नई दिल्ली:साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'लेखक से भेंट' कार्यक्रम में मंगलवार को प्रख्यात लेखिका ममता कालिया पाठकों से रूबरू हुईं. अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, घर में सबसे छोटी होने के कारण मेरी बहुत सी जिज्ञासाओं के जवाब नहीं मिल पाते थे. साथ ही बड़ी बहन के बेहद सुंदर होने और मेरे सांवले रंग के कारण मुझे जगह-जगह अपमानित होना पड़ता था. ऐसे में अपना गुस्सा निकालने मैंने लेखन का सहारा लिया. मुझे साबित करना था कि मैं भी कुछ हूं. इस सब में मेरे पिता की किताबों ने मेरा बेहद साथ दिया. किताबें ऐसी मित्र होती है, जो हमें चेतना देती हैं और कभी नीचा नहीं दिखाती.
उन्होंने आगे बताया कि उनका प्रारंभिक लेखन अंग्रेजी में एम.ए. करने के कारण अंग्रेजी में ही था. लेकिन, बाद में इलाहाबाद में रहते हुए उन्हें हिंदी में लिखने के लिए विवश होना पड़ा. इसमें उनके पति रवींद्र कालिया का भी योगदान था. लेखन ऐसी दुनिया है, जिसमें कोई नियम नहीं चलता. कभी-कभी हमारे किरदार ही हमें फेल कर देते हैं.
अब पठन-पाठन के कई नए माध्यम आ गए हैं और उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा चल रही है. लेकिन आभासी मंचों पर संतुष्टि प्राप्त नहीं होती. छोटे शहरों में अभी भी अध्यनशीलता, सृजनशीलता और पाठन की परंपरा है. अनुवाद से हिंदी को वैश्विक मंच प्राप्त हो सकता है, लेकिन अभी हिंदी पुस्तकों के अनुवाद बहुत गंभीरता से नहीं किए जा रहे हैं.- ममता कालिया, लेखिका