पटना : बिहार के मोतिहारी का सरकारी सदर अस्पताल. दिन के करीब 10 बजे. ओपीडी में मरीजों की लंबी कतार. लाइन में सुबह से अपना इंतजार करते रामकुमार कहते हैं कि, ''पता नहीं मेरा नंबर कब आएगा. बच्ची को दिखाना है. आज बहुत भीड़ है, जल्दी लौटना भी है. लेकिन अस्पताल में एक ही डॉक्टर है.''
अस्पताल तैयार डॉक्टर का पता नहीं : बिहार के भोजपुर जिले के स्व. देवशरण सिंह अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की तस्वीर तो इससे भी खराब है. अस्पताल को बने 5 साल हो गए. यहां सब कुछ चकाचक है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरों की नियुक्ति करना भूल गया. हालांकि अस्पताल में गार्ड मौजूद है.
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'कभी-कभार ANM आती हैं' : गार्ड मिथिलेश सिंह कहते हैं कि, ''मरीज अक्सर अस्पताल में आकर हमसे पूछते हैं कि डॉक्टर साहब आएंगे या नहीं.'' मिथिलेश बताते हैं कि ''कभी कभार एएनएम लोग आती हैं, अगर मरीज रहते हैं तो उन्हें कुछ दवा देती हैं और फिर चली जाती हैं.''
'पानी के लौटने के साथ डॉक्टर साहब लौट गए' : ग्रामीण रजनीकांत सिंह बताते हैं कि, गांव में जब बाढ़ ने दस्तक दी थी, उन दिनों यहां डॉक्टर साहब आते थे, इलाज होता था, दवाई भी मिलती थी. लेकिन पानी के लौटने के साथ डॉक्टर साहब भी लौट गए. कभी कभार जब घर में कोई बीमार होता है तो अस्पताल में पूछने चले आते है कि 'डॉक्टर साहब हैं क्या?'. लेकिन जवाब मिलता है कि नहीं.
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गार्ड और ANM के भरोसे अस्पताल : गांव के ही लक्षमिना कुंवर ने बताया कि ''अस्पताल एएनएम भरोसे है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो एमबीबीएस डाक्टर समेत तीन डाक्टर, एक जीएनएम, दो एएनएम, एक फार्मासिस्ट, एक क्लर्क, दो चतुर्थवर्गीय कर्मी की ड्यूटी लगनी चाहिए, लेकिन अस्पताल को दो एएनएम और दो गार्ड के भरोसे छोड़ दिया गया है.''
विभाग की बात कह CS ने झाड़ा पल्ला : जब ईटीवी भारत की टीम भोजपुर सिविल सर्जन शिवेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंची तो उन्होंने बताया कि, ''इस संबंध में विभाग को लिखा गया है. अभी अस्पताल में किसी की पोस्टिंग भी नहीं हुई है. किसी तरह से स्टॉफ को इधर उधर से लाकर चला रहे हैं. सरकार जब डॉक्टरों की नियुक्ति कर देगी तो अस्पताल अच्छे से चलने लगेगा.''
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'बिहार में अस्पताल का चक्कर ना लगे' : यह दर्द शायद बिहार के किसी एक मरीज या उनेके परिजन की नहीं है. आज हर जिले में ऐसे अस्पताल मिल जाएंगे, जहां मरीजों की लंबी कतार तो रहती है, लेकिन डॉक्टर की कमी से मरीजों का इंतजार लंबा हो जाता है. शायद इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि किसी को अस्पताल या कोर्ट कचहरी का चक्कर ना लगे.
एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल बनने जा रहा PMCH : ऐसा नहीं है कि हाल के वर्षों में बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है. अत्याधिक सुविधाओं से कई अस्पताल लैस हुए हैं. पीएमसीएच एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल बनने जा रहा है. हालांकि अभी भी कई कमियां मौजूद है जो स्वास्थ्य विभाग की कलई उजागर करने के लिए काफी है.
अपने मुंह मियां मिट्ठू होते हैं मंत्री और अधिकारी : बिहार के मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अपनी पीठ थपथपाते नजर आते हैं. पर जब जमीनी हकीकत कागज पर उकेरी जाती है तो सब औंधे मुंह गिर जाते हैं. पिछली सरकार से तुलना करने लगते हैं. खैर उसपर हम नहीं जाएंगे आपको सरकारी व्यवस्था की सरकारी पोल खोल बताते हैं.
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बिहार में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल : कैग रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के स्वास्थ्य विभाग में सृजित पद में आधे पद खाली हैं. सरकार के तय मानक के अनुसार 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए लेकिन बिहार में 2148 व्यक्ति पर एक डॉक्टर ही उपलब्ध है. 2024 के शीतकालीन सत्र में बिहार सरकार की तरफ से कैग की रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की गई.
