मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर में जेल की कालकोठरी के नाम से दिल दहल जाता है. जब कोई जेल की चारदीवारी के अंदर कैद हो जाता है तो वह समझता है कि अब उसकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बचा, बस अब आगे की जिंदगी जेल की सलाखों के बीच में कटेगी. हालांकि जेल की काल कोठरी के अंधेरा को चीरते हुए शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में कैदी आत्मनिर्भर बन रहे हैं. यहां के कैदियों को गोट फार्मिंग का तरीका सिखाया जा रहा है, ताकि जेल से छूटने के बाद ये बंदी किसी तरह के गलत काम से दूर रहे.
सेंट आरसेटी की पहल: इसको लेकर सेंट आरसेटी ने जिम्मा उठाया है. यह सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अधीन चलने वाला संस्थान है. जो लोगो को स्वरोजगार करने में मदद करता है. संस्थान की निदेशक कल्याणी कुमारी ने बताया कि वे जेल में बंद कैदियों को स्वरोजगार करने के लिए गोट फार्मिंग का तरीका सीखा रही हैं. ताकि जेल से बाहर निकलने पर वे गोट फार्मिंग का काम शुरू कर सके, यह आसान भी है. रोजगाड़ में लगने से बंदी गलत कार्य से नहीं जुड़ेंगे, इसको लेकर संस्थान काम भी कर रही है.
"35 लोग का एक ग्रुप था. वे ग्रुप में 35 लोग को प्रशिक्षण दे सकती है. इसको लेकर जेल प्रशासन को बताया जिसके बाद, जेल प्रशासन की ओर से काफी सपोर्ट भी किया गया. इस मौके पर जेल अधीक्षक ब्रजेश कुमार मेहता भी मौजूद रहे."-कल्याणी कुमारी, निदेशक, सेंट आरसेटी
35 कैदियों ने ली ट्रेनिंग: कार्यक्रम के दौरान जेल अधीक्षक ब्रजेश कुमार मेहता भी मौजूद रहे. उनके अगुआई में 35 कैदियों का एक ग्रुप गोट फार्मिंग सिखने के लिए तैयार था. उन्हे 10 दिन का प्रशिक्षण दिया गया. संस्थान की निदेशक ने बताया उन्हे प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा. जेल से छूटने के बाद बंदी अपना रोजगाड़ कर सकेंगे.