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पहले भ्रष्टाचार, फिर राष्ट्रवाद और अब योजना वर्सेस सवाल पर हो रहा है चुनाव! ज्वलंत मुद्दे हुए गायब - lok sabha election 2024

लोकसभा चुनाव 2024 में राजनीतिक पार्टियां तो चुनाव प्रचार में जोर-शोर से जुटी हुई हैं, लेकिन ज्वलंत मुद्दे गायब दिख रहे हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में कोई भी ऐसे मुद्दे नहीं सुनाई दे रहे हैं, जो ज्यादातर मतदाताओं को प्रभावित करते हों. सीधे तौर पर कहा जाए तो इस बार का चुनाव योजना वर्सेस सवाल आधार पर ज्यादा दिख रहा है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 9, 2024, 11:58 AM IST

Updated : Apr 9, 2024, 3:02 PM IST

जना वर्सेस सवाल पर हो रहा लोकसभा चुनाव 2024.

देहरादून: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियां दमखम से प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं, ताकि प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सकें. प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है, जिसमें अब महज 10 दिन ही बचे हैं. दूसरी ओर अभी तक प्रदेश में चुनावी सरगर्मियों ने रफ्तार नहीं पकड़ी है. इसकी वजह किसी दल के पास कोई विशेष मुद्दा न होना है. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि ये लोकसभा चुनाव, योजना वर्सेस सवाल होने जा रहा है, जिसके चलते मतदाता अब किस मुद्दे को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं, इस पर ही प्रत्याशियों का भविष्य निर्भर करेगा.

लोकसभा हो या फिर विधानसभा चुनाव हमेशा के एक विशेष मुद्द तैयार किया जाता है, जिसके आधार पर पार्टियां चुनाव लड़ती हैं. साल 2014 को लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया था, जिसका बीजेपी को लाभ भी मिला और वो दस साल बाद सत्ता पर फिर से काबिज भी हुई.

इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने राष्ट्रवाद पर जोर दिया, जिसकी बदौलत बीजेपी को दोबारा सत्ता मिली. वहीं अब फिर से बीजेपी और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल 2024 को रण में रण में उतर चुके हैं. बीजेपी जहां इस बार हैट्रिक लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का प्रयास में लगी हुई है, तो कांग्रेस अपने सहयोगी संगठनों के साथ दस साल का वनवास खत्म करने की जुगत में लगी हुई है.

कांग्रेस तो लोकसभा चुनाव 2024 को मेनिफेस्टो (चुनावी घोषणा पत्र) भी जारी कर चुकी है. कांग्रेस मेनिफेस्टो में जनता से किए गए वादों के साथ ही तमाम सवालों के जरिए भी वोटरों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है, ताकि इस चुनाव में जीत दर्ज कराई जा सके.

वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस प्रचार-प्रसार के दौरान भाजपा सरकार से सवाल पूछती दिखाई दे रही है. इसके उलट भाजपा संगठन ने अभी तक चुनावी घोषणा पत्र जारी नहीं किया है. ऐसे में भाजपा राज्य और केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं को जनता के बीच ले जाने का काम कर रही है.

दरअसल, उत्तराखंड राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने तरीके से प्रचार प्रसार में जुटी हुई हैं. मुख्य रूप से देखें तो जहां एक ओर भाजपा संगठन केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं और कामों को बता रहा है, तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल कांग्रेस, सत्ताधारी पार्टी पर हमला करते हुए भाजपा सरकार से तमाम सवाल पूछ रही है. ताकि जनता के बीच इस बाबत संदेश दे सके कि पिछले 10 सालों में केंद्र सरकार और पिछले सात सालों में राज्य सरकार ने कोई बड़ा काम नहीं किया है.

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहा कि चुनाव मुद्दों पर ही लड़े जाते हैं. ऐसे में इस बार पिछले दो लोकसभा चुनाव से अलग स्थितियां देखने को मिल रही हैं. मुख्य रूप से यह चुनाव योजनाओं वर्सेस सवाल पर हो रहा है. क्योंकि ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, जिस मुद्दे को कोई पार्टी टारगेट कर रही हो. बल्कि भाजपा राज्य और केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं को जनता के बीच भुनाने में जुटी हुई है. वहीं, दूसरी ओर विपक्षी दल कांग्रेस अपने मेनिफेस्टो के साथ ही राज्य और केंद्र सरकार से तमाम सवालों के जवाब मांगती दिखाई दे रही है.

वहीं, भाजपा के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने कहा कि जब भाजपा सत्ता में नहीं होती थी, उस दौरान अन्य दल भाजपा पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाते थे. लेकिन जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, उसके बाद से ही भाजपा ने हिंदुत्व को मजबूत किया है. बीजेपी का कहना है कि देश के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत किया है. साथ ही देश के विकास की तरफ भी उतना ही ध्यान दिया है. बीजेपी प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने राज्य और केंद्र सरकार की ओर से प्रदेश में किए गए तमाम महत्वपूर्ण कामों का भी बखान किया.

वहीं, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि वास्तव में चुनाव मुद्दों पर ही लड़ा जाना चाहिए, लेकिन भारतीय जनता पार्टी इन मुद्दों से अलग कभी सांप्रदायिक तो कभी कुछ अन्य मुद्दों को लेकर लड़ती है. जबकि चुनाव विकास आधारित होना चाहिए और विकास पर फोकस करना चाहिए. साथ ही कहा कि केंद्र सरकार के 10 साल उत्तराखंड के लिए बेहद निराशाजनक रहे हैं. इन 10 सालों में प्रदेश के युवाओं को कोई नौकरी नहीं मिली.

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Last Updated : Apr 9, 2024, 3:02 PM IST

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