कैग की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के दौरान सरकार के द्वारा स्वास्थ्य विभाग को 69790.83 करोड़ रुपए आवंटित किये गये थे. लेकिन स्वास्थ्य विभाग आवंटित राशि में केवल 48047.79 करोड़ ही खर्च कर पाई. यानी विभाग 69 प्रतिशत राशि खर्च कर पाई और 31 प्रतिशत राशि का विभाग द्वारा कोई उपयोग नहीं किया गया. कुल रकम के हिसाब से देखें तो 21743.04 करोड़ रूपया बिहार सरकार का स्वास्थ्य विभाग खर्च ही नहीं कर पाया.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य विभाग के 5 सालों की पोल खोल कर रख दिया. अस्पतालों में आधे पद खाली हैं. कहीं ओटी नहीं तो कहीं वेंटिलेटर बंद है. बिहार के अस्पतालों में डॉक्टरों के 49 प्रतिशत पोस्ट खाली हैं.
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स्वास्थ्य विभाग में रिक्तियां : कैग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में औषधि नियंत्रक खाद्य सुरक्षा स्कंद आयुष एवं मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में 53 प्रतिशत रिक्तियां हैं. बिहार में मार्च 2022 तक 12.49 करोड़ बिहार की आबादी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कितने मानक के अनुसार राज्य में 124919 एलोपैथिक डॉक्टर की आवश्यकता थी लेकिन जनवरी 2022 तक केवल 58144 एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध थे.
WHO के अनुशंसित मापदंड से 53 प्रतिशत कम एवं राष्ट्रीय औसत के अनुसार 32 प्रतिशत कम पाया गया था. इसके अलावा मार्च 2023 तक 11298 एलोपैथिक डॉक्टर की स्वीकृत पदों के सापेक्ष 4741 यानी 42 प्रतिशत राज्य में पदस्थापित थे. रिपोर्ट आने के बाद अक्टूबर 2023 में स्वास्थ्य विभाग ने जवाब दिया कि रिक्तियां के लिए भर्ती प्रक्रिया प्रगति पर है.
कैग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की प्राथमिक एवं द्वितीय स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में कुल स्वीकृत पद और आईपीएस मानकों के अनुसार आवश्यकता के मुकाबले 23475 (61%) और 18909 (56%) पद रिक्त पड़े थे. इसी प्रकार तृतीय और आयुष स्वास्थ्य देखभाल के लिए स्वीकृत पद के अनुरूप 49% और 82% पद रिक्त पाए गए. बिहार के अस्पतालों में स्टाफ नर्स की कमी है.
राजधानी पटना में स्वीकृत स्टाफ नर्स में 18% की कमी है तो पूर्णिया में 72% जमुई में 45% तो पूर्वी चंपारण में 90% तक पैरा मेडिसिन स्टाफ की कमी है. आयुष चिकित्सा का तो और भी बुरा हाल है. पूरे बिहार में जितने भी आयुष इकाइयां हैं, उसमें सृजित पद में 35% से लेकर 81% तक की कमी है.
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पैसा खर्च नहीं होने का कारण : कैग की रिपोर्ट के अनुसार बजट की राशि खर्च नहीं होने के पीछे मुख्य वजह जिलों से समय पर मांग पत्र की प्राप्ति नहीं होना है. रिपोर्ट में बताया गया था कि बिहार में सकल राज्य घरेलू उत्पाद जीएसडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय की प्रतिशतता केवल 1.33% और 1.73 प्रतिशत के बीच थी, जबकि राज्य के बजट के मुकाबले स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय की प्रतिशतता जीएसडीपी और राज्य बजट के आवश्यक 2.5% और 8% की तुलना में कम थी जो कि क्रमश 3.31% और 4.41% के बीच थी.
'मेडिकल क्षेत्र में क्वालिटी नहीं देखी जा रही' : बिहार में स्वास्थ्य विभाग की स्थिति पर ईटीवी भारत ने आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ अजय कुमार से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था जिस अनुरूप चलना चाहिए, उस अनुरूप चल नहीं रहा है. यहां पर मेडिकल क्षेत्र में क्वालिटी नहीं देखी जा रही है. नए मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं, उसमें टीचर्स नहीं हैं.
''ऐसा नहीं है कि बिहार में पोस्ट ग्रेजुएट किए हुए लड़के नहीं है. जिनको बहाल करके आप मेडिकल कॉलेज में समस्या को दूर कर सकते हैं. लेकिन यहां एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम है. डिपार्टमेंट में ब्यूरोक्रेसी की वजह से 5-8 वर्ष से लोग कांट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं.''- डॉ अजय कुमार, पूर्व अध्यक्ष, IMA
बिहार के विकास का तीसरा सबसे बड़ा बजट : बता दें कि बिहार में स्वास्थ्य का बजट तीसरा सबसे बड़ा बजट रहा है. पिछली बार यानी वर्ष 2024-25 के बजट की बात करें तो शिक्षा और गृह विभाग के बाद शिक्षा विभाग तीसरे नंबर पर रहा. स्वास्थ्य के लिए 14932.09 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. यह तो कुछ महीने बाद पता चलेगा कि इसमें कितना रुपया खर्च हो पाया. पर एक बात स्पष्ट है कि बिहार को अभी काफी बदलना है, खासकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में.
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