प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि आपराधिक षड्यंत्र का अपराध साबित करने के लिए ठोस और तथ्यात्मक साक्ष्य का होना जरूरी है. मात्र आरोप लगाने या बयान के आधार पर आपराधिक षड्यंत्र को साबित नहीं किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक षड्यंत्र के अपराध को साबित करने के लिए मुख्य तत्व है कि आरोपी की अपराध करने में सहमति हो और इसे साबित करने के लिए लिए सीधा या परिस्थितिजन्य साक्ष्य होना आवश्यक है. इस निष्कर्ष के साथ कोर्ट ने पूर्व बसपा एमएलसी इकबाल बाला के बेटों सहित पांच आरोपियों के खिलाफ सम्मन और मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने याचीगण के वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी की दलीलों को सुनकर दिया.
याचीगण के खिलाफ सहारनपुर के मिर्जापुर थाने में वादी मुकदमा अमित जैन ने हत्या का प्रयास और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जांच के बाद इसमें आरोप पत्र दाखिल कर दिया. इस पर विचारण न्यायालय ने याचीगण को सम्मन जारी कर दिया. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना था कि याचीगण का नाम प्राथमिकी में नहीं है और न ही वह घटनास्थल पर मौजूद थे.
उनके खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र की धारा 120 बी आईपीसी के तहत चार्ज शीट दाखिल की गई है. जबकि उनके अपराध की साजिश में शामिल होने का कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. याचीगण के पिता इकबाल बाला से इन लोगों की पुरानी राजनीतिक और व्यावसायिक रंजिश है. इसे लेकर वादी मुकदमा पक्ष की ओर से पहले भी याचीगण के विरुद्ध कई मुकदमे दर्ज कराए जा चुके हैं. इनमें से कई मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से याचीगण को राहत मिल चुकी है.
प्रदेश सरकार की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि याचियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं. उनका लंबा आपराधिक इतिहास है आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने का साक्ष्य विचारण न्यायालय में साबित किया जाएगा. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया इस मामले में आपराधिक षडयंत्र का कोई केस नहीं बनता है. ऐसा लगता है कि यह मुकदमा दूषित मानसिकता से सिर्फ याचीगण को फंसाने की नीयत से दर्ज कराया गया है. कोर्ट ने सम्मन आदेश और मुकदमे की समस्त कार्यवाही को रद्द कर दिया.
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