नई दिल्ली:हर वर्ष 15 अगस्त को भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ आजादी का पर्व मनाया जाता है. यह प्रत्येक भारतीय को एक नई शुरूआत की याद दिलाता है. इस दिन 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश शासन के चंगुल से छूटकर भारत के एक नए युग की शुरूआत हुई थी. 15 अगस्त, 1947 वह शुभ दिन था जब भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र घोषित किया गया था और भारत की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई थी. तब से लेकर आज तक, हर वर्ष देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं. आइए जानते हैं आखिर क्यों लाल किले से ही तिरंगा फहराया जाता है और आजादी के बाद से लेकर अब तक तिरंगे में कितने बदलाव आए हैं?
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर और इतिहासकार फिरोज बख्त अहमद ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि देश का ध्वज भारत की आवाम की आत्मा है. इसको डिजाइन करने के पीछे कई हस्तियों का योगदान है. 200 साल पहले जब आजादी की लड़ाई शुरू हुई थी, तब सभी धर्म के लोग एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर सामने आए और अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हुई. तब इस बात पर विचार किया गया था कि देश का एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार होना चाहिए. आजादी के कई वर्ष पहले ही तिरंगे को डिजाइन किया गया था.
1906 में फहराया गया पहला तिरंगा:उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1906 में तिरंगे को न सिर्फ डिजाइन किया गया, बल्कि कोलकाता के पारसी बागान चौक पर इसको फहराया भी गया था. इसे डिजाइन करने में बाल गंगाधर तिलक, बंकिम चंद्र चटर्जी और अरबिंदो घोष का विशेष योगदान रहा. सबसे पहले तैयार हुए राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन में वंदे मातरम भी लिखा हुआ था.
सामने आया एक अन्य झंडा: इसके बाद सन् 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने दूसरा झंडा फहराया था. इसमें हरे और लाल रंग की पट्टियां थीं. साथ ही सप्तऋषि के आकार में सात सितारे थे. वहीं बाएं कोने में यूनियन जैक और ऊपरी दाएं कोने में एक सफेद अर्धचंद्र और सितारा हुआ करता था.
पहले झंडे में होता था चरखा: इसके कई वर्षों बाद एक नया डिजाइन तैयार किया गया. इसको राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में तैयार किया गया था. इस डिजाइन को तैयार करने में स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वैंकेया का विशेष योगदान रहा. इन्होंने जिस झंडे को डिजाइन को तैयार किया, वह पूरी तरीके से राष्ट्रध्वज के रूप में माना गया. इसमें तीनों रंगों को जोड़कर चरखे के साथ डिजाइन किया गया था, तिरंगे में केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ-साथ बीच में चरखे को शामिल किया गया था, लेकिन कुछ वर्षों बाद तिरंगे में मौजूद चरखे को हटाकर अशोक चक्र को शामिल किया गया, जिसे कानून और जीवन का प्रतीक माना गया.
झंडे का माना सम्मान: फिरोज आगे बताते हैं कि झंडे का मान सम्मान भी एक विशेषता है और हर भारतीयों को इस बात की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए कि झंडे का सम्मान किस तरह किया जाना चाहिए. मसलन देश के राष्ट्रध्वज यानी तिरंगे को कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. इसके अलावा तिरंगे को कभी भी कपड़े के रूप में नहीं पहनना चाहिए. साथ ही इसे उल्टा नहीं फहराया जाना चाहिए. इससे राष्ट्रध्वज के सम्मान को ठेस पहुंचती है और यह एक अपराध भी है. हर भारतीयों को इस बात को समझना चाहिए की राष्ट्रध्वज का सम्मान करना उनकी जिम्मेदारी है.
लाल किले पर क्यों फहराते हैं तिरंगा:स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले पर तिरंगा फहराने की पीछे भी एक रोचक कहानी है. हम सभी ने अपनी इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि सन, 1947 से देश के मौजूद सभी प्रधानमंत्रियों ने लाल किले से राष्ट्रध्वज को फहराया है. सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक लाल किले पर देश के ध्वज को फहराया था. इसके पीछे एक विशेष कहानी है कि राजधानी में मौजूद इंडिया गेट के पास एक प्रिंसेस पार्क है जहां पहली बार राष्ट्रीय ध्वज को फहराया गया था. स्वतंत्रता की घोषणा के बाद इस जगह पर अंग्रेजों के तिरंगे को उतारकर भारतीय राष्ट्रध्वज को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था. लेकिन यह अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एक स्थान था. इसलिए इस स्थान को बदलकर लाल किले का चयन किया गया.
है विशेष इतिहास:फिरोज ने यह भी बताया कि लाल किले पर झंडा फहराने का विशेष इतिहास है. दरअसल अंग्रेजों से लड़कर हर धर्म के लोगों ने आजादी हासिल की थी. इसी आजादी के प्रमाण के रूप में लाल किले को दिखा जाता है. यही कारण है कि हर वर्ष लाल किले पर तिरंगा फहराया जाता है. आजादी के बाद से लेकर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले पर झंडा फहराया है.
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