उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

अमृत स्नान के बाद अखाड़ों में क्यों होती है पुकार?, जानिए सदियों से चली आ रही इस परंपरा के बारे में - MAHA KUMBH MELA 2025

अमृत या शाही स्नान के बाद साधु-संत संन्यासी गुरु को अर्पित करते हैं भेंट.

महंत रवींद्रपुरी ने परंपरा के बारे में बताया.
महंत रवींद्रपुरी ने परंपरा के बारे में बताया. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 4, 2025, 6:58 AM IST

प्रयागराज :महाकुंभ मेले के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान की परंपरा काफी पुरानी है. इसके अलावा शाही स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार की परंपरा भी पूरी की जाती है. इसके तहत अखाड़े के साधु-संत संन्यासी अपने गुरु को भेंट अर्पित करते हैं. इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. ईटीवी भारत ने इस परंपरा के बारे में जानने की कोशिश की. आइए विस्तार से जानते हैं...

सदियों पुरानी है अखाड़ों की पुकार परंपरा. (Video Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ मेले में अमृत स्नान करने के बाद पुकार परंपरा को भी पूरा किया जाता है. इसके तहत अखाड़े दशनामी गुरुओं के नाम पर भेंट प्रदान करते हैं. अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे ईष्टदेव की जहां पर मूर्ति स्थापित की जाती है, उसी स्थान पर बैठकर अखाड़े के महंत या प्रमुख पदाधिकारी पुकार की परंपरा को पूरा करते हैं. इस परंपरा का पालन सभी अखाड़े करते हैं.

महाकुंभ में सिर्फ 3 बार ही होती है पुकार :अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव महंत रवींद्रपुरी महाराज ने बताया कि अखाड़ों में शाही (अमृत) स्नान के बाद अखाड़े के शिविर में स्थापित धर्मध्वजा और ईष्ट देव के मंदिर से ही पुकार की परंपरा को पूरा किया जाता है. यह पूरे महाकुंभ में केवल 3 बार ही होती है.

पुकार के दौरान अखाड़े से जुड़े संत-महंत व महामंडलेश्वर अपनी तरफ से दशनाम गुरुओं के लिए भेंट देते हैं. यह अखाड़े के कोष में जमा किया जाता है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी ने बताया कि पुकार में साधु-संत अपनी क्षमता के अनुसार भेंट देते हैं. उन्होंने बताया कि कुम्भ मेले के दौरान जब अखाड़े शाही स्नान करके शिविर में लौटते हैं तो सबसे पहले सभी साधु-संतों की तरफ से दशनामी गुरुओं के नाम पर दक्षिणा भेंट देते हैं. इस भेंट में दी जाने वाली रकम में लाखों रुपये लेकर 50 रुपये तक शामिल होता है.

भेंट देने वाले का नाम पुकारा जाता है :श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव रवींद्रपुरी ने बताया कि पुकार के दौरान जो भी भेंट मिलती है, उसमें जिस साधु की तरफ से जितनी भेंट दी जाती है, उसकी जानकारी माइक से पूरे शिविर में सार्वजनिक की जाती है. बसंत पंचमी के दिन अमृत स्नान करके लौटने के बाद उन्होंने ईष्टदेव के मंदिर में बैठकर पुकार की. इस दौरान जिस भी संत ने जितनी रकम दी, उसको उन्होंने माइक से एनाउंस करके बताया.

महंत ने बताया कि संत का नाम और उनके द्वारा दी गई रकम को बताया जाता है. इसके बाद वहीं पर रखे नगाड़े को एक नागा साधु बजाकर उस संत के द्वारा पुकार में दी गई राशि के बदले सम्मान प्रदान करते हैं. महंत रवींद्रपुरी का कहना है कि पुकार की परंपरा सदियों पुरानी है. उसका पालन आज भी किया जाता है. अखाड़े से जुड़े ज्यादातर साधु-संत संन्यासी पुकार करवाते हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अगर कोई साधु अखाड़े द्वारा किसी प्रकार की सजा पाया हुआ रहता है तो उस दौरान उसे पुकार करवाने का अधिकार नहीं होता है और न ही वो पुकार में भेंट दे सकता है.

पुकार के बाद दी जाती है ब्रह्मजली :महंत ने बताया कि पुकार के बाद ब्रह्मजली देने की परंपरा है. इसमें आचमन के लिए गंगा जल दिया जाता है. अखाड़े से किसी प्रकार की सजा पाने वाले को सजा के दौरान ब्रह्मजली भी नहीं जाती है. ब्रह्मजली सिर्फ उसी को दी जाती है जिसे अखाड़े की जमात में शामिल माना जाता है. सजा पाने वालों को जमात में नहीं माना जाता है, उस दौरान उन्हें ब्रह्मजली भी नहीं दी जाती है.

यह भी पढ़ें :बसंत पंचमी अमृत स्नान; जिस रास्ते से गुजरे नागा संन्यासी और साधु-संत वहां की मिट्टी घर ले जा रहे भक्त, जानिए वजह

ABOUT THE AUTHOR

...view details