पलामू: पलामू का इलाका राजनीतिक रूप से जागरूक इलाका माना जाता है. किसी जमाने में कहा जाता था पलामू की राजनीति झारखंड की सत्ता की दिशा और दशा तय करती है. राजनीतक रूप से जागरूक पलामू के इलाके में ठेकेदारों का कद बढ़ता जा रहा है. खास कर वैसे ठेकेदार जो छोटे-छोटे योजनाओं का क्रियान्वयन करवाते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में पलामू में ठेकेदारों का कद बढ़ता नजर आया है. यह ठेकदार ग्रामीण इलाकों में प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाते बिगाड़ते नजर आए.
प्रत्याशियों के पक्ष में ठेकेदारों ने की बैठक, खुद को भैया जी कहलवाना पसंद कर रहे ठेकेदार
2024 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी के पक्ष एवं विपक्ष में ठेकेदारों ने कई इलाकों में बैठक की. कई इलाकों में विरोध और पोस्टरबाजी में इनकी भूमिका रही. एक ठेकेदार ने एक प्रत्याशी का विरोध करवाने के लिए कई जगहों पर भूमिका निभाई है. जबकि कई ठेकदार खास ठेकदार के पक्ष में ग्रामीणों के साथ बैठक की. ग्रामीण इलाके में ठेकेदारों ने प्रत्याशियों की जनसभा करवाई है और कई इलाकों में जनसंपर्क में भूमिका निभाई है. राजनीति में सक्रिय ठेकदार खुद को भैया जी कहलवाना पसंद कर रहे हैं. यह गांव और ग्रामीणों इलाकों में खुद को भैया जी कहलवाना पसंद कर रहे हैं.
कभी पलामू का राजनीति पूरे राज्य को प्रभावित था
पलामू की राजनीति अभिभाजित बिहार और झारखंड को प्रभावित करती थी. झारखंड बिहार में कई ऐसी बड़ी हस्तियां हैं जिन्होंने पलामू के रास्ते अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की है. अलग राज्य गठन के बाद पलामू के रास्ते ही नेता सत्ता पर काबिज होते थे. पलामू से निकलकर कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां दूसरे इलाके से सांसद-विधायक और मंत्री बने हैं. आज पलामू की राजनीतिक विरासत पर ठेकेदारों का कब्जा हो गया है.