नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव को लेकर प्रचार जोरों पर है. चुनाव में इस बार वामपंथी छात्र संगठनों आइसा और एसएफआई ने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए गठबंधन किया है. ETV Bharat ने आइसा और एसएफआई गठबंधन की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी सावी गुप्ता से बातचीत की. सावी ने कहा कि डूसू चुनाव में एबीवीपी और एनएसयूआई की तरफ से हमेशा एक महिला प्रत्याशी को सिर्फ टोकनिज्म के रूप में उतर जाता है और फॉर्मेलिटी पूरी कर दी जाती है. वहीं, आइसा और एसएफआई ने अपने पैनल में इस बार भी पिछली बार की तरह तीन महिला कैंडिडेट दिए हैं.
हम छात्र-छात्राओं और मार्जिनलाइज्ड सेक्शन की आवाज:सावी ने कहा किहम छात्र-छात्राओं और मार्जिनलाइज्ड सेक्शन की आवाज बनाकर चुनाव मैदान में उतरे हैं. डूसू चुनाव में मनी और मसल पावर हमें बंद करनी होगी. तभी हम छात्र-छात्राओं के असली मुद्दों तक पहुंचेंगे और उनके समाधान कर पाएंगे. हमारे लिए डूसू चुनाव में सबसे बड़े मुद्दे फीस वृद्धि, डीयू और उसके कॉलेज में छात्राओं के यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आंतरिक शिकायत समिति भी कार्यरत नहीं है. उसके फेयर इलेक्शन नहीं कराए जाते हैं. जेंडर सेंसटाइजेशन सेल नहीं है. योगा और फिट इंडिया जैसे कोर्स हमारे ऊपर लाद दिए गए हैं.
पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटी पर सीधा हमला बोला जा रहा:उन्होंने कहा किहम स्पेशलाइजेशन के लिए डीयू में आए थे. वह चीजें कहीं पीछे छूट गई हैं. सैक और वैक जैसे कोर्स के नंबर जुड़ने लगे हैं. उनको अनिवार्य किया गया है. ऐसे में छात्र प्रैक्टिकल की तैयारी करते हुए ही रह जाते हैं, जिन मुख्य विषयों पर उन्हें फोकस करना चाहिए था उन चीजों से दूर किया जा रहा है. एक पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटी पर सीधा हमला बोला जा रहा है, जिससे यहां गरीब वर्ग के यूपी, बिहार, हरियाणा, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों के गरीबों के बच्चों के लिए यहां शिक्षा हासिल करना मुश्किल हो रहा है.
डीयू के छात्र-छात्राओं के पास हॉस्टल नहीं:डीयू के छात्र-छात्राओं के पास हॉस्टल नहीं हैं. सिर्फ दो से तीन प्रतिशत छात्र-छात्राओं को ही हॉस्टल मिल पाते हैं. महंगे पीजी के कमरे में रहकर छात्र पढ़ने को मजबूर हैं. रेंट कंट्रोल एक्ट नहीं है. किराए में हर साल वृद्धि कर दी जाती है, जिसका सीधा असर बच्चों के ऊपर पड़ता है. उनकी पढ़ाई पर पड़ता है.
डूसू चुनाव में बंद करनी होगी मनी और मसल पावर:मनी और मसल पावर डूसू चुनाव में चलती है. एबीवीपी और एनएसयूआई चुनाव भी जीतते रहे हैं. ऐसे में आप अपने आपको कहां देखते हैं. किस तरह से विकल्प बन पाएंगे? इस सवाल के जवाब में सावी ने कहा कि आइसा और एसएफआई गठबंधन प्रत्याशी के रूप में हमने छात्रों को एक विकल्प दिया है. जरूरी नहीं आप पैसा और बड़ी-बड़ी गाड़ी वालों को वोट दें. या उन लोगों को वोट दें जो आपके मुंह पर पर्चे उड़ा कर जा रहे हैं. आप हम जैसे अपने बीच के लोगों को वोट दें, जो मुद्दों की बात कर रहे हैं. जो आपकी समस्याओं के लिए लड़ने को तैयार हैं. हम खुद मार्जिनलाइज सेक्शन से आते हैं तो उस वर्ग की बात अच्छे से समझते हैं.
खर्च की सीमा सिर्फ 5000 रुपए:डूसू चुनाव में प्रत्याशी के लिए खर्च की सीमा सिर्फ 5000 रुपए है. ऐसे में प्रत्याशी लाखों रुपए खर्च करते हैं तो क्या उनके ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए? इस सवाल के जवाब में सावी ने कहा कि 5000 रुपए तो कहने की बात है. यहां लाखों रुपए प्रत्याशी चुनाव में खर्च करते हैं. एबीवीपी और एनएसयूआई के प्रत्याशियों का एक दिन का गाड़ियों के तेल का खर्चा ही 15 से 20 हजार रुपए है. डूसू चुनाव में मुझे लगता है कि मनी और मसल पावर की जगह छात्र-छात्राओं के मुद्दे पर एक अच्छी डिबेट होनी चाहिए. मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए और उसके आधार पर वोट मांगे जाने चाहिए. इसी के आधार पर हम चुनाव लड़ रहे हैं. हमें चुनाव में पैसे खर्च करने की कोई जरूरत नहीं है.
2019 से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं सावी गुप्ता:डूसू चुनाव लड़ने में इंटरेस्ट कैसे आया, इस सवाल पर सावी ने कहा कि उन्होंने वर्ष 2019 में स्नातक कोर्स में डीयू के कॉलेज में दाखिला लिया था. उस दौरान मैंने देखा कि किस तरह से डूसू के चुनाव में लोग पैसे का दम दिखाते हुए बिना मुद्दों के लिए काम करके चुनाव जीत जाते हैं. मुझे लगा कि डीयू स्टूडेंट और गरीब तबके के बच्चों की बात करने के लिए भी कोई प्रत्याशी होना चाहिए. इस चीज को मैंने समझा और लॉ की स्टूडेंट बनने के बाद मैंने और भी करीबी से और अच्छे ढंग से चीजों को जाना. फिर आइसा से जुड़ी और आइसा ने मुझे चुनाव लड़ने का मौका दिया है. छात्र-छात्राओं के मुद्दों को लेकर मजबूती से चुनाव लड़ रही हूं. मैं दिल्ली की ही रहने वाली हूं. रोहिणी में रहती हूं.
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