लोहरदगा: जिले के पेशरार प्रखंड के सुदूरवर्ती पुलुंग गांव की किस्मत आज तक नहीं बदली है. आजादी के 75 साल बाद भी यहां लोगों को बिजली, पानी और सड़क जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. गांव तक पहुंचने के लिए पगडंडी ही एक मात्र सहारा है. सरकार की योजनाएं यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. आदिम युग में जी रहे यहां के लोगों की जिंदगी सरकार और सिस्टम से सवाल करती है कि क्या उन्हें सामान्य जीवन जीने का अधिकार नहीं है.
पगडंडी ही जीवन रेखा, खंभे में तार है मगर बिजली नहीं
लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 37 किलोमीटर दूर जंगल में चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ पुलुंग गांव है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. कई पहाड़ी नालों को पार कर गांव तक पहुंचा जाता है. जरूरत पड़ने पर इस गांव तक एंबुलेंस का पहुंच पाना नामुमकिन है. सड़क के नाम पर सिर्फ पगडंडी ही है. बिजली के नाम पर खंभा तो है, लेकिन गांव के किसी भी घर में कोई बल्ब नहीं जला है. बस घरों के दीवारों पर मीटर लगाकर छोड़ दिया गया है.
पेयजल व्यवस्था के नाम पर एक मात्र कुआं ही सहारा है. कुआं में ही सोलर मोटर लगा दिया गया है. जबकि बोरिंग या फिर ढके हुए कूप में मोटर लगाना था. स्कूल है पर स्कूल का भवन बेहद जर्जर अवस्था में है. लोगों के पास रोजगार जैसी कई ऐसी समस्याएं हैं, जो इस गांव को आज भी विकास की दौड़ से पीछे रखे हुए है. गांव में रहने वाले लोगों की जिंदगी जंगल और जंगली उत्पादों पर ही निर्भर है. सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य किसी तरह की सुविधा गांव में उपलब्ध नहीं है.