पूर्णिया: आज पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन बिहार के पूर्णिया और सीमांचल के भीतर कई गांवों के सरकारी स्कूलों का दर्द कोई नहीं सुनने वाला है. यहां के शिक्षक और बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नाव पर सवार होकर कोसी नदी पार करने को मजबूर हैं. यह मामला पूर्णिया के अमौर प्रखंड के खाड़ी महीनगांव पंचायत का है. जहां शिक्षकों को स्कूलों तक पहुंचने के लिए रोजाना सुबह सबेरे उठकर नदी के घाट पर पहुंचना पड़ता है.
जोखिम में शिक्षकों की जान:पूर्णिया के शिक्षकों का आलम यह है कि कभी दलदल में फंसकर तो कभी खेत के मेड़ के रास्ते शिक्षक समय पर स्कूल पहुंचते हैं. निजी नाव पर प्रत्येक दिन इन्हें 40 रुपए किराया चुकाना पड़ता है. ये सभी टीचर बगैर कोई सेफ्टी के जान हथेली पर लेकर कोसी नदी को पार कर अपने-अपने स्कूलों तक पहुंचते हैं.
नाव ही एक मात्र सहारा: कई बार ऐसा भी हुआ है कि इन शिक्षकों की नाव कोसी नदी के बीच मझधार में फंस गई और शिक्षकों की सांसे अटक गई, लेकिन ऊपर वाले कि मेहरबानी से घंटों बाद किसी तरह इनकी नाव किनारे लग गई. यहां नाव ही एकमात्र सहारा है.
पुल की पीलर से टकरा गई था नाव, अटक गई थी सांसें: प्राथमिक विद्यालय खाड़ी मुर्गी टोल के शिक्षक गुलशन परवीन का कहना है कि कई शिक्षक भी प्रतिदिन पैसे खर्ज कर इसी नाव से पार कर स्कूल जाते हैं. 3 महीने पहले का एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें नाव पुल के पीलर से टकरा गई थी और बाढ़ के समय तेज धार में बह गई थी. तब नाविकों की सूझबूझ से नाव डूबने से बच गई थी. इसी तरह एक बार शिक्षिका नाव से नदी में गिर गईं थीं.
अधूरा पुल दे रहा दर्द: बता दें कि बिहार के पूर्णिया के अमौर प्रखंड के खाड़ी महीनगांव पंचायत में 2007 ईस्वी में करोड़ों की लागत से कनकई नदी पर पुल बनना शुरू हुआ, लेकिन 2013 में आधा अधूरा पुल बनाकर छोड़ दिया गया. तब से यह पुल बीच नदी में खड़ा है, लिहाजा लोग नाव से आवागमन करते हैं.
"इस खाड़ी पुल के निर्माण के लिए उन लोगों ने दर्जनों बार आंदोलन किया. किशनगंज के सांसद मोहम्मद जावेद, अमौर के विधायक अख्तरुल ईमान और जदयू नेता मास्टर मुजाहिद ने भी कई बार आश्वासन दिया, लेकिन आज तक यह पुल नहीं बना."- असगर अली, ग्रामीण महीनगांव, खाड़ी
देर से पहुंचने पर कट जाता है अटेंडेंस: प्राथमिक विद्यालय मुर्गी टोला खाड़ी के शिक्षक स्वराज आलम ने बताया कि शिक्षक-शिक्षिकाएं कभी पानी में घुसकर तो कभी कीचड़ में घुसकर तो कभी खेत के मेड़ पर रेंगते हुए स्कूल तक पहुंचते हैं और बच्चों को शिक्षा देते हैं. इन शिक्षकों का कहना है कि उन लोगों को प्रतिदिन समय पर स्कूल पहुंचना होता है. अगर विलंब होगा तो उनका अटेंडेंस कट जाएगा. अक्सर नाव के इंतजार में दो-दो घंटा लेट हो जाता है.