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पुलिस और गुंडों द्वारा जबरन मकान खाली कराने पर HC सख्त, राज्य सरकार को दिया 1 लाख का मुआवाज देने का निर्देश

पटना में कंकड़बाग एलआईजी हाउसिंग कॉलोनी में फ्लैट में पुलिस बल की सहायता से गुंडों के जरिए जबरन मकान खाली कराए जाने के मामले में पटना हाईकोर्ट ने मुआवजा देने की घोषणा की है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 24, 2024, 11:03 PM IST

पटना: बिहार की पटना हाईकोर्ट ने कंकड़बाग थाना अंतर्गत एलआईजी हाउसिंग कॉलोनी ( टेंपो स्टैंड) के एक फ्लैट से तथाकथित तौर पर पुलिस बल की सहायता से गुंडों द्वारा जबरन मकान खाली कराए जाने और मकान में रहने वाले व्यक्ति को बिना किसी कारण के सुबह से शाम थाने में जबरन बैठाए रखने के मामले को काफी गंभीरता से लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़ित को बतौर मुआवजा एक लाख रुपए भुगतान करने का निर्देश दिया है.

दो महीने में मुआवजा देने का निर्देश: कोर्ट ने मुआवजे की राशि याचिकाकर्ता को दो महीने में भुगतान करने का निर्देश दिया. साथ ही राज्य के पुलिस विभाग को कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस मामले के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को चिन्हित कर उनसे मुआवजे की राशि वसूली जाये. साथ ही उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाए. जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने सागर प्रसाद की अपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर ये आदेश दिया.

राज्य के सभी थानों को दिशा निर्देश जारी : कोर्ट ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को भी आदेश दिया है कि वह भी शीघ्र विभागीय स्तर पर राज्य के सभी थानों में यह दिशा निर्देश जारी करें. इसमें ये निर्देश दिये जायें कि बिना किसी आपराधिक मामले में अभियुक्त बनाए हुए या शक के आधार पर या किसी आपराधिक मामले की जांच पड़ताल या पूछताछ के सिलसिले के अलावा अन्य कारण से अगर कोई अन्य कारण पुलिस जबरन नहीं रोक सकती है.

याचिकाकर्ता के वकील सुधांशु त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि 17 अगस्त 2022 के सुबह जबरन कुछ गुंडों के साथ दो अपराधी किस्म के व्यक्ति आये और मकान खाली करने को कहा. उन्होंने कहा कि इस मकान को हमने खरीद लिया है. यही नहीं, नजदीकी कंकड़बाग थाने से एक महिला दरोगा और वहां के थाना अध्यक्ष ने उनके वकील को जबरन जीप में बैठाकर थाने में ले गए और वहां सुबह से शाम बैठा रखा.

याचिकाकर्ता के अनुपस्थिति में उन गुंडों की सहायता से अवांछित तत्वों ने याचिकाकर्ता और उसके परिवार को बेदखल कर दिया. इसी घटना में पुलिस ने याचिकाकर्ता के बयान और उसके आरोपों पर कोई प्राथमिकी तक भी दर्ज नहीं किया, जिसके लिए उसे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

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