पटना:बिहार की राजनीति में 1990 से लालू यादव का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण अहम भूमिका निभाता रहा है. अपने इसी वोट बैंक पर लालू प्रसाद लंबे समय तक सत्ता में रहे. लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने जब पार्टी के कार्यभार का संभाला तो A2Z पार्टी बनाने का दावा किया. जिसका मकसद पार्टी की छवि बदलना था. लेकिन बाहुबली शहाबुद्दीन के परिवार को पार्टी में शामिल करने से एक बार फिर लालू के पुराने समीकरण की वापसी की चर्चा जोर पकड़ने लगी है. तेजस्वी यादव को लगने लगा है कि यदि मुख्यमंत्री बनना है तो, अपने पुराने वोट बैंक पर एक बार फिर से पकड़ बनानी होगी.
तेजस्वी का राजनीतिक सफरः लालू प्रसाद के दोनों बेटे 2015 में राजनीति में सक्रिय हो गये. 2015 में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी. लालू प्रसाद ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को महागठबंधन की सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया. उसी समय यह चर्चा शुरू हो गई कि राजद की कमान अब तेजस्वी के हाथों में होगी. धीरे धीरे राजद में सभी फैसला तेजस्वी यादव लेने लगे. 2020 विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव ने ही राजद में कौन प्रत्याशी होंगे और किसके साथ गठबंधन होगा, सारा फैसला लिया. लालू प्रसाद यादव की तबीयत खराब होने के बाद राजद के निर्णय तेजस्वी यादव लेने लगे, हालांकि अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ही हैं.
तेजस्वी का ए टू जेड समीकरणः तेजस्वी यादव ने सबसे पहले राजद की छवि बदलने की कोशिश की. राजद की परंपरागत माय (MY) समीकरण के बदले उन्होंने ए टू जेड की पार्टी बनाने की बात शुरू की. बाहुबलियों से पार्टी को दूर करने की कवायद शुरू की. लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव, कांग्रेस के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाह रहे थे. कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव नहीं चाहते थे, इसलिए कांग्रेस का टिकट नहीं मिला. सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब और पुत्र ओसामा शहाब आरजेडी में आना चाह रहे थे लेकिन तेजस्वी यादव ऐसा नहीं जा रहे थे. लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी निर्दलीय चुनाव लड़ी थी.
वोट बैंक बचाने की चुनौतीः 1990 में लालू यादव, बीजेपी के सहयोग से बिहार में सरकार चला रहे थे. लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर अभियान को लेकर सोमनाथ से रथ यात्रा निकाले थे. लालू प्रसाद यादव ने बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद मुसलमान का एक तरफा समर्थन लालू प्रसाद यादव के साथ चला गया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में मुसलमान का झुकाव अन्य दलों की तरफ भी होने लगा. सीमांचल में 2020 विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की. प्रशांत किशोर, आगामी विधानसभा चुनाव 40 से अधिक अल्पसंख्यक उम्मीदवारों के खड़ा करने की घोषणा कर चुके हैं.
लालू यादव ने संभाला मोर्चाः तेजस्वी यादव नहीं चाहते थे कि फिर से राजद की पुरानी छवि बने. लेकिन लालू यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. वह समझ चुके थे कि अल्पसंख्यक वोटरों का झुकाव अन्य राजनीतिक दलों की तरफ हो रहा है. 2024 लोकसभा चुनाव में सीमांचल की चार सीट में दो सीटों पर कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी हासिल की. पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव की जीत हुई. इससे पहले गोपालगंज, कुढ़नी एवं रुपौली विधानसभा उपचुनाव में मुसलमान वोटरों ने राजद के पक्ष में वोट नहीं किया. मुस्लिम वोट को एकजुट रखने के लिए लालू यादव फिर से सक्रिय हुए.
अल्पसंख्यक वोटरों को जोड़ना चुनौतीः वरिष्ठ पत्रकार इंद्रभूषण का कहना है कि तेजस्वी यादव पार्टी की छवि बदलना चाह रहे थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. वह जान गए थे कि अल्पसंख्यक वोटर धीरे-धीरे आरजेडी से दूर होता जा रहा है. गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में शहाबुद्दीन के परिवार के विरोध के कारण मुस्लिम वोटर आरजेडी से नाराज थे, और वहां पर राजद की हार हुई. लोकसभा चुनाव में सिवान में राजद के कैंडिडेट के रूप में अवध बिहारी चौधरी खड़ा थे, लेकिन फिर भी मुस्लिम वोटरों ने शहाबुद्दीन की पत्नी को वोट दिया. रुपौली उपचुनाव में राजद की बीमा भारती तीसरे नंबर पर रही.
"चुनाव में मुस्लिम वोट में विखराव ना हो, इसलिए लालू यादव की पहल पर शहाबुद्दीन परिवार की वापसी हुई. तेजस्वी यादव को लालू यादव ने समझाया. एक महीने पहले आरजेडी एमएलसी विनोद जायसवाल के आवास पर लालू यादव, तेजस्वी यादव को लेकर हिना और ओसामा शहाब से मिले थे."- इंद्रभूषण, वरिष्ठ पत्रकार
सत्ता की भूखः वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का कहना है कि तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव के साये से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. तेजस्वी यादव ने आरजेडी की छवि बदलने की कोशिश की और लोगों से अपील की थी कि जो पहले हुआ वह भूल जाइए. आरजेडी को ए टू जेड की पार्टी बनाने की बात कही. लेकिन विपक्षी पार्टी लगातार कहती रही कि ये लोग बदलने वाले नहीं हैं. जिस समीकरण के सहारे लालू प्रसाद यादव चल रहे थे, उसमें माय के अलावा अतिपिछड़ा भी होता था. बाद में अति पिछड़ा भी नीतीश के साथ चला गया. तेजस्वी यादव जिस जगह से निकलने की कोशिश कर रहे थे, फिर वहीं जाते दिख रहे हैं. कारण कि उन्हें हर हालत में बिहार की सत्ता चाहिए.