देहरादूनःउत्तराखंड में एक तरफ सूख रहे प्राकृतिक स्रोत एक गंभीर समस्या बन रही है. दूसरी तरफ देहरादून शहर के आसपास मौजूद वेटलैंड से मिथेन गैस का रिसाव हो रहा है. जो भविष्य के लिहाज से और अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि मिथेन गैस, कार्बन डाईऑक्साइड से करीब 20 गुना अधिक नुकसानदायक है. शहर के आसपास मौजूद न सिर्फ वेटलैंड से मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. बल्कि देहरादून की रिस्पना नदी से भी बड़ी मात्रा में मीथेन गैस के उत्सर्जन की बात वैज्ञानिक कह रहे हैं. ऐसे में वैज्ञानिक शहरों के आसपास मौजूद वेटलैंड, रिस्पना नदी के साथ ही टिहरी झील का भी अध्ययन कर रहे हैं. ताकि इनसे निकल रही मीथेन गैस की मात्रा को जाना जा सके.
शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास मौजूद दलदली भूमि या फिर पानी वाले जमीन को वेटलैंड (आर्द्रभूमि) कहा जाता है. देहरादून शहर के आसपास पहले काफी वेटलैंड हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई ये वेटलैंड भी लुप्त होती चली गई. देहरादून शहर के पास आसन कंजर्वेशन रिजर्व एक मात्र ऐसा वेटलैंड है जो बेहतर स्थिति में है. आसन वेटलैंड को रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है. इसके अलावा देश के अन्य जगहों पर मौजूद 114 वेटलैंड को भी रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है.
वेटलैंड के फायदे और नुकसान:देहरादून के शहर के समीप अभी भी कई वेटलैंड मौजूद है. लेकिन नकरौंदा वेटलैंड की स्थिति न सिर्फ काफी दयनीय है. बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी काफी खतरनाक बन गया है. क्योंकि नकरौंदा में लगातार बढ़ रही गंदगी से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. जो ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा, वेटलैंड जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग होने के साथ ही इसे पृथ्वी की किडनी और सुपर बायोलॉजिकल मार्केट भी कहा जाता है जो वेटलैंड विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र है. वेटलैंड, बाढ़ नियंत्रण, जल चक्र और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने में भी काफी सहायक होता है. कुल मिलाकर, पृथ्वी पर जीवन बचाए रखने के लिए वेटलैंड का होना बेहद आवश्यक है.
वर्तमान में बढ़ा कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट पीपीएम: वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है कि वैश्विक तापमान बढ़ रहा है. प्री इंडस्ट्रियल एरा 1980 से पहले ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति कुछ और थी. लेकिन मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट (Concentration Gradient) 420 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) है. जबकि साल 2002 में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट 365 पीपीएम था. हालांकि, ये स्थिति ग्लोबल स्तर पर है. लेकिन लोकल स्तर पर ये और भी ज्यादा कम की जा सकती है. लेकिन ये उस क्षेत्र के डेमोग्राफी, जियोलॉजी और उपलब्ध रिसोर्सेज पर निर्भर करता है.
बढ़ती भीड़ पर अध्ययन की जरूरत: उत्तराखंड चारधाम यात्रा में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसे में बढ़ती भीड़ पर भी अध्ययन करने की जरूरत है. ताकि इनकी जानकारी मिल सके कि बढ़ती भीड़ का असर कहीं उस क्षेत्र में तो नहीं पड़ रहा है. उत्तराखंड में मौजूद नेचुरल जल स्रोत, वेटलैंड्स पर वाडिया इंस्टीट्यूट अध्ययन करता है. वर्तमान समय में इंस्टीट्यूट की ओर से किए जा रहे अध्ययन में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि जो वेटलैंड्स मौजूद हैं. क्या वो भी ग्लोबल वार्मिंग और इंसानों का शिकार हो रहे हैं. अध्ययन में पता चला कि प्रदेश में शहरों के आसपास स्थिति वेटलैंड्स में मौजूद पानी अब सिर्फ एग्रीकल्चर इस्तेमाल के लिए ही इस्तेमाल हो सकते है.