वाराणसीःकोलकत्ता में बने हावड़ा ब्रिज की तरह अब बनारस में बनने वाला सिग्नेचर ब्रिज काशी की नई पहचान बनेगा. केंद्र सरकार ने वाराणसी-पं. दीन दयाल उपाध्याय मल्टीट्रैकिंग परियोजना को मंजूरी दे दी है. वाराणसी में गंगा नदी पर दो मंजिला रेल-सह-सड़क पुल का निर्माण किया जाएगा. इसकी लागत लगभग 2,642 करोड़ रुपये मानी गई है. इस नए पुल के बन जाने से काशी के विकास को रफ्तार मिलेगी. नीचे ट्रेनें और ऊपर बस-ट्रक, कारें फर्राटा भरेंगी.
साथ ही, यह पुल बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल सहित पूरे नाॅर्थ-ईस्ट से कनेक्टिविटी बढ़ाएगा. यात्रा और परिवहन दोनों सुगम होगा. सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण से वाराणसी में महत्वपूर्ण आर्थिक और बुनियादी ढांचागत उन्नति होगी, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में रहने वालों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पुल काशी का नया हस्ताक्षर साबित होगा.
आखिर क्यों पड़ रही नए पुल की जरूरतःवाराणसी स्थित मालवीय पुल गंगा नदी पर बने सबसे महत्वपूर्ण रेलवे पुलों में से एक है, जो उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी राज्यों को जोड़ता है. मौजूदा मालवीय ब्रिज 137 साल पुराना है. इस पुल पर रेल-सह-सड़क पुल (2 लाइन रेल और 2 लाइन सड़क) पुराना है. वाराणसी और डीडीयू के बीच का मार्ग ओवर सैचुरेटेज है. यह पुल पुराना और कमजोर होने की वजह से भारी वाहनों का आवगमन प्रतिबंधित है. इसलिए नया ब्रिज बनाने की जरूरत पड़ी है. ऐसे में गंगा नदी पर 4 रेलवे लाइनों वाला नया रेलरोड ब्रिज और 6 लेन का हाईवे ब्रिज बनाया जाएगा. इससे प्रति वर्ष लगभग 8 करोड़ लीटर डीजल आयात की बचत होगी (लगभग 638 करोड़ रुपये प्रति वर्ष).
जानिए कैसा होगा बनारस का सिग्नेचर ब्रिज. (Video Credit; ETV Bharat) नया वाला पुल पुराने से कितना होगा अलगःमालवीय पुल के बगल में ही सिग्नेचर ब्रिज बनाया जाएगा. इसको लेकर डीपीआर तैयार हो गया है. यह दो डेक का होगा, जिसमें नीचे वाले डेक पर 4 रेलवे लाइन होगी और ऊपर वाले डेक में 6 लेन का हाईवे होगा. यह ट्रांसपोर्ट क्षमता में विश्व के बड़े ब्रिजों में से एक होगा. यह ईस्ट और नॉर्थ, ईस्ट और वेस्ट को जोड़ने का बहुत बड़ा कॉरिडोर है. इस ब्रिज को तैयार करने में लगभग 2,642 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. यह एक आइकॉनिक ब्रिज होगा, जो वाराणसी को दुनिया के सामने अलग तरीके से प्रस्तुत करेगा.
