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रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उदाहरण था जयपुर, लेकिन तंत्र किताबों तक सिमट कर रह गया - Rain Water Harvesting

जयपुर की बसावट जल संरक्षण और संवर्धन का संदेश देती आई है. सवाई जयसिंह द्वितीय ने जिस तकनीक से जयपुर को बसाया वो रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का सबसे बेहतरीन उदाहरण है, क्योंकि जयपुर का अपना कोई वाटर रिसोर्स नहीं था. इस वजह से यहां वर्षा जल का संचयन करते हुए कृत्रिम रिसोर्स डवलप किए गए. हालांकि, विरासत से विकास की ओर बढ़ते हुए जयपुर का वाटर मैनेजमेंट सिस्टम कहीं पीछे छूट गया.

Jaipur Water Harvesting System
जयपुर की बसावट में जल संरक्षण और संवर्धन का संदेश (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 29, 2024, 7:04 PM IST

रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उदाहरण था जयपुर (ETV Bharat Jaipur)

जयपुर:राजधानी में इन दिनों बारिश का दौरा चल रहा है, लेकिन ये बारिश का पानी न तो जयपुर का भूजल स्तर बढ़ा रहा है और न ही कहीं स्टोर हो रहा है. नालों में व्यर्थ बहता ये पानी आज जयपुर के उस रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की याद दिला रहा है जो अब सिर्फ किताबों तक सिमट कर रह गया है. इतिहास गवाह है कि जयपुर में पानी की एक-एक बूंद की कद्र की जाती थी, उसको सहेज कर रखा जाता था.

टांके-बावड़ी में वर्षा जल स्टोर किया जाता था, जिससे वर्षाकाल के बाद बचे हुए 10 महीने में नियमित जलापूर्ति हो पाती थी, लेकिन अब शहर में ऐसा देखने को नहीं मिलता. आज बावड़ियों की संभाल नहीं होने से कुछ सूख चुकी हैं. वर्षा जल का संचय करने वाली नहरें नाले बन चुकी हैं. जयपुर की तीनों चौपड़ों का स्वरूप बदल चुका है. यही वजह है कि जयपुर के जिस जलसंवर्धन को वैज्ञानिक भी स्टडी किया करते थे, वो आज सिर्फ किताबी ज्ञान बनकर रह गई है.

जल संवर्धन का ध्यान : ईटीवी से खास बातचीत में इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि 18 नवम्बर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जिस जयपुर की नींव रखी थी, उसमें जल संवर्धन का भी ध्यान रखा गया. परकोटे में बनी तीनों चौपड़, बावड़ियां, नहरें इसी वर्षा जलसंवर्धन के उदाहरण हैं. जयपुर की संरचना में वर्षा जल संचयन और बारिश के निकासी का विशेष तौर पर इंतजाम किया गया था. चूंकि जयपुर के पास अपना वाटर रिसोर्स नहीं था, ऐसे में जयपुर वासियों की पेयजल समस्या का समाधान करने के लिए सवाई जयसिंह ने हरमाड़ा के पास से एक नहर निकाली थी, जिससे बालानंद मठ के पीछे सरस्वती कुंड में वर्षा जल का स्टोरेज होता था और जयपुर के अंदर वो नहर गोपनीय रूप से चलती थी, जिसे गुप्त गंगा भी कहते थे.

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ये नहर इतनी चौड़ी थी कि दो घुड़सवार आराम से चल सकते थे और जिस भी आम आदमी को जल की आवश्यकता होती थी, वो छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ पर बने कुंड और मोखों से पानी ले लिया करते थे. लेकिन सुविधाओं के इस दौर में जयपुर की ऐतिहासिक वर्षा जलसंवर्धन तकनीक अब कहानियों में ही सिमट कर रह गई है.

जल निकासी और स्टोरेज की प्लानिंग : जयपुर के इतिहास से परिचय देवेंद्र कुमार ने बताया कि जयपुर एक प्लांड शहर है. इसकी बसावट से पहले यहां जल निकासी और जल स्टोरेज की प्लानिंग की गई थी. यहां बने कुंड-बावड़ी इसका परिचय कराते हैं. कुछ साल पहले जयपुर में चले ऑपरेशन पिंक में गुप्त गंगा की नहर भी मिली थी, लेकिन वर्तमान समय में उनका कोई उपयोग नहीं होने के चलते उसे दोबारा ढक दिया गया था. इसी तरह तालकटोरा भी जल संचयन का एक उदाहरण है, जो पहले तो सूख गया था और अब उसे पर्यटन केंद्र के रूप में वापस से संवारा जा रहा है.

बहरहाल, फिलहाल बारिश का दौर जारी है. विधानसभा सत्र भी चल रहा है, लेकिन जयपुर के इस वर्षा जल संवर्धन तंत्र को संवारने पर किसी तरह की चर्चा नहीं हो रही. शहर की बावड़ियों के प्रति भी सरकार और प्रशासन की कोई खास रूचि नहीं दिख रही. यही वजह है कि आज जयपुर का बाशिंदा गर्मी के दिनों में दूसरे शहर में बने बिसलपुल बांध से आने वाले पानी के लिए मोहताज हो गया है.

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