बिहार

bihar

ETV Bharat / state

पति 'बिहार सरकार' तो ससुर 'भारत सरकार', बहू की जीत बनी प्रतिष्ठा का सवाल, मांझी से टकराएंगे मांझी

इमामगंज विधानसभा में जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा दांव पर है. आरजेडी प्रत्याशी रोशन मांझी की 2010 में महज 1211 वोटों से हार हुई थी.

Jitan Ram Manjhi
दांव पर जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 4 hours ago

Updated : 3 hours ago

गया: बिहार के इमामगंज विधानसभा चुनाव मुख्य केंद्र बिंदु में है. मुख्य केंद्र बिंदु में इसलिए है, क्योंकि यहां से केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझीकी प्रतिष्ठा दांव पर है. अब तक जीतन राम मांझी पिछले दो बार से इस विधानसभा से जीतते आ रहे हैं. इस बार लोकसभा का चुनाव उन्होंने जीता और उपचुनाव में अपनी बहू दीपा मांझी को मैदान में उतारा है. दीपा मांझी के पति यानि संतोष मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं. वहीं, ससुर जीतन राम मांझी भारत सरकार में मंत्री हैं.

इमाममगंज में दांव पर मांझी की प्रतिष्ठा: वहीं, उनके सामने राजद प्रत्याशी के रूप में रोशन मांझी हैं. राजद ने रोशन मांझी को भरोसा कर टिकट दिया है. रोशन मांझी को टिकट मिलने का मुख्य आधार यह है, कि वर्ष 2010 में हुए उदय नारायण चौधरी से मात्र 1211 मतों से हार गए थे. हालांकि, रोशन मांझी अब भी यही कहते हैं, कि वे हारे नहीं थे, उन्हें हराया गया था.

राजद प्रत्याशी रोशन मांझी (ETV Bharat)

सिर्फ 1211 मतों से हारे थे रोशन मांझी: रोशन मांझी वर्ष 2010 में राजद से प्रत्याशी थे. उनके सामने जदयू प्रत्याशी के रूप में उदय नारायण चौधरी थे. मुकाबला काफी टक्कर का था. इस महा मुकाबले में उदय नारायण चौधरी हारते-हारते बचे थे. उन्हें सिर्फ 1211 मतों से जीत मिली थी. हालांकि रोशन मांझी का तब भी यह आरोप था, कि उन्हें चुनाव हराया गया है. ऐसा वे आज भी कहते हैं.
इस बार लोकल और बाहरी मुद्दा बन रहा: इस बार लोकल और बाहरी मुद्दा बन रहा है. राजद से रोशन मांझी लोकल कैंडिडेट हैं, तो दीपा मांझी को लोग बाहरी बता रहे हैं. यह धीरे-धीरे मुद्दा बनता जा रहा है. इससे भी बड़ा मुद्दा परिवारवाद का है. जीतन राम मांझी ने अपने नेताओं- कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने के बजाय अपनी बहू दीपा मांझी पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दे दिया. इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं-नेताओं में अंदरूनी नाराजगी है.

राजनीतिक पंडित भी आकलन लगाने से कतरा रहे:राजनीतिक पंडित भी आकलन लगाने से कतरा रहे हैं. क्योंकि रोशन मांझी भी स्थानीय लोकल कैंडिडेट के रूप में खासे लोकप्रिय हैं. यही वजह थी, कि जब उदय नारायण चौधरी राजनीति की ऊंचाइयों को छू रहे थे, तो उस समय रोशन मांझी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी और मात्र 1211 मतों से रोशन मांझी 2010 में इमामगंज विधानसभा से चुनाव हार गए थे.

2010 में रोशन मांझी को 42915 वोट मिले: 2010 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो उदय नारायण चौधरी को जदयू प्रत्याशी के रूप में 44126 वोट मिले थे. वहीं, रोशन मांझी को 42915 वोट मिले थे. इस तरह से रोशन मांझी 1211 वोट से चुनाव हार गए थे. मामला काफी नजदीकी था. उस समय रोशन मांझी ने हार के बाद मामले को काफी तूल दिया था और कहा था, कि उन्हें चुनाव हराया गया है. उस चुनाव की कसक रोशन मांझी 2024 के विधानसभा उपचुनाव में निकालने के लिए जी तोङ मेहनत कर रहे हैं.

