लखनऊ : पुलिस कंट्रोल रूम को 8 दिसंबर को सूचना मिली कि राजधानी के तीन मेट्रो स्टेशन में बम रखा हुआ है. तत्काल लखनऊ पुलिस एक्टिव हुई, स्नीफर डॉग्स के साथ सघन तलाशी की गई. कुछ न मिलने पर पुलिस ने कॉलर का पता लगाया तो वे नाबालिग निकले. पता चला कि गेम टास्क को पूरा करने के लिए ऐसी कॉल की थी. इसी तरह मई में दिल्ली, लखनऊ समेत कई राज्यों के प्रतिष्ठित स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी भी एक नाबालिग ने गेम के टास्क को पूरा करने के लिए दी थी. ऐसे में अब यह गेम और उसके टास्क ना सिर्फ पुलिस के लिए सिरदर्द बन रहे हैं बल्कि उन नाबालिगों के लिए भी आफत बन सकते है जो खेल में ऐसी हरकतें कर रहे हैं.
प्रैंक कॉल से पुलिस का समय होता है खराबःलखनऊ की पुलिस अफसर मनीषा सिंह कहती हैं कि जब हमें ऐसी कोई सूचना मिलती है कि किसी स्थान पर बम रखा है या बम ब्लास्ट करने की धमकी मिलती है तो हम और हमारी टीम जिसमे डॉग्स स्क्वाड, बम स्क्वाड, एटीएस पूरी क्षमता से तलाशी अभियान शुरू करते हैं. हालांकि इसी दौरान सर्विलांस टीम कॉलर या फिर सूचना और धमकी देने वाले की को ढूंढ़ने का प्रयास भी किया जाता है. तलाशी करने पर जब कुछ भी नहीं मिलता तो हम कॉलर का पता लगा कर सूचना देने का कारण जानने की कोशिश करते हैं. हैरानी की बात है कि बीते कुछ समय में दी गई ऐसी सूचनाओं के पीछे छोटे छोटे बच्चे रहे हैं. बच्चों ने ऐसी हरकत सिर्फ किसी न किसी ऑनलाइन गेम के टास्क को पूरा करने के लिए की. इस स्थिति में बच्चों और उनके परिजनों को चेतावनी देकर छोड़ने के अलावा कुछ भी कर पाते हैं.
यह सोची समझी हो सकती है साजिशःसाइबर एक्सपर्ट और यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा इससे जुड़ा एक हैरान करने वाला तथ्य बताते है. राहुल मिश्रा के अनुसार कई ऐसे गेम हैं जिन्हें भारत सरकार ने बैन कर रखा है. बावजूद इसके ये गेम अब भी इंटरनेट की दुनिया में APK फाइल के रूप में मौजूद हैं और बच्चों के मोबाइल सेट में इनस्टॉल हैं. राहुल मिश्रा के मुताबिक रिसर्च करने पर पता चलता है कि इस प्रकार के जितने भी ऑनलाइन गेम है वो सभी चाइनीज कंपनी द्वारा संचालित किए जाते हैं. इनमें दिए जाने वाले टास्क में 'बम होने की सूचना या बम ब्लास्ट की धमकी देना', एक सोची समझी साजिश का हिस्सा हैं. दरअसल, ये टास्क भारत की सुरक्षा एजेंसियों और राज्यों की पुलिस को परेशान करने व उनके काम से भटकाने के लिए दिए जाते हैं.
बच्चों को ऐसे गेम से होगा बचानाःबलरामपुर अस्पताल के बच्चों से जुड़े मनोचिकित्सक डॉ. अभय सिंह कहते हैं कि बच्चे मजे करने के लिए ऐसी प्रैंक कॉल हमेशा से करते रहे हैं. पुलिस को कॉल करने की हिम्मत बच्चे क्या बड़े भी प्रैंक के लिए नहीं उठा सकते हैं. हालांकि इसी देश के बच्चे 10 मंजिला बिल्डिंग से छलांग लगाने में भी नहीं डर रहे हैं. इसके पीछे का कारण डेडीकेशन है. जब बच्चे हर वक़्त मोबाइल को देंगे, वो हर समय गेम ही खेलेंगे और उसे ही अपनी दुनिया समझने लगेंगे तो वो कुछ भी कर गुजरने से घबराएंगे नहीं. डॉ. अभय बताते है कि रोजाना उनके पास ऐसे बच्चे काउंसिलिंग के लिए लाए जाते हैं जो सोते वक़्त भी गेम के विषय में बात करते हैं. ऐसे में हम बच्चों से अधिक पैरेंट्स को दोषी मानते हैं. बच्चों को कौन सा गेम खेलना है और कौन सा नहीं यह उन्हें ही तय करना होता है. नहीं तो उनके बच्चे कब क्रिमिनल बन जाएंगे उन्हें पता भी नहीं चलेगा.