देहरादून: तराई के इलाकों में मोर मिलना आम बात है, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मोर दिखना किसी कौतूहल से कम नहीं है. जी हां, करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक मोर पहुंच गया है. इस मोर को देखने के बाद वन्यजीव विशेषज्ञ भी हैरान हैं तो पर्यावरण वैज्ञानिकों को भी चौंका कर रख दिया है. आमतौर पर निचले जंगलों या गर्म इलाकों में पाए जाने वाला मोर इतनी ऊंचाई में शायद पहले कभी देखा गया हो, लेकिन पहाड़ों में मोर का दिखना चर्चाओं का विषय बन गया है.
बागेश्वर में दिखा मोर:दरअसल, यह मोर बागेश्वर में दिखाई दिया है. जिससे पर्यावरणविद भी अचंभित हैं कि आखिर मोर समुद्रतल से करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंच गया. जबकि, मोर के लिए समुद्र तल से 400 मीटर की ऊंचाई को मुफीद माना जाता है. बागेश्वर में मोर दिखने के बाद वृक्ष पुरुष और पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा का कहना है कि मोर देखा जाना बड़ी बात नहीं है. क्योंकि, इससे ज्यादा ऊंचाई रानीखेत की है. जहां हर साल मई महीने में मोर दिख जाते हैं.
उनका कहना है कि बागेश्वर जिले में पहले भी मोर देखा गया था. हालांकि, वन विभाग उसे ट्रैक नहीं कर पाया था. पर्यावरणविद किशन सिंह मलड़ा आगे कहते हैं कि वन विभाग को अकेले घूमते मोर के साथ एक अन्य मोर यहां लाकर छोड़ देना चाहिए. ताकि, उनका जोड़ा बन जाए. इससे मोर को लेकर अध्ययन का भी एक द्वार खुलता.
क्या बोले वन रेंजर:वहीं, वन रेंजर श्याम सिंह करायत बताते हैं कि मोर के दिखाई देने की सूचना मिली थी. जिसके बाद मोर को दोबारा देखने के लिए ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं. यदि एक से ज्यादा मोर आगे दिखाई देते हैं इसे जलवायु परिवर्तन की स्थिति माना जा सकता है. उन्होंने बताया कि मोर दिखने की सूचना 3-4 महीने पहले काफलीगैर से भी सामने आई थी. वहां भी ट्रैप कैमरे लगाए गए, लेकिन वहां कोई सफलता नहीं मिली.