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उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर रोकने के लिए बड़ा एक्शन, आड़े जलाने पर लगाई रोक - BAN ON BUSH BURNING IN HILLY AREAS

वनाग्नि रोकने के लिए वन विभाग ने बड़ा कदम उठाया है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में झाड़ी जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है.

BAN ON BUSH BURNING IN HILLY AREAS
उत्तराखंड में आड़ा जलाने पर लगी रोक (FILE PHOTO-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 11 hours ago

देहरादूनः उत्तराखंड में अब ग्रामीणों को खेतों की साफ सफाई के रूप में आड़ा जलाने की परंपरा छोड़नी होगी. वन विभाग ने एक तरफ आड़ा (बुवाई से पहले खेत की सफाई के दौरान मिली झाड़ी व अन्य) जलाने की परंपरा को समयबद्ध करने के निर्देश दिए हैं तो प्रमुख सचिव वन ने 31 मार्च के बाद इसे पूरी तरह प्रतिबंधित किए जाने के लिए कहा है. वन विभाग द्वारा यह कदम फॉरेस्ट फायर की घटनाओं को लेकर उठाया जा रहा है. ताकि वनाग्नि की घटनाओं को कम किया जा सके.

उत्तराखंड में फायर सीजन के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं वन विभाग और आम लोगों के लिए भी सिरदर्द बन जाती है. खास बात यह है कि उत्तराखंड में ऐसी घटनाओं के बढ़ने से न केवल जनहानि की स्थिति पैदा हो जाती है. बल्कि पर्यावरण को भी इससे खासा नुकसान होता है. इसी को देखते हुए वन विभाग ने फायर सीजन से पहले ही जरूरी कदम उठाए जाने पर काम शुरू कर दिया है. इस दिशा में प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने कुछ दिशा निर्देश विभिन्न जिलों के जिलाधिकारियों को भी दिए हैं.

इसके तहत उत्तराखंड में प्रमुख सचिव वन ने 31 मार्च के बाद खेतों की साफ-सफाई के लिए जलाए जाने वाले आड़ा की परंपरा को प्रतिबंधित किए जाने के निर्देश दिए हैं. जबकि इससे पहले भी इस व्यवस्था को समयबद्ध करने के लिए कहा गया है. प्रमुख सचिव आर के सुधांशु ने जिलाधिकारी को साप्ताहिक या पाक्षिक (दो हफ्ते) रूप से इस पर बैठकें करते हुए एनडीआरफ, एसडीआरएफ, पैरामिलिट्री फोर्स और आपदा क्विक रिस्पांस टीम का सहयोग लिए जाने के लिए कहा गया है.

उत्तराखंड में 7 जिलों को जंगलों में आग की घटनाओं के लिहाज से संवेदनशील माना गया है. इसमें कहा गया है कि इन जिलों में वन क्षेत्र चीड़ बाहुल्य होने के कारण वनाग्नि की घटनाएं होने की संभावनाएं यहां काफी ज्यादा रहती हैं. इन जिलों में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, टिहरी, पौड़ी और उत्तरकाशी शामिल है.

जिलाधिकारियों को यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शरारती तत्वों को भी चिन्हित किया जाना चाहिए जो जानबूझकर या आपसी रंजिश के लिए ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. इसके अलावा ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर वैधानिक कार्रवाई भी किए जाने के निर्देश दिए गए. वन विभाग द्वारा वनों में आग की घटना के लिए संवेदनशीलता का आकलन करते हुए फॉरेस्ट फायर रिस्क जोनेशन मैपिंग किया गया है.

ये भी पढ़ेंः वनाग्नि रोकने के लिए शीतलाखेत मॉडल पर होगा काम, ड्रोन से की जाएगी निगरानी

देहरादूनः उत्तराखंड में अब ग्रामीणों को खेतों की साफ सफाई के रूप में आड़ा जलाने की परंपरा छोड़नी होगी. वन विभाग ने एक तरफ आड़ा (बुवाई से पहले खेत की सफाई के दौरान मिली झाड़ी व अन्य) जलाने की परंपरा को समयबद्ध करने के निर्देश दिए हैं तो प्रमुख सचिव वन ने 31 मार्च के बाद इसे पूरी तरह प्रतिबंधित किए जाने के लिए कहा है. वन विभाग द्वारा यह कदम फॉरेस्ट फायर की घटनाओं को लेकर उठाया जा रहा है. ताकि वनाग्नि की घटनाओं को कम किया जा सके.

उत्तराखंड में फायर सीजन के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं वन विभाग और आम लोगों के लिए भी सिरदर्द बन जाती है. खास बात यह है कि उत्तराखंड में ऐसी घटनाओं के बढ़ने से न केवल जनहानि की स्थिति पैदा हो जाती है. बल्कि पर्यावरण को भी इससे खासा नुकसान होता है. इसी को देखते हुए वन विभाग ने फायर सीजन से पहले ही जरूरी कदम उठाए जाने पर काम शुरू कर दिया है. इस दिशा में प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने कुछ दिशा निर्देश विभिन्न जिलों के जिलाधिकारियों को भी दिए हैं.

इसके तहत उत्तराखंड में प्रमुख सचिव वन ने 31 मार्च के बाद खेतों की साफ-सफाई के लिए जलाए जाने वाले आड़ा की परंपरा को प्रतिबंधित किए जाने के निर्देश दिए हैं. जबकि इससे पहले भी इस व्यवस्था को समयबद्ध करने के लिए कहा गया है. प्रमुख सचिव आर के सुधांशु ने जिलाधिकारी को साप्ताहिक या पाक्षिक (दो हफ्ते) रूप से इस पर बैठकें करते हुए एनडीआरफ, एसडीआरएफ, पैरामिलिट्री फोर्स और आपदा क्विक रिस्पांस टीम का सहयोग लिए जाने के लिए कहा गया है.

उत्तराखंड में 7 जिलों को जंगलों में आग की घटनाओं के लिहाज से संवेदनशील माना गया है. इसमें कहा गया है कि इन जिलों में वन क्षेत्र चीड़ बाहुल्य होने के कारण वनाग्नि की घटनाएं होने की संभावनाएं यहां काफी ज्यादा रहती हैं. इन जिलों में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, टिहरी, पौड़ी और उत्तरकाशी शामिल है.

जिलाधिकारियों को यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शरारती तत्वों को भी चिन्हित किया जाना चाहिए जो जानबूझकर या आपसी रंजिश के लिए ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. इसके अलावा ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर वैधानिक कार्रवाई भी किए जाने के निर्देश दिए गए. वन विभाग द्वारा वनों में आग की घटना के लिए संवेदनशीलता का आकलन करते हुए फॉरेस्ट फायर रिस्क जोनेशन मैपिंग किया गया है.

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