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नक्सलियों के गढ़ में बंदूक की जगह कलम ने दिखाई ताकत, तिलैया गांव के घर-घर में सरकारी नौकरी - NAXAL AFFECTED VILLAGE

नक्सलियों के गढ़ में युवाओं ने कलम को हथियार बनाया है. गया के तिलैया गांव में अब किताबों का जादू साफ दिखाई देने लगा है.

गया के तिलैया गांव युवाओं ने कलम को हथियार बनाया
गया के तिलैया गांव युवाओं ने कलम को हथियार बनाया (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 12, 2024, 8:42 PM IST

गया:गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के तिलैया गांव मेंनक्सली अशांति का पर्यायबन चुका अब एक अलग कारण से सुर्खियों में हैं. यहां अब बदलाव की बयार बहने लगी है. यहां पर युवा पीढ़ी ने बंदूक की जगह बदलाव के लिए शिक्षा का रास्ता अपनाया और कमाल कर दिया. नक्सल प्रभावित उस गांव में अब किताबों का जादू साफ दिखाई देने लगा है. पिछले तीन दशकों में इस गांव से 200 से अधिक ऐसे युवा निकले, जिन्होंने सरकारी नौकरी पाई है.

नक्सलियों के गढ़ में खुशहाली:गया के अति नक्सल प्रभावित बांकेबाजार का गांव तिलैया में कभी नक्सलियों का खौफ था. शाम ढलते ही लोग घरों से निकलना बंद कर देते थे, बत्तियां बुझाने लगती थीं. तब 1990 में यहां ‘सरस्वती संघ’ बनाकर लोगों ने नयी सोच का साहस किया और गांव के बच्चों को भटकने से बचाने का बीड़ा उठाया. संघ से लोग जुड़ते रहे और खुशहाली की ओर बढ़ते गए.

गया का तिलैया गांव की कहानी (ETV Bharat)

गांव के 200 लोग हैं सरकारी नौकरी में: आज गांव के युवाओं ने कमाल कर मिसाल की एक बड़ी लकीर खींच दी. अब इस गांव के 200 लोग शिक्षा, इंजीनियरिंग, रेलवे, सेना और प्रशासनिक क्षेत्र में सरकारी नौकरियों में हैं. तिलैया गांव में स्थित आजाद पुस्तकालय में उच्च प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सैकड़ों महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं. यहां हर दिन दर्जनों छात्र बैठ कर अपनी तैयारी करते हैं.

1990 में था नक्सलवाद हावी: गया से 65 किमी दूर बांके बाजार है. ये नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. जिले में जब 1990 के दशक में नक्सलवाद बढ़ा और युवाओं का रुझान नक्सलवाद की ओर होने लगा. तभी बांके बाजार तिलैया गांव के सीनियर छात्रों और बड़े बुजुर्गों ने इलाके और गांव के युवाओं को सही रास्ते पर लाने के लिए बड़ी पहल की. यहां सरस्वती संघ को तिलैया गांव के पूर्व छात्रों द्वारा संचालित की जाती है. इसमें किसी भी प्रकार का दान या सरकारी फंड नहीं लिया जाता है.

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पढ़ो और पढ़ाओ का नारा:तिलैया गांव में शिक्षा के लिए क्रांतिकारी नारा दिया गया था. 1990 में सरस्वती संघ की स्थापना के बाद आजाद पुस्तकालय अस्तित्व में आया. 1993 में सबसे पहले एक कमरे में पुस्तकालय शुरू की गई. 2003 में तत्कालीन विधायक उदयनारायण चौधरी ने गांव के लोगों और छात्रों का हौसला बढ़ाने के लिए विधायक निधि से पुस्तकालय भवन का निर्माण कराया अभी पुस्तकालय की मरम्मती के कार्य स्थानीय मुखिया के द्वारा कराया जा रहा है.

"शिक्षित होंगे तो समझदारी आएगी और इस कारण व सही मार्ग चुनेंगे. नक्सलवाद उग्रवाद का रास्ता छोड़कर सही मार्ग को अपनाएंगे. इस का फल भी मिला है, प्रयास किया गया तो आज इस क्षेत्र में 200 से अधिक लोग सरकारी सेवा में आकर देश और राज्य की सेवा में लगे हैं. सिर्फ तिलैया गांव में 100 से अधिक लोग सेवा में हैं."- शंकर प्रसाद प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय, नौहर गया

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नक्सलियों कभी डिस्टर्ब नहीं किया: गांव में शिक्षा के प्रयास के संबंध में नक्सलियों को सूचना थी. हमारी एकता और लग्न के कारण नक्सलियों ने कभी डिस्टर्ब नहीं किया. इसके कारण हमें सफलता प्राप्त करने में और उत्साह हुई. गांव के आसपास नक्सली घटनाएं होती थी लेकिन इस गांव में नक्सली भी दूरी बनाने लगे थे. इसका मूल कारण शिक्षा और विद्यार्थियों में एकता की भावना थी. नक्सलवाद हावी नहीं हुआ.

आजाद पुस्तकालय तिलैया (ETV Bharat)

"आजाद लाइब्रेरी में सेल्फ स्टडी करके सरकारी सेवा में गए हैं. उनमें से हर महीने कोई न कोई व्यक्ति तैयारी कर रहे छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए गांव आता है. उनके संगठन ने धर्म, जाति, समुदाय और क्षेत्र के भेदभाव को मिटा कर 'पढ़ने और पढ़ाने' के सिद्धांत पर काम किया है. इस काम में सभी वर्ग सहयोग मिला."- जितेन्द्र कुमार, अध्यक्ष, सरस्वती संघ

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