सागर।होली के त्यौहार में जितना रंगों को महत्व है, उतना ही महत्व फूलों का है. भले ही आज केमिकल युक्त रंग होली के त्यौहार में अपना कब्जा जमा चुके हैं. लेकिन आज भी लोग टेशू और दूसरे फूलों के साथ होली का त्यौहार मनाते हैं. एक और विदेशी पेड़ पर इन दिनों जमकर फूल आए हैं और इसका उपयोग हर्बल कलर के लिए किया जाता है. ये पेड़ मुख्यतः दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है. ये पेड़ भारत में कम देखने को मिलता है. लेकिन सागर में यूनिवर्सिटी के वॉटनिकल गार्डन और सहोद्राबाई राय पॉलीटेक्निक में ये पेड़ लगा हुआ है. जिसके ऊपर पीले फूल छा गए हैं. जानकार बताते हैं कि ये पेड़ सिर्फ बसंत ऋतु में 10-15 दिनों के लिए फूलता है.
फूलों के खिलने का लोगों को बेसब्री से इंतजार
सागर यूनिवर्सिटी का वॉटनिकल गार्डन अपनी विरासत के लिए देशभर में जाना जाता है. इस गार्डन में दुनियाभर के पेड़-पौधे मिल जाएंगे. इसी गार्डन में इस सुनहरे पीले फूलों वाला ये पेड़ लगा हुआ है. जिसके फूलों के खिलने का इंतजार लोगों को बेसब्री से रहता है. इसके अलावा सागर के सहोद्राबाई राय पॉलीटेक्निक कॉलेज में भी दो पेड़ लगे हुए हैं. इस पेड़ पर साल में एक बार सिर्फ बसंत ऋतु में फूल आते हैं और नवरात्रि तक ये फूल खत्म हो जाते हैं. वैसे तो ये पौधा कई औषधीय गुणों से भरपूर है. लेकिन आजकल इसका उपयोग गार्डन की सजावट के लिए ज्यादा हो रहा है. इस फूल से हर्बल कलर भी बनाए जा सकते हैं. टेशू के फूलों के रंग के साथ इन शानदार पीले फूलों से होली को और भी रंगीन बनाया जा सकता है.
हिंदी में बसंतकुंज और अंग्रेजी में सिल्वर ट्रंपेट ट्री है फूल का नाम
सागर में इन दिनों जो पीले रंग का फूल एक विदेशी पेड़ पर देखा जा रहा है। इसका वानस्पतिक नाम Tabebuia aurea (तबेबुइया औरिया) है. ये पेड़ दक्षिण अमेरिका, ब्राजील और सूरीनाम देश में पाया जाता है. भारत में ये वेस्टर्न घाट में देखने मिलता है. सामान्य भाषा में tree of gold और silver trumpet tree कहते हैं. इसे हिंदी में बसंत कुंज भी कहते हैं और यह फैविसी कुल का पेड़ है. सामान्य तौर पर इसकी ऊंचाई 8 से 10 मीटर होती है और कहीं-कहीं 12 मीटर तक ऊंचाई देखने मिलती है. इस पेड़ की खासियत ये है कि सालभर में एक बार सिर्फ थोड़े से समय के लिए इसमें फूल आते हैं. पेड़ में बसंत ऋतु में फूल आते हैं. होली के आसपास देखने मिलते हैं और नवरात्रि तक समाप्त हो जाते हैं.