लखनऊ : यूपी में 2 वर्ष 176 दिन बाद स्थाई डीजीपी मिलने की उम्मीद है. डीजीपी चयन के लिए योगी सरकार ने नई नियमावली तैयार की है. इस नियमावली के बनने से सरकार के सामने अपने पसंद का डीजीपी नियुक्ति करने का सबसे बड़ा रोड़ा हट गया है. इस नियमावली के तहत डीजीपी की नियुक्ति पर संघ लोक सेवा आयोग भूमिका लगभग समाप्त हो गई है. सरकार आयोग को प्रस्ताव भेजने से मुक्त हो गई है.
साल खत्म होते ही डीजी चयन की उम्मीद:वर्ष 2024 के अंत से 56 दिन पहले 5 नवंबर 2024 को डीजीपी की नियुक्ति के लिए बनी नई नियमावली को बनाने के कारणों और उसकी उपलब्धि को समझने के लिए पीछे की पृष्ठभूमि काफी अहम है. नई नियमावली बनाने के लिए 906 दिन पहले 11 मई 2022 को योगी सरकार ने तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को अचानक उनके पद से हटा दिया. इसके पीछे का कारण बताया गया कि वे शासकीय कार्यों की अवहेलना कर रहे थे और विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे थे. सरकार ने दो दिन बाद तत्कालीन डीजी इंटेलिजेंस डी. एस. चौहान को डीजीपी बना दिया. अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार यूपीएससी को डीजीपी के चयन के लिए प्रस्ताव भेजना था. ऐसे में सरकार ने नए डीजीपी के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजा. जिसमें डी. एस. चौहान समेत सभी वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के नाम शामिल थे.
- अबतक के अस्थाई डीजीपी
- 1988 बैच के आईपीएस डीएस चौहान को 13 मई 2022 से 31 मार्च 2023.
- 1988 बैच के आरके विश्वकर्मा को 1 अप्रैल 2023 से 31 मई 2023.
- 1988 बैच के आईपीएस विजय कुमार को 1 जून से 31 जनवरी 2024.
- वर्तमान के अस्थाई डीजीपी प्रशांत कुमार को 1 फरवरी 2024 में बनाया गया.
आयोग से ठनने के बाद सरकार ने तैयार की नियमावली:सरकार को यह भरोसा था कि आयोग की बैठक में उनके द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर मुहर लगा कर तीन वरिष्ठ अफसरों का पैनल सरकार को भेज देगी. जिसमें वरिष्ठता क्रम में डी.एस. चौहान का भी नाम शामिल होगा. इसके इतर आयोग ने उस प्रस्ताव को बैरंग वापस भेजते हुए मुकुल गोयल को पद से हटाए जाने का ठोस कारण पूछ लिया. सरकार जानती थी कि जिस कारण को बताकर मुकुल गोयल को हटाया गया है उस जवाब को आयोग सिरे से नकार देगा. ऐसे में सरकार ने जवाब भेजा और न स्थाई डीजीपी के लिए नया प्रस्ताव. इसके बाद से ही सरकार बिना प्रस्ताव भेजे कार्यवाहक डीजीपी तैनात करती आ रही है. सरकार जानती थी यदि वह प्रस्ताव भेजेगी तो एक बार फिर मुकुल गोयल को हटाने का कारण पूछ लिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर अगली तारीख से पहले ही योगी सरकार को पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए डीजीपी नियुक्ति की शक्ति संघ लोक सेवा आयोग से अपने हाथों में लेने की रणनीति में काम करना था. ऐसे में सरकार ने 5 नवंबर 2024 को पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश के पुलिस बल प्रमुख ) चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 को मंजूरी दे दी. सरकार ने कहा कि हमने यह नियमावली सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत ही बनाई है.
प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला:असम और यूपी के डीजीपी रहे प्रकाश सिंह ने रिटायर होने के बाद वर्ष 1996 को सुप्रीम कोर्ट में पुलिस सुधार को लेकर याचिका दाखिल की थी. इसमें 22 सितंबर 2006 को कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों से पुलिस महकमे में सुधार लाने की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने 7 ऐसे दिशा-निर्देश दिए कि जिससे राज्य पुलिस बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम कर सके. इन दिशा निर्देशों में डीजीपी के चयन का मुद्दा भी था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो अफसर कुछ ही दिन या माह में रिटायर हो रहे हो उन्हें डीजीपी बनाने से बेहतर है कि यह जिम्मेदारी उन्हें दी जाए जिनका कार्यकाल कम से कम दो वर्ष का बचा हो. जिससे कोई भी नेता उनका ट्रांसफर कभी भी न करवा सके. इसके अलावा डीजीपी चयन के लिए संघ लोक सेवा आयोग के तत्वावधान में कमेटी बनाने के भी निर्देश दिए गए.
क्या है सरकार की नई नियमावलीःवर्ष 2024 के अंत में ही सही दो वर्ष 176 दिन बाद स्थाई डीजीपी बनने के लिए सरकार द्वारा बनाई गई पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश के पुलिस बल प्रमुख ) चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 में कई खास बाते हैं. नई नियमावली में आयोग की भूमिका खत्म कर दी गई है. चयन कमेटी में अब हाई कोर्ट के रिटायर जज अध्यक्ष होंगे, उनके अलावा मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नामित एक प्रतिनिधि, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या एक नामित प्रतिनिधि, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव और राज्य के एक सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक सदस्य होंगे. नियमावली में प्रावधान है कि चयन के बाद डीजीपी को न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल जरूर दिया जाएगा. इसके अलावा हटाने के लिए प्रमुख कारणों में शासकीय कार्य की अवेहलना, विभागीय कार्यों में रूचि न लेना और अकर्मण्यता को भी रखा गया.