सिग्नेचर ब्रिज का प्रस्तावित मॉडल. (Photo Credit; ETV Bharat) सिग्नेचर ब्रिज की खासियतः इंजीनियर्स ने सिग्नेचर ब्रिज को 150 साल के लिए डिजाइन किया है. केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, ब्रिज के निर्माण के दौरान जो फाउंडेशन होगा, वह नदी की सतह से 120 फीट गहरा होगा. इसके ऊपर पिलर और फिर ब्रिज का निर्माण किया जाएगा. 4 लेन का रेलवे ट्रैक बिछने के बाद यात्री ट्रेनें 90 से 112 किमी की रफ्तार से चलेंगी. इसकी लंबाई एक किलोमीटर से अधिक होगी. अभी मौजूदा मालवीय पुल के रेलवे ट्रैक पर लगभग 40 किमी की रफ्तार से ट्रेनों का संचालन हो रहा है. मालगाड़ियों की रफ्तार भी बहुत धीमी रहती है. एक साल पहले प्रस्ताव को मिली थी मंजूरी. (ETV Bharat Gfx) चार साल में ब्रिज के निर्माण का लक्ष्यः रेल मंत्री ने प्रजेंटेशन के दौरान बताया कि पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा के मामले में किफायती परिवहन का साधन होने के कारण, रेलवे जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के साथ देश की लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करने में सहायता होगी. साथ ही, कार्बन डाइऑक्साइड के करीब 149 करोड़ किलोग्राम उत्सर्जन, जोकि 6 करोड़ पेड़ों के रोपण के बराबर है, कम करने में भी मदद करेगा. इसका निर्माण का लक्ष्य 4 साल का रखा गया है. नमो घाट से पास इस सिग्नेचर ब्रिज का निर्माण किया जाएगा, जो काशी स्टेशन के द्वितीय प्रवेश द्वार से नजदीक होगा. बिर्ज की खासियत. (ETV Bharat Gfx) प्रधानमंत्री मोदी ने प्रोजेक्ट को दी हरी झंडीः प्लानर इंडिया के चेयरमैन एवं सीईओ श्यामलाल सिंह ने बताया मालवीय ब्रिज की उम्र को पूरा हुए लगभग 40 साल हो गए हैं. मगर अभी भी यह प्रयोग में लाया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्यू मालवीय ब्रिज का प्रपोजल दिया गया था, जोकि उनको पसंद आया था. उन्होंने इसका डिटेल प्रपोजल मांगा था. नया ब्रिज नमो घाट की ओर तय किया गया. इस प्रोजेक्ट में ब्रिज की चौड़ाई बढ़ाने के साथ ही मेट्रो प्लान किया गया. पीएम मोदी ने इसे ओके कर दिया था. इसके बाद चीन से इंजीनियर्स आए और यहां पर उन्होंने सर्वे किया. इसके साथ ही ब्रिज बनाने के लिए स्थान का डाटा दिया गया. मालवीय ब्रिज. (Photo Credit; ETV Bharat) पुराना मालवीय ब्रिज म्यूजियम के रूप में सहेजा जाएगाःश्यामलाल सिंह बताते हैं कि मौजूदा समय में मालवीय पुल से हैवी लोड के आवगमन को रोक दिया गया है. सिग्नेचर ब्रिज बन जाने के बाद से कॉमर्शियल, प्राइवेट गाड़ियों से लेकर के हाई लोड वाले व्हीकल आ जाएंगे. रेलवे में मल्टी मॉडल स्टेशन बनाए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि पुराने मालवीय ब्रिज को म्यूजियम की तरह सहेजा जाएगा. इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सलाह दी है. इसके आसपास पूरा बनारस है. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर सभी स्थल आते हैं. साथ ही गंगा घाटों की सुंदरता भी ब्रिज से दिखाई देती है. इसे म्यूजियम के लिए पीएम मोदी ने हरी झंडी दी थी.
अंग्रेजों ने बनवाया था डफरिन ब्रिज. (Photo Credit; ETV Bharat) पुराने मालवीय पुल का कब हुआ था निर्माणः बता दें कि अभी गंगा नदी पर मालवीय पुल है, जिसे पहले डफरिन ब्रिज के नाम से जाना जाता था. इस पुल का निर्माण ब्रिटिश राज में हुआ था और उद्घाटन साल 1887 में हुआ. यह पुल वाराणसी में गंगा नदी को पार करने वाले पहले स्थायी पुलों में से एक है, जिसे अवध और रोहिलखंड रेलवे (ओ एंड आर रेलवे) के इंजीनियरों ने बनाया था. 1948 में पं. मदन मोहन मालवीय के नाम पर इस पुल का नाम 'मालवीय पुल' रखा गया. यह पुल वाराणसी के राजघाट के पास है, इसलिए इसे स्थानीय रूप से 'राजघाट पुल' के नाम से भी जाना जाता है.
