इंदौर। मृत्यु के बाद शास्त्रोक्त विधि से मृतक का अंतिम संस्कार जितना जरूरी है उतना ही जरूरी अब दाह संस्कार के दौरान लकड़ी की खपत और प्रदूषण को बचाना भी हो चुका है. इसी परेशानी के मद्दे नजर गुजरात के अर्जुन भाई पगडार ने इको फ्रेंडली अंतिम संस्कार की यूनिट विकसित की है. जो दाह संस्कार के दौरान लकड़ी की बचत के साथ प्रदूषण नियंत्रण और धुएं और राख से भी मुक्ति दिलाएगी. मध्य प्रदेश के इंदौर में यह यूनिट पहली बार लगाई गई है जिस पर अब इको फ्रेंडली दाह संस्कार हो सकेगा.
धुएं और प्रदुषण से मुक्ति
दरअसल देश भर में सिमटते जंगल और बढ़ते प्रदूषण के अलावा जब कैसूर, गुजरात के अर्जुन भाई पगडार ने महसूस किया कि अंतिम संस्कार के दौरान एक शव को जलाने में 300 से 400 किलो लकड़ी का उपयोग होता है. इसके अलावा शव दाह से उठने वाले धुएं के कारण प्रदूषण भी फैलता है. वहीं, चिता जलने के दौरान आंच के कारण कपाल क्रिया और मुखाग्नि आदि के दौरान भी परेशानी होती है. लिहाजा उन्होंने शव दाह करने के लिए ऐसी यूनिट तैयार की, जिस पर सिर्फ 300 से 400 किलो लकड़ी के स्थान पर 80 से 100 किलो लकड़ी में ही एक से डेढ़ घंटे में शव दाह हो सकेगा.
इको फ्रेंडली दाह संस्कार
इसके अलावा लकड़ी कम लगने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होने के साथ-साथ धुंआ भी 75% कम हो जाएगा. वहीं, राख भी कम होने के साथ अस्थि संचय और अन्य व्यवस्थाएं भी आसान हो जाएगी. यही वजह है कि इंदौर में रामबाग स्थित मुक्तिधाम में मराठी सोशल ग्रुप द्वारा यह यूनिट पहली बार स्थापित कराई गई है. जिसमें अब शास्त्रोक्त विधि से इको फ्रेंडली दाह संस्कार हो सकेंगे.