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भूमकाल दिवस पर इमली के पेड़ की क्यों होती है पूजा - BHUMKAL DIWAS

अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ बस्तर के अमर शहीदों ने भूमकाल आंदोलन शुरु किया था.

SHAHEED GUNDADHUR
भूमकाल दिवस (ETV Bharat)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 10, 2025, 10:55 PM IST

Updated : Feb 14, 2025, 4:52 PM IST

बस्तर:जगदलपुर में परंपरागत वेशभूषा में धुरवा समाज के लोग जुटे. सभी ने अन्याय के विरुद्ध शुरू हुए विद्रोह की याद में भूमकाल दिवस मनाया और क्रांतिकारी वीर गुण्डाधुर समेत अन्य क्रांतिकारियों को याद कर नमन किया. बस्तरवासियों ने शहीद गुण्डाधुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. शहर में रैली निकाली गई और उस इमली पेड़ की भी पूजा की, जहां क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई थी.

भूमकाल आंदोलन में शहीद हुए वीर सपूत: धुरवा समाज के संभागीय कोषाध्यक्ष सोनसारी बघेल ने बताया कि साल 1910 में नेतानार के पास अलनार के जंगल में हुए संघर्ष में कई आदिवासी मारे गये. अलनार के युद्ध मैदान में लड़ाई के बाद अंग्रेजी सेना ने लोगों को पकड़ने के लिए योजना बनाया. इस दौरान गुण्डाधुर भाग गए. लेकिन उनके साथी डेबरी धुर व अन्य साथियों को अंग्रेजों ने पकड़ा और उन्हें शहर के गोलबाजार सहित इमली पेड़ में उल्टा लटका दिया था ताकि उन्हें देखकर उनका साथी गुण्डाधुर आये और उसे पकड़कर अंग्रेजी सेना मार डाले.

भूमकाल दिवस (ETV Bharat)

इमली के पेड़ पर दी गई थी फांसी: 1 सप्ताह बीतने के बाद भी गुण्डाधुर नहीं आये. इस दौरान उनके साथियों ने इमली पेड़ में अपना दम तोड़ दिया. उनके ही याद में हर साल भूमकाल दिवस के दौरान इमली पेड़ में पहुंचकर मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.

गांव के देवी देवताओं की होती है पूजा: हर साल गांव में देवी देवताओं का पूजा पाठ किया जाता है. विभिन्न स्थानों में भूमकाल दिवस मनाया जाता है. 10 तारीख को जगदलपुर शहर, 11 फरवरी को कोकावाडा, 12 तारीख को सुकमा, 13 तारीख को बकावंड ब्लॉक और 14 फरवरी को बस्तर के अलनार गांव में भूमकाल दिवस मनाया जाता है.

वीर मैदान में अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के: अलनार में आंदोलन के दौरान भीषण युद्ध हुआ था, जिसे वीर मैदान के नाम से जाना जाता है. 16 तारीख को दरभा, 17 फरवरी को नेगानार, 18 तारीख को मोरठपाल में और 19 तारीख को गुण्डाधुर के साथी डेबरीधुर की याद में केलाऊर गांव में भूमकाल दिवस मनाया जाता है.

भूमकाल आंदोलन क्या है:बस्तर में साल 1910 में ब्रिटिश राज के खिलाफ एक आदिवासी विद्रोह हुआ, जिसे भूमकाल आंदोलन कहा जाता है. भूमकाल का मतलब है जमीन से जुड़े लोगों का आंदोलन. अंग्रेजी हुकुमत के सामने अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर योद्धाओं की याद में हर साल भूमकाल दिवस मनाया जाता है.

कौन थे गुंडाधुर: अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में गुंडाधूर आदिवासियों के नायक थे. साल 1910 में बस्तर में हुए भूमकाल आंदोलन के नेताओं में गुंडाधूर ही एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिसे अंग्रेजी सरकार जिंदा या मुर्दा पकड़ने में नाकामयाब रही.

पूरे बस्तरवासी भूमकाल दिवस का समापन 22 फरवरी को नेतानार गांव में देवी देवताओं की सेवा अर्जी के साथ करते हैं. इस दौरान बड़ी में भीड़ जुटती है और देवी देवता भी मौजूद रहते हैं - पप्पूराम नाग,संभागीय अध्यक्ष,धुरवा समाज

10 फरवरी को मनाया जाता है भूमकाल दिवस: धुरवा समाज के संभागीय अध्यक्ष पप्पूराम नाग ने बताया कि साल 1910 में शुरू हुए भूमकाल आंदोलन की याद में हर साल भूमकाल दिवस 10 फरवरी को मनाया जाता है. इस परम्परा की शुरूआत 2007-08 से की गई है. हर साल भूमकाल दिवस 04 फरवरी को हिरानार से शुरू होता है, जहां से भूमकाल की शुरुआत होती है.

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Last Updated : Feb 14, 2025, 4:52 PM IST

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