मोतिहारी: विदेह साम्राज्य का हिस्सा रहा चंपारण, अंग्रेजी हुकूमत के समय वर्ष 1764 में बंगाल के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया, लेकिन 1857 के सिपाही विद्रोह का असर चंपारण में भी हुआ और जो बाद में 1917 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की नींव पड़ी. देश दुनिया को आंदोलन का एक अमोघ अस्त्र 'सत्याग्रह' मिला. इसीलिए चंपारण की भूमि "सत्याग्रह" की प्रयोगस्थली मानी जाती है.
पूर्वी चंपारण सीट का इतिहास: वर्ष 1947 में आजादी के करीब पच्चीस साल बाद 2 नवंबर 1972 को पूर्वी चंपारण एक अलग जिला बना.जिसका मुख्यालय मोतिहारी बना. वर्ष 1952 से मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया, लेकिन 2002 में लोकसभा सीटों के परिसीमन के लिए बनी कमेटी की अनुशंसा के बाद 2008 में मोतिहारी लोकसभा सीट पूर्वी चंपारण के नाम से जाना जाने लगा.
पांच बार कांग्रेस का कब्जा: वर्ष 1952 से लगातार पांच बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. फिर जनता दल की लहर में 1977 यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गयी. इस सीट से कांग्रेस के अलावा,जनता दल,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,राष्ट्रीय जनता दल,भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को यहां के मतदाताओं ने प्रतिनिधित्व का मौका दिया.
सीट पर मोदी लहर का असर:वर्ष 2009 में अस्तित्व में आने के बाद से लोकसभा चुनाव में जातीय फैक्टर के बदले मोदी लहर में मतदाता बहते चले गए और कमल खिलने का सिलसिला 2019 के चुनाव तक जारी रहा. वर्ष 2009 से भाजपा के राधामोहन सिंह पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं. लगातार तीन बार चुनाव जीतने के बाद राधामोहन सिंह से जुड़ा एक मिथक टूट गया कि राधामोहन सिंह एक चुनाव के अंतराल पर ही जीत दर्ज करते हैं.
बीजेपी ने फिर राधामोहन सिंह पर जताया भरोसा :इधर एक बार फिर वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो गई है. लेकिन किसी दल ने अपना पत्ता नहीं खोला है. महागठबंधन में किस दल के हिस्से में यह सीट जाएगी, यह स्पष्ट नहीं हो सका है. वहीं बीजेपी ने एक बार फिर से अपने सिटिंग कैंडिडेट राधामोहन सिंह को टिकट दिया है.
6 बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं राधामोहन सिंह: वर्ष 2009 से भाजपा के राधामोहन सिंह पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र सीट पर काबिज हैं. राधामोहन सिंह वर्ष 1989 में इस लोकसभा क्षेत्र से पहली बार निर्वाचित हुए. राधामोहन सिंह इस लोकसभा क्षेत्र का अबतक छह बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वर्ष 2009 में राधामोहन सिंह ने राजद के डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह को हराया था.
कब किसका रहा सीट पर कब्जा?:डॉ. अखिलेश सिंह वर्तमान में बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और दूसरी बार राज्यसभा पहुंच गए हैं. वर्ष 2014 में राधामोहन सिंह ने राजद के विनोद श्रीवास्तव को पराजित किया. वर्ष 2014 में जीत दर्ज करने के बाद राधामोहन सिंह को नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में जगह मिली और वह केंद्रीय कृषि मंत्री बने. वर्ष 2019 के चुनाव में राधामोहन सिंह ने रालोसपा के आकाश कुमार सिंह को शिकस्त दी. एकबार फिर वर्ष 2024 में भाजपा के राधामोहन सिंह चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हुए हैं.
पूर्वी चंपारण.. कभी उद्योग धंधों का केंद्र:जहां तक पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में उद्योग और व्यवसाय की बात है तो 20 हजार कामगारों को रोजगार देने वाला मेहसी का सीप बटन उद्योग मृतप्राय हो चुका है. सरकार के स्तर से इस उद्योग को ऑक्सीजन देने का काफी प्रयास किया गया. आधुनिक मशीने दी गई. बावजूद इसके सीप बटन उद्योग की हालत नहीं सुधरी.
