नई दिल्ली: बहुभाषाविद, मिलनसार और एक उदार वक्ता जो राजनीति के साथ-साथ फिल्मी गीतों पर भी अपनी बात रख सकते थे. सीपीआई-एम के पांचवें महासचिव सीताराम येचुरी एक व्यावहारिक नेता थे, जिनके मित्र सभी राजनीतिक दलों में थे. तीन बार पार्टी प्रमुख रहे येचुरी का गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली एम्स में निधन हो गया. उन्होंने पार्टी की कमान उस समय संभाली थी जब वामपंथी दल का भाग्य ढलान पर था. वे 72 वर्ष के थे. उनके निधन पर देश के तमाम नेताओं ने श्रद्धांजिल दी है.
अपने गुरु से मिलते-जुलते थे येचुरीः येचुरी अपने पूर्ववर्ती प्रकाश करात से बिल्कुल अलग नेता थे. करात से ही उन्होंने अप्रैल 2015 में पार्टी महासचिव का पदभार संभाला था. करात जहां कट्टर रुख के लिए जाने जाते थे, वहीं येचुरी गठबंधन राजनीति के प्रबल सर्मथक थे. वे अपने गुरु दिवंगत पार्टी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत से अधिक मिलते-जुलते थे. सुरजीत 1989 में गठित वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान गठबंधन युग में एक प्रमुख खिलाड़ी थे. दोनों सरकारों को सीपीआई-एम ने बाहर से समर्थन दिया था. येचुरी 2004-2014 तक यूपीए के शासन में जाने-माने व्यक्ति थे.
सोनिया गांधी के सबसे विश्वसनीय साथीः बताया जा रहा है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक विश्वसनीय सहयोगी थे. वह पहले गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्हें गांधी ने 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने के बाद फोन किया था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था. इससे पहले, वामपंथियों के सबसे चर्चित चेहरों में से एक येचुरी ने कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के साथ मिलकर संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार किया था. यह एक ऐसा समीकरण था जो 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर यूपीए से वाम दलों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद भी कायम रहा. इस मुद्दे पर यूपीए सरकार के साथ चर्चा में येचुरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
जब इंदिरा गांधी से मांग लिया था इस्तीफाःयेचुरी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्रों का नेतृत्व कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विश्वविद्यालय के चांसलर पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, तब उन्हें एक अलग पहचान मिली. अक्टूबर 1977 में येचुरी छात्रों के एक समूह का नेतृत्व कर प्रधानमंत्री आवास पर पहुंचे और उन्हें जेएनयू के चांसलर पद से इस्तीफा मांगते हुए एक ज्ञापन सौंपा.
एक बार इस घटना को याद करते हुए येचुरी ने कहा था कि आपातकाल के दिनों में छात्रों की गिरफ्तारी के नोटिस विश्वविद्यालय में छात्रावास के दरवाजों पर चिपका दिए जाते थे. विश्वविद्यालय में गांधी के चांसलर पद से इस्तीफे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ और छात्रों ने प्रधानमंत्री आवास तक पैदल चलकर उनके इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन दरवाजे पर चिपकाने का फैसला किया. प्रधानमंत्री आवास पर पहुंचने पर पांच छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल अंदर भेजने के लिए कहा गया. हालांकि, छात्रों ने जोर देकर कहा कि उन सभी को अंदर जाने दिया जाना चाहिए, जिसे स्वीकार कर लिया गया. जब छात्र प्रधानमंत्री आवास के अंदर गए, तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि गांधी खुद उनसे मिलने आई थीं.