करनाल:हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. वहीं, सनातन धर्म में पूर्णिमा का भी विशेष महत्व होता है. इस समय हिंदू वर्ष का मार्गशीर्ष महीना चल रहा है और मार्गशीर्ष महीने में आने वाली पूर्णिमा सबसे अहम माना जाता है. पूर्णिमा के दिन गंगा नदी या अन्य पवित्र नदी में स्नान करने का विधि विधान होता है. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. जिस घर में सुख समृद्धि आती है. शास्त्रों में बताया गया है कि मार्गशीर्ष महीना भगवान श्री कृष्ण का प्रिय महीना होता है. इसलिए विधिवत रूप से उनकी पूजा अर्चना की जाती है.
मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को चंद्र देवता की पूजा अर्चना करने उपरांत उनको अर्घ्य देने से सभी मनोकामना पूरी होती है. इस दिन व्रत रखने का भी विधान होता है और माना जाता है कि जो भी इंसान इस दिन व्रत रखता है. उसको उसका 32 गुना फल की प्राप्ति होती है. तो आईए जानते हैं कब है मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा और क्या है इसकी पूजा का विधि विधान.
कब है मार्गशीर्ष पूर्णिमा:पंडित पवन शर्मा तीर्थ पुरोहित कुरुक्षेत्र ने बताया कि पूर्णिमा का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और सत्यनारायण की पूजा अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु की साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा की शुरुआत हिंदू पंचांग के अनुसार 14 दिसंबर को शाम के 4:58 से शुरू हो रही है. जबकि इसका समापन अगले दिन 15 दिसंबर को दोपहर बाद 2:31 पर होगा. सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा 15 दिसंबर के दिन मनाई जाएगी.
पूर्णिमा के दिन दान और स्नान करने का विशेष महत्व होता है. दान और स्नान करने के दो शुभ मुहूर्त पूर्णिमा के दिन है. पहले ब्रह्मा शुभ मुहूर्त सुबह 5:17 से शुरू होकर सुबह 10:12 तक रहेगा. दूसरा शुभ अभिजीत मुहूर्त सुबह 11: 56 से लेकर दोपहर 12:37 तक रहेगा. इन दोनों शुभ मुहूर्त में स्नान और दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय शाम के 5:13 पर होगा.
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व:तीर्थ पुरोहित ने बताया कि मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा 2024 की अंतिम पूर्णिमा है, जिसका विशेष महत्व है. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. उसके साथ-साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना करने का विधान है. कुछ जातक इसलिए व्रत भी रखते हैं, जो काफी अच्छा माना जाता है. ऐसा माना जाता है की पूर्णिमा के दिन व्रत करने से 32 गुना फल की प्राप्ति होती है.