सहारनपुर: कावड़ मार्ग पर चल रहे प्रतिष्ठानों पर नेमप्लेट को लेकर सियासी गलियारों में हल-चल मची हुई है. योगी सरकार के निर्दशों का असर लखनऊ से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक देखने को मिला. वहीं, सहारनपुर के गांव मानकी का मनकेश्वर महादेव मंदिर न सिर्फ दोनों धर्मों के बीच सद्भाव, सहयोग और भाईचारे की अनोखी मिसाल कायम कर रहा है. बल्कि, सद्भाव और एकता का भी संदेश दे रहा है. खेत की जुताई करते वक्त हल के आगे शिवलिंग के प्रकट होने और दूध की धार बहने की घटनाएं इस मंदिर को पवित्र और चमत्कारी बनाती हैं. जिसके चलते यह मंदिर अब दोनों समुदायों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है. मनकेश्वर महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है.
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है मनकेश्वर महादेव मंदिर (video credit- Etv Bharat) आपको बता दें, कि श्री मनकेश्वर महादेव मंदिर फतवों की नगरी देवबंद से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर न केवल प्रदेश बल्कि देश के विभिन्न कोनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है. इसमें अनेक चमत्कारी घटनाएं घटित हुई हैं. प्रतिवर्ष श्रावण की चतुर्दशी को यहां विशाल मेला आयोजित किया जाता है. इस मेले में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु और कांवड़िए भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं. श्री मनकेश्वर महादेव मंदिर अपनी अद्भुत कहानियों और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक है.
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मुस्लिम परिवार ने की थी इस मंदिर की स्थापना: दरअसल, मनकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना वाली भूमि गाड़ा बिरादरी के एक मुस्लिम परिवार की थी. एक दिन जब मुस्लिम किसान अपने खेत में जुताई कर रहा था, तो उसका हल एक पत्थर से टकरा गया. पत्थर टूटने पर उसमें से खून और दूध की धारा बहने लगी. अचानक खेत में ऐसा दृश्य देख किसान डरकर पत्थर पर मिट्टी डालकर चला गया. अगले दिन जब किसान ने अपने परिवार के लोगों के साथ वापस खेत में आकर देखा, तो पत्थर ऊपर उठा हुआ था. किसान ने पत्थर के आसपास की मिट्टी हटानी शुरू की तो पत्थर वापस जमीन में धंसने लगा. इस चमत्कार के बाद किसान ने अपनी जमीन मंदिर के लिए दान कर दी.जिसके बाद इस जमीन पर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया.
मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग होने के चलते यह आस पास के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनता चला गया. तभी से यह मंदिर न केवल एक सिद्धपीठ है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है. मंदिर के महंत और पुजारी के अनुसार, भगवान शिव ने मंथन के दौरान इसी स्थान पर आसन लगाया था और यहीं से स्वयंभू ज्योर्तिलिंग प्रकट हुए थे. 36 साल पहले गांव के प्रधान अल्लादिया ने भी मंदिर को तीन बीघा जमीन दान दी थी, जिससे आपसी सौहार्द और बढ़ गया. मंदिर को जमीन दान करने वाला मुस्लिम त्यौहार के मौके पर दर्शन करने जरूर आता है. ग्रामीणों के मुताबिक जब से यह मंदिर बना है, इस इलाके में कभी हिन्दू-मुस्लिम विवाद नहीं हुआ.
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