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आसिफी इमामबाड़े से पहली मोहर्रम को निकलेगा शाही जरीग का जुलूस - Muharram 2024

इस्लामिक कलेंडर (Muharram 2024) के अनुसार रविवार को अय्यामे अजा माहे मोहर्रम का चांद नजर आते ही नवास ए रसूल हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों के प्रति गम इजहार करने का सिलसिला शुरू हो गया. इसी कड़ी में सोमवार को शाही जरीग का जुलूस आसिफी इमामबाड़े से निकाला जाएगा.

शाही जरीह तैयार करता कलाकार.
शाही जरीह तैयार करता कलाकार. (Photo Credit-Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 8, 2024, 8:13 AM IST

Updated : Jul 8, 2024, 10:17 AM IST

मोहर्रम के जुलूस की तैयारी करते कलाकार. (Video Credit-Etv Bharat)

लखनऊ : अहले अजा यह चांद मोहर्रम का चांद है, निकला गमे हुसैन के मौसम का चांद है, आ गया माहे अजा आंसू बहा लो फातिमा जैसे नौहों से पुराने लखनऊ के मोहल्ले और गलियां रविवार शाम गूंज उठे. इस्लामिक कलेंडर के अनुसार पहला महीना मोहर्रम का चांद रविवार को हुआ. आसमान में चांद नजर आते ही अजादारों ने इमामबाड़ों और अजाखानों में फर्शे अजा बिछा कर नवासए रसूल हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों का गम मनाया.

माहे मोहर्रम की पहली तारीख सोमवार से शहर के अलग-अलग इमामबाड़ों में मजलिसों और जलसों का सिलसिला शुरू हो जाएगा. माहे मोहर्रम में अशरे की मुख्य मजलिसें विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित इमामबाड़ों में होंगी. जहां हजारों की संख्या में अजादार शामिल होने की उम्मीद है. विक्टोरिया स्ट्रीट पर सुबह से मजलिसों का सिलसिला शुरू होकर रात तक जारी रहता है.

हुसैनाबाद एंड एलाइड ट्रस्ट की ओर से पहली मोहर्रम को निकलने वाला शाही जरीह का जुलूस सोमवार को निकलेगा. ऐतिहासिक आसिफी इमामबाड़े से शाम 6 बजे शाही मोम की जरीह का जुलूस निकाला जाएगा. जुलूस में मोम की शाही जरीह के अलावा अबरक की जरीह, हाथी-ऊंट पर शाही निशान लिए लोग, हजरत इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक जुलजनाह, हजरत अब्बास की निशानी अलम सहित अन्य तबर्रुकात शामिल होंगे. जिनकी अकीदतमंद जियारत कर दुआ मांगेंग. जुलूस रूमी गेट, घण्टाघर, सतखण्डा के सामने से होता हुआ देर रात हुसैनाबाद स्थित छोटा इमामबाड़ा पहुंचेगा. जहां देर रात तक अकीदतमंद तबर्रुकात की जियारत करेंगे.

दो महीन आठ दिन चलेगा गम का सिलसिला :गम का यह सिलसिला दो महीने आठ दिन तक जारी रहेगा. अय्यामे अजा माहे मोहर्रम का चांद नजर आते ही पुराने लखनऊ के इलाकों में या हुसैन-या हुसैन की सदाएं गंंूज उठीं. अजादारों ने कर्बला के शहीदों का गम मनाने के लिए रंगीन कपड़े उतार कर स्याह लिबास पहने. महिलाओं ने भी जेवर और चूड़ियों सेहित सुहाग की तमाम निशानियां उतार दीं. अजादारों ने इमामबाड़ों, अजाखानों और अपने घरों पर स्याह परचम लगाए. घरों में फर्शे अजा बिछा कर महिलाओं ने मातम किया और कर्बला के शहीदों का गम मनाया. देर रात तक इमामबाड़े और अजाखाने सजायए गए. मोहर्रम की मजलिसों से पहले अजादारों ने इमामबाड़ों और अपने घरों के अजाखाने भी सजाए.

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Last Updated : Jul 8, 2024, 10:17 AM IST

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