नई दिल्ली:दुनिया भर के देशों में चिड़ियाघरों की निगरानी करने वाली वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ जू एंड एक्वेरिएम (वाजा) के प्रेसीडेंट ने हाल ही में दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क का निरीक्षण किया. यहां उन्होंने अफ्रीकी हाथी शंकर को देखा. भारत में फिलहाल सिर्फ दो अफ्रीकी हाथी बचे हैं. ऐसे में यहां अफ्रीकी हाथी विलुप्त हो सकते हैं. इसको लेकर उन्होंने चिंता जाहिर की. दिल्ली जू में शंकर नामक हाथी साल 2001 से अकेला है. वहीं भारत का दूसरा मेल अफ्रीकी हाथी मैसूर जू में है. प्रजनन बढ़ाने के लिए अफ्रीकी मादा हाथी की तलाश की जा रही है, लेकिन यह तलाश अभी तक पूरी नहीं हुई है. वाजा अब भारत में अफ्रीकी हाथी की संख्या बढ़ाने के लिए काम करेगा. 'शंकर' के लिए विदेशों में भी साथी की तलाश की जा रही है.
उपहार में मिले थे दो हाथी:दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क (दिल्ली जू) में वर्ष 1998 में अफ्रीका के जिम्बाब्वे से एक नर और एक मादा अफ्रीकन हाथी के बच्चे फ्लाइट से आए थे. ये दोनों हाथी तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को जिम्बाब्वे की तरफ से उपहार स्वरूप भेंट किए गए थे. तब इन हाथियों की उम्र दो साल थी. दिल्ली जू आने के बाद नर हाथी का नाम शंकर और मादा हाथी का नाम बिम्बई रखा गया था. हालांकि वर्ष 2001 में बीमारी के कारण बिम्बई की मौत हो गई थी, जिसके बाद से शंकर अकेला है.
अफ्रीका से लाने का प्रयास:देश में कहीं भी मादा अफ्रीकी हाथी नहीं है, जिससे इनकी संख्या नहीं बढ़ पा रही है. पूर्व में अफ्रीकी देशों को पत्र लिखकर भी मादा अफ्रीकी हाथी की मांग की जा चुकी है. वहीं अगर किसी अफ्रीकी देश से मादा हाथी लाई भी जाती है, तो इसमें करोड़ों रुपये का खर्च आएगा. जानकारी के लिए बता दें कि जब कोई जानवर विदेश से लाया जाता है तो उसे पिंजरे में डालने के लिए कई महीने पहले से अभ्यास शुरू हो जाता है. साथ ही सफर के दौरान पूरी मेडिकल टीम उसके साथ होती है. जहां से जानवर लाया जाता है, वहां से उसका कुछ महीनों का खाना भी लाया जाता है. देश में आने के बाद जानवर को क्वारंटीन में रखा जाता है, जिसके बाद उसे जू में लाया जाता है.