सरगुजा : अंबिकापुर शहर से लगा महामाया पहाड़ अपने अंदर कई तरह के रहस्य छिपाए बैठा है.यही वजह है कि इस पहाड़ को लेकर लोगों के मन में आस्था धीरे-धीरे करके बढ़ने लगी.यही वजह रही कि इस पहाड़ में एक ऐसा चमत्कार हुआ,जिसे देखने के लिए अब यहां लोगों का तांता लगा रहता है. शुरु में जब लोगों ने गणेश स्थापना शुरू की तो इस स्थान की दिव्यता सामने आने लगी.
महावत समाज के लोग करते थे पूजा :इस पहाड़ पर पूजा करने वाले महावत समाज के लोग बताते हैं कि यहां एक पत्थर में चमत्कार हुआ और बीते 2 वर्षों में पत्थर ने भगवान गणेश का रूप लेना शुरू कर दिया है. एक पत्थर जो वर्षो से समतल था वो हाथी के मुख नुमा आकर का बन चुका है. भगवान गणेश की पूजा हर बुधवार को करनी चाहिये. बुद्धि के देवता गणेश की इस दिन पूजा करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है.
''यहां एक पत्थर में भगवान गणेश की आकृति स्वयं ही प्रकट हो गई है. श्री गणेश के भक्त हर बुधवार को इस स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करते हैं. भक्त श्री गणेश को दूब की माला अर्पित करें, हल्दी के पानी मे डुबोकर उन्हें दूब चढ़ाएं, प्रसाद में मीठे पकवान चढ़ायें, लावा अर्पित करें और लाल सिंदूर जरूर चढ़ाएं.इससे उनकी मनोकामना जरुर पूरी होगी."- दीपक शर्मा, ज्योतिष
पर्वत की तराई में स्थित हैं मां महामाया : महामाया पहाड़ की तराई में मां महामाया का मंदिर है. महामाया सरगुजा के लोगों की आस्था का केन्द्र है. लेकिन पूरे सरगुजा में कहीं भी गणपति का कोई मंदिर या स्थान नहीं था. पुराने लोगों से पता चलता था कि पहाड़ के ऊपर कहीं हाथी पखना नामक स्थान है जो गणपति धाम था. कुछ साल पहले पहाड़ पर गांव वालों ने गणेश स्थापना शुरु की तो वहां लोगों का आना जाना बढ़ा. शहर में गणेश विसर्जन काआयोजन करने वाली समिति बाल गंगाधर गणपति स्थापना समिति के सदस्य भी इस पहाड़ पर आए और उन्होंने मूर्ति स्थापित की.अब रोजाना पूजा पाठ होता है.
हाथी पखना स्थान में प्रकट हुए गणपति :पहाड़ के नीचे महावत समुदाय में लोग निवास करते हैं. यही लोग यहां वर्षों से पूजा पाठ करते आ रहे हैं. ये लोग वहां नागमाता और भगवान शिव की पूजा करते थे, और भजन कीर्तन करते थे. महावत समाज के चंद्रमा सारथी बताते हैं " हम लोग महावत समाज के हैं, हमारे पूर्वज यहां हाथी बांधते थे.वर्षों से बाप-दादा यहां पूजा करते थे, हम लोग भी यहां पूजा करते हैं.''
''इस स्थान पर पत्थरों में एक छोटी सी गुफा है, जिसमें हम लोग भजन कीर्तन का सामान रखते थे, वो पहले समतल था, लेकिन अब उसमें भगवान गणेश प्रकट हो गए हैं, पत्थर हाथी का रूप ले चुका है"- चंद्रमा सारथी, महावत समाज
वहीं समाज के अन्य सदस्य फूलचंद नागेश की माने तो पूर्वजों के समय से पहाड़ पर पूजा होती चली आ रही है.नीचे में महामाया माई विराजी हैं.हाथी पखना भी शुरू से ही है. यहां हम लोगों की बड़ी श्रद्धा है, लोगों की मनोकामना पूरी होती है.
पहाड़ में स्वयंभू गणपति :इस स्थान के पुनरुत्थान में अहम भूमिका निभाने वाले बाल गंगाधर गणपति स्थापना समिति के भारत सिंह सिसोदिया बताते हैं " जब भी लोग मां महामाया का ध्यान करते थे तो मां गौरी के साथ गणेश जी का भी ध्यान आता था. लेकिन हमारे यहां गणेश जी का कोई स्थान नहीं था.ये जरूर पता था कि महामाया पहाड़ पर हाथी पखना है.लेकिन हम लोग उसे इग्नोर करते थे. लेकिन धीरे-धीरे हम लोगों को खुद ये आभास होने लगा कि हाथी पखना में ही भगवान गणेश विद्यमान हैं.आज लोगों के सहयोग से वहीं पर मंदिर स्थापित हो गया.