भोपाल: एमपी में लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 15 अगस्त से पहले मंत्रियों को उनके जिले का प्रभार मिल गया. सवाल ये है कि देर आया ये फैसला कितना दुरुस्त है. राजनीतिक जानकारों की निगाह में राज्यसभा के उम्मीदवारों की तरह सीएम डॉ मोहन यादव की सरकार में मंत्रियों के प्रभार भी चौंकाने वाले ही दिए गए हैं. ये फैसले लीक से हटकर लिए गए हैं. आम तौर पर प्रमुख शहरों के प्रभार तजुर्बेदार मंत्रियों के पास रहते हैं, लेकिन इस बार इसके उलट भी फैसले दिखे. प्रभार के जिलों के बंटवारे में अगर किसी एक नेता का दबदबा दिखाई देता है, तो वो ज्योतिरादित्य सिंधिया है. गुना से लेकर शिवपुरी और ग्वालियर तक सिंधिया समर्थकों की ही जमावट है.
भार वालों को छोटे जिलों का प्रभार
देर से हुआ मंत्रियों की प्रभार के जिलों का फैसला क्या दुरुस्त भी कहा जाएगा? सवाल इसलिए कि ये सूची चौंकाने वाली रही. आम तौर पर प्रमुख जिलों का प्रभार तजुर्बेदार भारी भरकम विभाग के मंत्रियों को दिया जाता है, लेकिन जिस तरह से कैलाश विजयवर्गीय को धार और सतना, प्रहलाद पटेल को भिंड और रीवा, राकेश सिंह को छिंदवाड़ा-नर्मदापुरम का प्रभार दिया गया है, वो चौंकाता है. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागरकहते हैं, 'असल में धार जिले में कैलाश विजयवर्गीय को जिममेदारी देकर उमंग सिंघार के इलाके की संभाल की गई है.
इसी तरह से दशकों बाद बीजेपी के हिस्से आए छिंदवाड़ा में अब कमल खिलता रहे, इसलिए इस जिले की जवाबदारी राकेश सिंह को सौंपी गई है. छोटे जिले जहां विकास की गुंजाइश है, वहां बड़े नेताओं को जवाबादारी देना डॉ मोहन यादव का एक प्रयोग है, जिसमें सफलता की उम्मीद दिख रही है.'
प्रभार के जिलों में सिंधिया का दबदबा कायम
प्रभार के जिले सौंपे जाने में सिंधिया समर्थकों को चुन-चुनकर सिंधिया के ही इलाकों का प्रभार दिया गया है. चाहे फिर गुना में गोविंद सिंह राजपूत को दी गई जवाबदारी हो या ग्वालियर पहले की तरह तुलसी सिलावट के ही हाथ में हो या फिर शिवपुरी की कमान प्रद्युम्न सिंह तोमर को दी गई हो. वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं 'इसमें दो राय नहीं कि सिंधिया समर्थक मंत्रियों को उन्हीं जिलों के प्रभार दिये गए हैं, जो सिंधिया की राजनीतिक मैदान में शामिल हैं.'