मौजूदा मालवीय पुल की डिजाइनः लगभग 173 साल पुराना मालवीय पुल दो फ्लोर का है. इसके निचले डेक पर रेल की पटरी और ऊपरी डेक पर सड़क है. इस पुल पर स्ट्रीट लाइट और रेलिंग भी है, जो शाम के समय काफी सुंदर लगता है. नमो घाट से भी इस पुल का व्यू काफी सुंदर आता है. इस पुल पर पैदल यात्री, रिक्शा और छोटे वाहन आ सकते हैं. निर्माण के बाद से यह पुल चंदौली को वाराणसी से जोड़ता हुआ आया है. लगभग डेढ़ दशक से इस पर भारी वाहनों और बसों के आवागमन पर रोक लगी है. अब ठीक इसी पुल के बगल में केंद्र सरकार सिग्नेचर ब्रिज बनवा रही है.
रेलवे ट्रैक 163 फीसदी हो रहे हैं प्रयोगः एडीआरएम लालजी चौधरी ने बताया कि अभी रेलवे ट्रैक 163 फीसदी प्रयोग में लाए जा रहे हैं. वहीं, नए ब्रिज पर 4 ट्रैक बनने से लोड घटेगा और ट्रेनों की रफ्तार बढ़ेगी. सीमेंट, कोयला, माल ढुलाई और पर्यटन व्यवस्था सुदृढ़ होने से आर्थिक मजबूती को बल मिलेगा. इसके साथ ही नए पुल के बन जाने से ट्रेनों की रफ्तार भी लगभग 112 किलोमीटर प्रतिघंटे के हिसाब से होगी. एक घंटे में डीडीयू से वाराणसी पहुंचने वाली ट्रेनें 30 मिनट में पहुंच सकेंगी. नए ट्रैक व्यासनगर तक बिछाए जाएंगे. इससे मालगाड़ियों की रफ्तार बढ़ेगी और कारोबार भी बढ़ेगा.
मालवीय पुल से गुजरती हैं 30 जोड़ी से अधिक ट्रेनेंः एडीआरएम ने बताया कि वाराणसी-डीडीयू रूट पर डबल लाइन है. इससे 30 जोड़ी से अधिक ट्रेनें गुजरती हैं. इस रूट से झारखंड, बिहार से कोयला लेकर मालगाड़ियां पॉवर स्टेशन के लिए जाती हैं. ऐसे में इस रूट पर ट्रेनों का दबाव अधिक रहता है. मालवीय पुल काफी पुराना हो चुका है, जिससे इससे 20 से 30 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से ट्रेनों को चलाया जाता है. ऐसे में ट्रेनों के समय पर भी असर पड़ता है. ऐसे में ट्रेनों को सही संचालन और विकास कार्यों की गति बढ़ाने के लिए नए पुल की आवश्यकता पड़ी है.
काशी के लिए वरदान साबित होगाःदेश के प्रधानमंत्री और वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने काशी को एक से बढ़कर एक उपहार दिए हैं. चाहे वह श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण हो या फिर घाटों का नवीनीकरण करना हो. इसके साथ ही रेलवे से लेकर स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र में बहुत कार्य हुए हैं. इस बीच सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण को मंजूरी मिलना काशीवासियों के लिए बहुत बड़ा तोहफा माना जा रहा है. इससे न सिर्फ बनारस व अन्य क्षेत्र के लोगों के आवागमन में आसानी होगी बल्कि व्यापारियों के लिए बेहतरीन संसाधनों की उपलब्धता आसान हो जाएगी. काशी वासी भी इस प्रोजेक्ट से बहुत खुश हैं. उनका कहना है कि ये काशी के लिए वरदान होगा. कोलकाता का हावड़ा ब्रिज. (Photo Credit; Social Media) हावड़ा ब्रिज क्यों प्रसिद्ध हैःबता दें कि हावड़ा ब्रिज (रवींद्र सेतु) कोलकाता की पहचान है. जो पूरी दुनिया में मशहूर है. इसे देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं. यह पुल हुबली नदी पर बना है. अपने आप में विश्व में इस तरह का छठवां पुल है. ये पुल दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पिलरों पर टिका हुआ है. करीब 80 साल से पुल ज्यों का त्यों खड़ा है. बताया जाता है कि हावड़ा ब्रिज को बनाने में 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था. जिसमें से 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी. इसी पुल की तरह बनारस में सिग्नेचर ब्रिज की कल्पना की गई है. हालांकि हावड़ा ब्रिज सिर्फ पैदल और वाहनों का आवागमन होता है.
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