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पीलीभीत लोकसभा सीट; 1996 से गांधी परिवार खिला रहा कमल, क्या इस बार जितिन प्रसाद दिला पाएंगे भाजपा को जीत - Election 2024

UP Politics: भाजपा ने इस बार वरुण गांधी के स्थान पर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद पर दांव लगाया है. पड़ोसी जिले शाहजहांपुर के मूल निवासी जितिन प्रसाद के पिता और दादा कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार रहे हैं और जितिन को पार्टी प्रमुख के ब्राह्मण नेताओं में से एक माना जाता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 15, 2024, 10:48 AM IST

लखनऊ: Lok Sabha Election 2024: पीलीभीत संसदीय सीट पर 2004 से लेकर अब तक भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है. इस सीट पर 1996 में गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी जनता दल से पहली बार सांसद चुनी गई थीं. इसके बाद मेनका गांधी और बेटे वरुण गांधी ने भी इस सीट पर भाजपा का कमल लगातार 20 साल तक खिलाया. लेकिन, इस बार गांधी परिवार का कोई भी सदस्य यहां से मैदान में नहीं है.

भाजपा ने इस बार वरुण गांधी के स्थान पर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद पर दांव लगाया है. पड़ोसी जिले शाहजहांपुर के मूल निवासी जितिन प्रसाद के पिता और दादा कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार रहे हैं और जितिन को पार्टी प्रमुख के ब्राह्मण नेताओं में से एक माना जाता है.

वहीं गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में सपा ने भगवत शरण गंगवार को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने अनीस अहमद खान को टिकट दिया है. खान 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वरुण गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े थे और तब उन्हें तीसरा स्थान हासिल हुआ था.

भाजपा उम्मीदवार जितिन प्रसाद की राजनीति और राजनीतिक विरासत की बात करें, तो उनके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और पार्टी बड़े नेताओं में शुमार थे. उनके बाबा भी कांग्रेस नेता था. एमबीए डिग्री धारी जितिन प्रसाद ने 2001 में पिता जितेंद्र प्रसाद के निधन के कुछ माह बाद कांग्रेस में शामिल होकर सक्रिय राजनीति में कदम रखा था.

वह कांग्रेस सरकार में दो बार केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे. हालांकि, कांग्रेस का जैसे-जैसे का पतन हुआ, जितिन प्रसाद भी चुनाव हारते गए. वह न सिर्फ 2014 और 2019 में लोकसभा के चुनाव हारे, बल्कि 2017 का विधानसभा चुनाव भी हार गए.

शायद इसके बाद जितिन प्रसाद को एहसास हो गया कि कांग्रेस पार्टी में उनका भविष्य नहीं हैं. इसलिए उन्होंने नौ जून 2021 को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का फैसला किया. कुछ माह बाद ही एक अक्टूबर 2021 को भाजपा ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया और 2022 में सरकार बनते ही वह प्रदेश सरकार में लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री बन गए. जितिन प्रसाद की दादी कपूरथला राजघराने से ताल्लुक रखती थीं.

वहीं सपा प्रत्याशी भगवत शरण गंगवार सपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं. वह बरेली जिले की नवाबगंज विधानसभा सीट से पांच बार विधायक रहे हैं. गंगवार 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे, तो 2012 में अखिलेश यादव की सरकार में लघु उद्योग एवं निर्यात प्रोत्साहन राज्यमंत्री के पद पर भी रहे हैं. मूलरूप से बरेली के ही निवासी हैं.

राम मंदिर आंदोलन के दौरान भारतीय जनता पार्टी से अपनी राजनीति शुरू करने वाले भगवत शरण गंगवार ने 1991 और 1993 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे. 2002 में वह सपा में आ गए.

बसपा प्रत्याशी अनीस अहमद खान की बात करें, तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी. बाद में वह 1989 में बसपा में आ गए. बसपा के टिकट पर वह बीसलपुर सीट से तीन बार विधायक रहे हैं. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.