बंद चीनी मिल भी सियासी मुद्दा: चकिया और मोतिहारी चीनी मिल वर्षों से बंद पड़े हैं कृषि इस लोकसभा क्षेत्र में रोजगार का मुख्य साधन है,लेकिन कृषि आधारित उद्योग इस लोकसभा क्षेत्र में नहीं होने से किसानों में निराशा है. हालांकि,जिला में केवल सुगौली चीनी मिल चालू है,जो पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है.लेकिन वह जिला के गन्ना किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है. जिस कारण इस जिला के किसान अन्य जिला के चीनी मिल में गन्ना भेजते हैं, जो काफी लागत वाला साबित होता है.
पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा: पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, जिसमें मोतिहारी, हरसिद्धि, गोविंदगंज, केसरिया,कल्याणपुर और पिपरा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. पांच विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक कल्याणपुर विधानसभा सीट पर राजद का कब्जा है.
पूर्वी चंपारण में कुल वोटरों की संख्या: पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में कुल 17 लाख 76 हजार 338 मतदाता हैं, जिसमें 9 लाख 32 हजार 432 पुरुष और 8 लाख 43 हजार 883 महिला मतदाता हैं. वहीं थर्ड जेंडर मतदाता की संख्या 23 है. प्रकाशित वोटर लिस्ट में काफी संख्या में नए युवा मतदाताओं के नाम जुड़े हैं. इस साल के चुनाव में युवा मतदाता अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायेंगे.
पूर्वी चंपारण सीट पर जातिगत समीकरण: पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में जहां तक जातिगत समीकरण की बात है तो 27 प्रतिशत के साथ पिछड़ा वर्ग पहले स्थान पर और 14 प्रतिशत संख्या के बदौलत दलित महादलित के साथ मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा 10 प्रतिशत के साथ अतिपिछड़ा मतदाता तीसरे नंबर और भूमिहार मतदाता 8 प्रतिशत संख्या के साथ चौथे नंबर पर हैं. यादव और राजपूत मतदाताओं की संख्या 7 प्रतिशत है. वहीं ब्राह्मण और कायस्थ मतदाताओं की संख्या 5 प्रतिशत है. बाकी की अन्य जातियों की संख्या तीन प्रतिशत है.
क्या चाहते हैं वोटर्स?: पूर्वी चंपारण के बुद्धिजीवियों के अलावा अधिकांश अन्य मतदाताओं को मोदी मैजिक चलने का विश्वास है. कई मतदाता मोदी की गारंटी की बात कहते हुए कुछ मुद्दों पर अपनी बात रख रहे हैं. महंगी होती शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के अलावा महंगी हो रही भोजन की थाली की चिंता भी मतदाताओं को सता रही है. गृहणियां रसोई गैस की महंगाई की बात कहते हुए खाने पीने की वस्तुओं के दाम में कमी करने की उम्मीद आने वाली नई सरकार से लगाये बैठी हैं.
"पहले जाति और व्यक्ति को ध्यान में रखकर चुनाव होता था लेकिन अब देश में हावी मुद्दों से पब्लिक प्रभावित होती है. स्थानीय स्तर पर देखें तो गांव में किसानों की चीनी मिल की समस्या बड़ी है. किसानों के मन में टीस है. किसानों को गन्ना दूसरे स्थान पर भेजा जाता है, किसान चुनाव के दौरान इन मुद्दों को लेकर दुखी रहते हैं."-डॉ.धीरज कुमार, स्थानीय
"मोदी फैक्टर की वजह से चुनाव जीतने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री ने कुछ बदलाव के संकेत दिए हैं, उसका भी बहुत असर नजर आ रहा है. 25-25 साल से जो कुर्सी पर काबिज थे उनको संगठन में लगाया गया और नए लोगों को मुख्यमंत्री बनाया गया. ऐसे में युवाओं में टिकट मिलने की उम्मीद और उत्साह है."-शंभू सिकारिया, शिक्षाविद्
'बिहार का नहीं देश का चुनाव':वहीं स्थानीय निवासी अशोक कुमार का कहना है कि इस बार बहुत से पार्टी और बहुत नेता हैं लेकिन जो अच्छे व्यक्ति का चुनाव किया जाएगा. पीएम मोदी देश के प्रति सोचते हैं. हम भी देश के लिए सोचेंगे. यहां कोई जाति फैक्टर काम नहीं करेगा क्योंकि सभी देश के बारे में सोच रहे हैं. वहीं गुड्डू सिंह ने कहा कि यहां जाति फैक्टर हैं लेकिन प्रधानमंत्री के चुनाव में जाति फैक्ट्रर नहीं है. लोग देश का विकास चाहते हैं. यह बिहार नहीं देश का चुनाव है.