बाड़मेर : बीकॉम कर चुकी निशा बोथरा का सपना था कि वह बैंकिंग सेक्टर में नौकरी करें, लेकिन कोरोना काल ने उनके जीवन में एक नया मोड़ ला दिया. इस दौरान उनके मन में वैराग्य का भाव आया और उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ने का निर्णय लिया. अब, 16 फरवरी को वे दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में मुमुक्षु निशा बोथरा ने अपने इस यात्रा के बारे में बताया है.
कोरोना काल ने सिखाया जीवन का कोई मोल नहीं :निशा बोथरा बाड़मेर जिले के बिशाला गांव की रहने वाली हैं, हालांकि अब वे ओडिशा में अपने परिवार के साथ रहती हैं. उनके परिवार में दादी, माता-पिता, तीन बहनें और एक भाई हैं. निशा बताती हैं कि कोरोना काल में बहुत से लोग अपनी जान गंवा रहे थे और यह देखकर उन्हें एहसास हुआ कि जीवन का कोई स्थिर मोल नहीं है, और कभी भी मृत्यु आ सकती है.
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बचपन में चंचल रही निशा :निशा बताती हैं कि वह बचपन में बहुत चंचल थी और स्कूटी पर घूमने का शौक था. वह कभी आध्यात्मिक नहीं रही, लेकिन कोरोना काल में ऐसा महसूस हुआ कि उन्हें अब कुछ और करना चाहिए. इस दौरान उनकी मां ने उन्हें जैन गुरुवर के पास भेजा. वहां रहने के बाद उन्हें घर लौटने का मन नहीं हुआ. निशा ने कहा कि कोरोना काल में उनके मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हुआ.