लिए दुआ करे. क्योंकि इस रात में आजादी के फैसले कर दिए जाते हैं और उनकी भी लिस्ट बनकर तैयार हो जाती है जो आगामी दिनों में हमारे बीच मौजूद नहीं रहेंगे और जो मौजूद होंगे उन्हें कितनी रोजी दी जाएगी इसके फैसले भी कर दिए जाते है. जो किसी भी आम इंसानों को पता नही होता.''

इन लोगों को नहीं मिलती माफी

लेकिन इसमें तीन लोग ऐसे है, जिनकी माफी इस रात में भी नहीं होती, उनमें सबसे पहले आता है मां बाप का नाफरमान (हुक्म न मानने वाला), रिश्तेदारी तोड़ने वाला, तीसरा और अंतिम व्यक्ति होता है नशा करने वाला जो की नशे का आदि हो और वह नशीली चीज़ (जिसमे वह होश हवास) में न रहे, ऐसी चीज का नशा करने वाला भी इस रात में निजात (नर्क से आजादी) से महरूम (वंचित) होता है. जब तक कि वह सच्चे दिल से इन बातों को त्यागने के लिए तौबा न मांग ले.

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