बस्तर:जगदलपुर में परंपरागत वेशभूषा में धुरवा समाज के लोग जुटे. सभी ने अन्याय के विरुद्ध शुरू हुए विद्रोह की याद में भूमकाल दिवस मनाया और क्रांतिकारी वीर गुण्डाधुर समेत अन्य क्रांतिकारियों को याद कर नमन किया. बस्तरवासियों ने शहीद गुण्डाधुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. शहर में रैली निकाली गई और उस इमली पेड़ की भी पूजा की, जहां क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई थी.
भूमकाल आंदोलन में शहीद हुए वीर सपूत: धुरवा समाज के संभागीय कोषाध्यक्ष सोनसारी बघेल ने बताया कि साल 1910 में नेतानार के पास अलनार के जंगल में हुए संघर्ष में कई आदिवासी मारे गये. अलनार के युद्ध मैदान में लड़ाई के बाद अंग्रेजी सेना ने लोगों को पकड़ने के लिए योजना बनाया. इस दौरान गुण्डाधुर भाग गए. लेकिन उनके साथी डेबरी धुर व अन्य साथियों को अंग्रेजों ने पकड़ा और उन्हें शहर के गोलबाजार सहित इमली पेड़ में उल्टा लटका दिया था ताकि उन्हें देखकर उनका साथी गुण्डाधुर आये और उसे पकड़कर अंग्रेजी सेना मार डाले.
इमली के पेड़ पर दी गई थी फांसी: 1 सप्ताह बीतने के बाद भी गुण्डाधुर नहीं आये. इस दौरान उनके साथियों ने इमली पेड़ में अपना दम तोड़ दिया. उनके ही याद में हर साल भूमकाल दिवस के दौरान इमली पेड़ में पहुंचकर मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.
गांव के देवी देवताओं की होती है पूजा: हर साल गांव में देवी देवताओं का पूजा पाठ किया जाता है. विभिन्न स्थानों में भूमकाल दिवस मनाया जाता है. 10 तारीख को जगदलपुर शहर, 11 फरवरी को कोकावाडा, 12 तारीख को सुकमा, 13 तारीख को बकावंड ब्लॉक और 14 फरवरी को बस्तर के अलनार गांव में भूमकाल दिवस मनाया जाता है.