पीलीभीत सीट के इतिहास की बात करें, तो मेनका गांधी ऐसी एक इकलौती महिला हैं, जिन्हें यहां की जनता ने चुनकर संसद भेजा. हालांकि, उन्हें यह मौका एक-दो नहीं, बल्कि छह बार मिला. 1952 में यहां की जनता ने सबसे पहले कांग्रेस नेता मुकुंद लाल अग्रवाल को चुनकर संसद भेजा था.

वहीं 1957, 1962 और 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जबकि 1971 में कांग्रेस पार्टी से मोहन स्वरूप सांसद चुने गए. उन्होंने लगातार बीस वर्ष यहां की जनता का प्रतिनिधित्व किया. 1977 में जनता पार्टी से मो. शमसुल हसन खान, 1980 और 1984 में कांग्रेस पार्टी के हरीश कुमार गंगवार और भानु प्रताप सिंह चुनकर संसद पहुंचे.

1989 में जनता दल के टिकट पर मेनका गांधी पहली बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं. 1991 में भाजपा के परशुराम गंगवार को जनता ने चुनकर संसद भेजा. 1996 में जनता दल से, 1998 और 1999 में निर्दलीय और 2004 में भाजपा के टिकट पर मेनका गांधी ने चुनाव जीता और सांसद बनीं.

2009 में वरुण गांधी, 2014 में मेनका गांधी और 2019 में वरुण गांधी ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की. सबसे ज्यादा लगभग 30 वर्ष मेनका गांधी ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है.

यदि पिछले चुनावों की बात करें, तो 2014 में मेनका गांधी ने सपा के बुद्धसेन वर्मा को 3,07,052 मतों से पराजित किया था. तब मेनका गांधी को 5,46,934 वोट मिले थे, जो कुल मतदान के 52 फीसद से भी अधिक थे.

वहीं सपा के बुद्धसेन वर्मा को 2,39,882 मत प्राप्त हुए थे, जो कुल मतदान का 22 प्रतिशत से ज्यादा था. बसपा उम्मीदवार अनीस अहमद खान तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 1,96,294 वोट प्राप्त हुए थे.

वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार वरुण गांधी को 7,04,549 वोट मिले थे, जो कुल मतदान का 59 फीसद से ज्यादा था. वरुण गांधी ने सपा प्रत्याशी को 2,55,627 वोटों से मात दी थी.

इस चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी हेमराज वर्मा को 4,48,922 मत प्राप्त हुए थे, जो कुल मतदान का 37 फीसद से ज्यादा थे. इस संसदीय सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं, जिनमें बरेली जिले की बहेड़ी सीट पर सपा के अताउर रहमान का कब्जा है.

वहीं पीलीभीत सीट से संजय गंगवार, बरखेड़ा से स्वामी प्रकटानंद, पूरनपुर (सु) बाबूराम पासवान और बीसलपुर सीट से विवेक कुमार वर्मा जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. यह सभी भाजपा से हैं.

जातीय समीकरणों की बात करें, तो लगभग 26 लाख आबादी वाली इस संसदीय क्षेत्र में 18 लाख से अधिक मतदाता है. वहीं क्षेत्र में सबसे ज्यादा 26 फीसद मुस्लिम आबादी है. अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 16 फीसद है, जबकि कुर्मी (ओबीसी) मतदाताओं की तादाद भी ठीक-ठाक है.

संसदीय क्षेत्र में साढ़े तीन फीसद सिख आबादी भी है. भौगोलिक स्थिति कि बात करें, तो यह तराई वाला जिला माना जाता है, जिसके सीमावर्ती जिलों में लखीमपुर, शाहजहांपुर और बरेली आते हैं.

पीलीभीत टाइगर रिजर्व अपने खूबसूरत वनों और झीलों के लिए जाना जाता है. यहां बाघ, भालू और तेंदुओं के साथ-साथ हिरणों व अन्य वन्यजीव जंतुओं की अच्छी-खासी तादाद है. इस चुनाव में देखना रोचक होगा कि यहां भाजपा का कब्जा बरकरार रहता है या नहीं.

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