'मैं तब भी चुनाव नहीं हारा था':वही, इमामगंंज विधानसभा उपचुनाव में राजद के प्रत्याशी रोशन मांझी का कहना है, कि मैं 2010 में भी राजद से चुनाव लड़ा था, लेकिन मुझे उस चुनाव में साजिश के तहत हरा दिया गया था. रोशन मांझी कहते हैं कि तब भी मैं चुनाव नहीं हारा था और अब भी मैं चुनाव जीतूंगा. क्योंकि जनता मुझे जीता रही है. वह बताते हैं, कि मैं एक किसान परिवार से हूं. आज भी कोई काम करता हूं, तो वह समाज सेवा ही है.

शिक्षिका पत्नी बनी है सहारा: रोशन मांंझी बताते हैं, कि उन्हें 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता ने मौका दिया, लेकिन साजिश के तहत उसे छीन लिया गया. इसकी कसक जरूर है, लेकिन इस बार उस कसक को जरूर दूर कर दूंगा. रोशन मांझी बताते हैं, कि उनकी पत्नी शिक्षिका है. पत्नी शिक्षिका है, इसलिए घर गृहस्थी अच्छी तरीके से चल रही है और उनके पास बाप दादा की खेती के अलावा कोई रोजगार नहीं है. यदि कोई रोजगार है, तो वह समाज सेवा ही है.

अब तक ये बने विधायक: इमामगंज विधानसभा से 1977 के बाद से अब तक चार बार जदयू जीती रही है तो दो बार हम पार्टी को जीत मिली है. वही शुरू से बात करें, तो इमामगंज विधानसभा से 1957 में अंबिका प्रसाद सिंह विधायक बने. इसके बाद 1962 में भी यही जीते. स्वतंत्र राजनीतिक स्वतंत्रता पार्टी के टिकट से इन्होंने जीत दर्ज की. 1967 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी जीते. 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तो 1972 में अवधेश्वर राम की जीत हुई, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से प्रत्याशी थे. 1977 में ईश्वर दास ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता. 1980 और 1985 में श्री चंद सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर जीते.

1990 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस: 1990 में उदयनारायण चौधरी जनता दल के उम्मीदवार के रूप में जीते. 1995 में रामस्वरूप पासवान जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीते. 2000 में रामस्वरूप पासवान जीते. 2005, 2010 में जदयू प्रत्याशी के रूप में उदय नारायण चौधरी जीते. वहीं 2015 और 2020 के चुनाव में जीतन राम मांझी की जीत हुई और इस बार 2024 विधानसभा उप चुनाव के लिए मैदान तैयार है.

जरूरी है दीपा की जीत!:2024 का उपचुनाव जहां केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांंझी के लिए प्रतिष्ठा वाली सीट के रूप में है, क्योंकि उनकी बहू दीपा मांझी मैदान में है. दीपा मांझी चुनाव हारती है, तो यह जीतन राम मांझी ही नहीं, बल्कि हम पार्टी के लिए भी माइनस पॉइंट होगा. वही, रोशन मांझी अपनी लोकल और लोकप्रिय छवि को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. मामला टक्कर का है, इसे देखते हुए प्रदेश के नेताओं का कैंप और आना- जाना इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हो रहा है.

2010 में जीत का अंतर था बेहद कम: गौरतलब हो, कि उदय नारायण चौधरी बिहार विधानसभा के स्पीकर भी रहे हैं. ऐसे में रोशन मांझी की अहमियत को कमतर नहीं आंका जा सकता है. क्योंकि रोशन मांझी ने उदय नारायण चौधरी को लगभग हरा दिया था, बेहद कम मतों से चौधरी 2010 का चुनाव जीते थे.

ये भी पढ़ें

'एक-एक लाख रुपए का प्रलोभन देकर वोट मांग रहे प्रशांत किशोर', जीतन राम मांझी का बड़ा आरोप

'जो भी सपना पापा का अधूरा रह गया है उसे पूरा करूंगी', बहू के नामांकन में साथ पहुंचे ससुर जीतन राम मांझी

Last Updated : 3 hours ago

ABOUT THE AUTHOR

...view details