पलामू: बीड़ी (केंदू) पता प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का एक बड़ा पोषक तत्व रहा है. माओवादी बीड़ी पत्ता से मिलने वाले लेवी की रकम का इस्तेमाल हथियार एवं विस्फोटक की खरीद में करते रहे हैं. हाल के दिनों में माओवादियों की शाख कमजोर हुई है. झारखंड बिहार में अंतिम सांसे गिर रहे हैं, इनके कैडर की संख्या हजारों से दर्जनों में सिमट गई है.
माओवादी अपने संगठन को मजबूत करने के लिए एक बार फिर से बीड़ी पत्ता के कारोबार से लेवी वसूली की फिराक है. माओवादी बीड़ी पत्ता की लेवी की रकम से एक बार फिर से अपने कैडर को बढ़ाने के फिराक में है. इधर झारखंड पुलिस एवं सुरक्षाबलों ने भी माओवादियों के मंसूबे को नाकाम करने के लिए योजना तैयार की है.
फरवरी से जून तक बीड़ी पत्ता का होता है कारोबार, प्रति बैग माओवादी वसूलते हैं लेवी
झारखंड के इलाके में फरवरी से 15 जून तक बीड़ी पत्ता का कारोबार होता है. मानसून के आगमन से पहले बीड़ी पत्ता को बाहर के राज्य में सप्लाई कर दी जाती है. माओवादी बीड़ी पत्ता के कारोबार से प्रति बैग के हिसाब से लेवी की रकम वसूलते रहे हैं. पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा और बिहार से सटे हुए सीमावर्ती इलाकों में प्रतिवर्ष 35 लाख बैग के करीब बीड़ी पत्ता का कारोबार होता है. प्रति बैग माओवादी 70 से 80 रुपए की लेवी वसूलते है. 2016-17 में माओवादियों का टॉप कमांडर अभय यादव ने पुलिस को बताया था कि मध्यजोन और कोयल शंख जोन में 70 करोड़ रुपए से अधिक की रकम की लेवी वसूली होती है.
माओवादी लेवी की रकम से सांगठनिक ढांचे को करते हैं मजबूत
एक पूर्व माओवादी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि माओवादियों के सांगठनिक ढांचे में बीड़ी पत्ता से मिलने वाले लेवी की राशि की बड़ी भूमिका रही है. इस पैसे की रकम से कई तरह की सामग्री खरीदने हैं और एक हिस्सा केंद्रीय कमेटी को जाता है. छकरबंधा और बुढापहाड़ के इलाके में माओवादियों को मजबूत करने में इसकी भूमिका रही है. उन्होंने बताया कि हाल के दिनों में परिस्थितियां बदली है. छकरबंधा और बूढ़ा पहाड़ के इलाके में सबसे अधिक लेवी वसूली होती थी लेकिन माओवादियों की यहां स्थिति बेहद ही कमजोर हो गई है.